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देवपालसिंह देवल

देवपालसिंह देवल

5 मई 1948 नै जनम्या देवपालसिंह देवल, बासणी दधवाड़ियान (जिला पाली, राज.) रा भवानीदानजी देवल अर श्रीमती प्रकाशकंवर ऊजल़ (ऊजल़ां जिला जैसलमेर, राज. ) रा मोभी हा। देवकरणजी बारठ लिखै–

आद कहावत चलती आवै, साची जिणनै करी सतेज।
मामा जिणरा हुवै मारका, भूंडा क्यू नीपजै भाणेज?

नाथूराम सिंहढायच नानो, दादो जिणरो माधोदास।
दुषण रहित घराणा दोनूं, कुळ भूषण मामो कैलाश

अंग्रेजी साहित्य में स्नातक हुवण पछै आप भारतीय सेना में एनसीसी रै माध्यम सूं एक कमीशन अधिकारी के रूप में शामिल हुया। उणां छोटी वय में ई हिमालय पर्वतारोहण संस्थान और महू (मध्य प्रदेश) में कमांडो कोर्स नै सफलतापूर्वक पूरो कियो। उणांनै 1971 में भारत व तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान रै सीमाड़ै माथै नियुक्त मिली।

इण परमवीर २८ नवंबर १९७१ रै दिन भारत-पाक रै जुद्ध में बंगलादेश रै मोरचै माथै भारत माता री रक्षा करतां थकां वीरगति वरी। इण वीर री वीरता नै वंदन करतां भारत सरकार वीर चक्र सूं सुशोभित कर चारण जात रो गौरव बधायो।

चारण गौरव देवपाल़ देवल री कीरत नै अखी राखण खातर डिंगल़ रै कैई नामचीन कवियां शब्दांजल़ी अर्पित करी, उणां में ठाकुर अक्षयसिह रतनू, नारायणसिंह सेवाकर, देवकरणजी ईंदोकली रो नाम श्रद्धा रै साथै लियो जावै। इण महावीर नै म्है ई एक गीत कैय, शब्द सुमन चढाया है—

आया अरियांण उरड़ दल़ ऊपर,
जुड़्यो जँग हिंद पाक जठै।
मुड़ण कियो मुड़दां डर मरणै,
अड़ण खड़ो देपाल़ उठै।।१

गयण झड़ै तोपां घण गोल़ा,
बण ओल़ा मंड मेह बठै।
दोयण आय फिर्या रण दोल़ा,
तण खोल़ा देपाल़ तठै।।२

आगल हुयो रीत रख आदू,
करी मरण सूं प्रीत कवी।
जस रा गीत गुंजावण जोवो,
रसा जीत री साख रवी।।३

भारत पाक भिड़्या भड़ भारत,
डर बोतां बिन छेह दियो।
जोतां जगत भान रो जोवो,
लड़ण मोरचो सांभ लियो।।४

साचो सूर लड्यो मन साचै,
काचै तन नह सोच कियो।
राचै भारत नाम रगां रग,
दिल बाचै ज्यूं मरण दियो।।५

परण महोच्छब कियो न पातव,
मरण महोच्छब कियो मही।
धरण महोच्छब रचियो धिन-धिन,
साच करण जस नाम सही।।६

कट पड़ियो भारत हित कवियण,
ज्यूं अड़ियो पग रोप जठै।
जड़ियो जदै माल़ा मुंड जोगी,
ऊ चड़ियो जल़ जात अठै।।७

अम्मर नाम कियो इण अवनी,
देह देश नै देय दखां।
वाह-वाह देपला वीदग,
अंजस कर हर वार अखां।।८

माल़ा हुवो सुमेरू मिणियो,
शहीद सिरोमण देश सही।
च्यारूं पखां ऊजल़ै चारण,
लखां कीरती लाट लही।।९

माधोदास सरीखो मांटी,
हिव दादो धर तूझ हुवो।
धर रखवाल़ देप धकचाल़ां,
वीर सगी मगवाट बुवो।।१०

महि कैल़ास जैहड़ो मामो,
मंडण ऊजल़ जात मनो।
नर तुं जाय नानाणै नाहर,
गौरव रखियो पाल़ गनो।।११

चावी करी बासणी चहुंवल़,
देवल चावल़ चाढ दिया।
कवियण गीध सांभल़ी कीरत,
कज वीरत वरणाव किया।।१२

~~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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