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जय श्री करणी माँ
बीकानेर राजघराने की इष्ट देवी श्री करणी जी  का जन्म 20 सितंबर 1387 को गांव सुआप में हुआ था। इनका विवाह गांव साठिका के बिट्ठूजी चारण के साथ हुआ था। गांव साठिका में इनका ससुराल था। इनके पिताजी ने इन को दहेज में 400 गांये दी थी। उस समय पानी की बड़ी तंगी थी इन 400 गायों को पानी पिलाने के लिए कुए पर पानी को कुए से खींच करके निकालना पड़ता था और पशुधन को पिलाना पड़ता था। इस बात का ऐतराज़ इनके परिवार वालों, कुटुंब, कबीला वालों ने किया और इसी बात पर अपने कुटुंब से तकरार हुई और श्री करणीजी अपने परिवार के साथ अपनी गायों को लेकर के गायों को चराने वालो व गाड़ियों को लेकर के वे वहां से एक तरह से रुठ करके निकल पड़े। जब इनके साथ वालों ने पूछा कि अपन कहां जा रहे हैं और कहां रुकेंगे तो उन्होंने कहा की जहां भी सूर्य अस्त हो जाएगा वही अपन रुकेंगे और इस तरह का कारवां चलता चला। वर्तमान देशनोक की जगह पर आया और यहीं पर सूर्य अस्त हो गया तो इन्होंने यहीं पर अपना डेरा डाल दिया और अपनी गायों को रखने लगे और गायों को चराने लगे। यहीं पर रहने लग गए यहीं पर जांगलू के राजा रिडमल के भाई कानाजी का शासन था। कान्हाजी के पिताजी चुंडा जी थे। कानाजी यहां अपने घोड़ों की देखभाल करते थे और घास उगाते थे। घोड़ों को ट्रेंड करते थे यह एक तरह से अश्व अभ्यारण था उनका। इसलिए कानाजी के अनुचरों ने उनसे शिकायत की की गायों की वजह से उनके घोड़ों को पर्याप्त घास नहीं मिल पा रही है और घोड़े कमजोर हो गए हैं तो कानोजी ने अपने अनुचरों को कहा कि जो गाय रख रहा है उनको यहां से निकालो। कानोजी  के अनुसार करणीजी को यह संदेश दिया कि यहां से आप चले जाओ। तब करणी जी ने कहा कि घास सबके लिए पर्याप्त है। प्रकृति सब को समान रुप से पालती है। आप भी अपने घोड़े पालों में भी अपनी गाय पालती  हूँ और इसी बात को लेकर के उनके अनुचरों में और करणीजी के बीच में भी तकरार हो गई तो करनी जी ने उनके अनुचरों को भगा दिया तो कान्हाजी के अनुचरो ने कानाजी से शिकायत की तो कान्हाजी खुद आए और करणीजी को वहां से जाने के लिए कहा तो करनीजी ने कहा कि मैं चली जाऊंगी सिर्फ मेरी इष्टदेवी स्वांगियाजी की यह छोटी संदूकची है वह वह मेरी गाड़ी पर रखवा दो तब कान्हाजी ने अपने मित्रों को आदेश दिया मगर वह इतनी भारी हुई की उठी नहीं तब कानाजी ने हाथी से उस सन्दूकची जी को उठाने का प्रयास किया मगर फिर भी वह छोटी सी संदूकची नहीं उठी सिर्फ संदूक का एक पाया थोड़ा सा खंडित हो गया तो करनीजी से कानोजी नाराज हो गए और कहा कि करणीजी आप जादूगरनी हो अगर ऐसी आप जादूगरनी या कोई देवी हो तो यह बताओ कि मेरी मौत कब होगी तो करनीजी ने कहा की मौत सब को आती है तुम्हारी भी आ जाएगी लेकिन कानाजी अड़ गये  कि अभी की अभी बताओ कि मेरी मौत कब आएगी तब करणीजी ने एक अपनी त्रिशूल से एक लकीर खींच कर के कहा कि इस लकीर को पार करो तो तेरी मौत आ जायेगी कानाजी ने उस लकीर को जैसे ही अपने घोड़े से पार किया कि करनीजी ने पीछे से अपने एक हाथ से प्रहार करके कानाजी को मार डाला और जब यह सूचना कानोंजी के भाई रिडमलजी को पहुंची तो रिडमलजी करणीजी के शरणागत हो गए और कहा कि आप ही मेरी तारणहार हो क्योंकि रिडमलजी बड़े होने पर भी उनके पिताजी उसको उनको राज्य अधिकार नहीं दे रहे थे और अपने छोटे बेटे काना जी को युवराज बनाना चाह रहे थे यही कारण था कि रिडमलजी उस समय चित्तौड़ रहे थे अपनी  बहन हंशा बाई के पास में जो चित्तौड़ महाराणा को ब्याई हुई थी रिडमलजी यही चुंडासर गांव गजनेर के पास है वहां पर आ गए और करणी जी को अपना इष्ट मान करके अपने राज्य स्थापना के लिए कहने लगे तो करनी जी  ने इनको मंडोर का राजा बना दिया फिर करणीजी की यही देशनोक जगह कर्म स्थली रही और जब एक बार बीकानेर महाराजा और जैसलमेर महारावल  के बीच में सीमा का विवाद हुआ तो करनी जी ने इस सीमा को सुलझाने का कहा और आपस में संधि करवा दी बीकानेर और जैसलमेर सीमा पर एक धनेरी तलाई थी उसी को ले करके बीकानेर जैसलमेर में लड़ाई होती थी तब करणी जी को जैसलमेर दरबार जैत सिंह जी के कैंसर हो गई जिसको उस समय अदीठ कहते थे उसको ठीक करने के लिए करनी जी जैसलमेर पधारी और जैसलमेर महारावल  की कैंसर को ठीक कर दिया वापस आते वक्त उन्होंने कहा कि जहां में शरीर छोडूंगी वहीं अपनी सीमा मान लेना और वह जगह यही वर्तमान में गडियाला गांव के रिण क्षेत्र है यहां पर करनी जी अपने 106 वर्षीय पुत्र  सिद्धराज के साथ वापस देशनोक जा रहे थे तो यहां पर अपने सारथी सारण बिश्नोई व अपने पुत्र को कहा कि जल लेकर आओ और झारी  में जल नहीं था तो पुत्र तो धनेरी तलाई से जल लाने के लिए गए और पीछे से सारंग बिश्नोई को झारी में से एक बूंद पानी अपने सिर पर डालने के लिए कहा जैसे ही सिर पर पानी डाला करनी जी का शरीर 151 साल की उम्र में कपूर की भांति अग्नि बन गया और सूर्य की  किरणों में  समा गया ।यही वह स्थल है जहां पर श्री करणी जी का शरीर सूर्य की किरणों में लय हो गया। करणी जी अपने साथ में जैसलमेर से पीले  पांच पत्थर लेकर आए थे उन्हीं पर विराजमान हो कर के जल की बूंद सिर पर  डाल करके अपने शरीर को योग अग्नि से कपूर की भांति भष्म करके सूर्य की किरणों में लय हो गए ।बीकानेर रियासत के गांव गड़ियाला को जब बीकानेर राजा गज सिंह जी ने देरावरगढ़ के रावल जालम सिंह जी को यह दो लड़ी ताजीम बख्शी तब से गडियाला ताजीम के रावल ही इस क्षेत्र के करणी जी के परमधाम रिण माता जी  श्री करणी जी के पुजारी है ।यह बात 1763 की है तब से लेकर के आज तक गडियाला ताजीम के रावल ही इस मंदिर की पूजा करते हैं यह मंदिर बड़ा ही चमत्कारी है जिसको तांत्रिक सिद्धियां प्राप्त करनी हो या कोई विशेष सिद्धि प्राप्त करनी हो तो वह गुप्त नवरात्रों में आकर के यहां देवी की पूजा करता है और अपनी शक्तियों व आशीर्वाद को प्राप्त करता है।

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