हिंगलाज यात्रा का महत्त्व और बुधगिरी जी महाराज
दसनामी गिरी पंथ में आद्य देवी मा हिंगलाज के पूजन एवं दर्शन का अत्यधिक महत्व है दसनामी संत परंपरा में पूरी पंथ तो है ही शाक्त मत को मानने वाला ! नाथ पंथ में भी हिंगलाज यात्रा को अत्यधिक फल देने वाली पवित्र तीर्थ यात्रा माना गया है वैसे इस दुर्गम तीर्थ की साधु संत अवधुत योगी और संतान कमी अथवा पाप मुक्ति चाहने वाले लोग ही यात्रा करते हैं !
गिरी पंथ का प्रमुख वेद अथर्ववेद है अथर्ववेद में शक्ति उपासना पर बल दिया गया है शक्ति को सभी रुद्रों और वसुओ के साथ संचरण करने वाली तथा सभी देवों और आदित्यों का साथ देने वाली बताया गया है
कहते हैं भगवान श्रीराम को भी ब्राह्मण रावण की भ्रहम हत्या के पाप से मुक्त होने के लिए आग्नेय तीर्थ हिंगलाज में आकर प्रायश्चित स्वरूप माँ हिंगलाज के दर्शन करने पड़े , तथा यंहा तपस्या की ! 51 शक्तिपीठों में प्रधान तथा प्रथम शक्तिपीठ माना जाने वाला यह तीर्थ स्थल अपनी दुर्गमता के कारण भी प्रसिद्ध है ! भौगोलिक दुर्गमता के कारण यहां की यात्रा बेहद कष्ट भरी होती है आज विज्ञान की प्रगति के कारण इस यात्रा में थोड़ी सुगमता आई है पर जब मोटर गाड़ियां नहीं थी उस समय कराची (पाकिस्तान) से हिंगलाज तक पहुंचने में 45 दिन का समय लगता था ! इस दुर्गम यात्रा के बीच अधिकांश लोगों की मौत हो जाया करती थी ! उस समय हिंगलाज यात्रा किसी कठिन चुनौती से कम नहीं थी मा हिंगलाज की यात्रा की जितनी बड़ी महिमा है उतनी ही कठिन यह यात्रा है
गिरी पंथ में हिंगलाज यात्रा की परंपरा आदि प्रवर्तक नारायण गिरि से पडी ! नारायण गिरी ने सिद्धि संप्राप्ति के लिए हिंगलाज यात्रा कि , बाद में उनकी ही पीढ़ी के परम प्रतापी संत ब्रह्मगिरि ने हिंगलाज की ऐतिहासिक यात्रा की ! ब्रम्हगिरी के 12 शिष्यों में ही नागेंद्र गिरी तथा उपारनाथ गिरी माने जाते हैं ! ब्रह्मगिरि तपोनिष्ठ संत है उन्होंने इस दुर्गम तीर्थ यात्रा का निर्णय किया और हिंगलाज से बारह कोष पूर्व में अपना धूना लगा दिया तथा मां हिंगलाज के दर्शन के लिए तपस्या करने लगे वे मां के साक्षात दर्शन करना चाहते थे 12 वर्षों की उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर मां ने साक्षात उपस्थित होकर दर्शन दिए तथा रिद्धि एवं सिद्धि नामक सिद्धियां ब्रह्मगिरि को प्रदान की , शक्ति के उपासक ब्रह्मानंद गिरी ने ‘शाक्तानन्द तरंगिनी ‘ नामक एक प्रसिद्ध संत ग्रंथ की रचना की !
हिंगलाज , वर्तमान पाकिस्तान के बलूचिस्तान राज्य में सिंधु नदी के मुहाने से 80 मील दूर लासबेला जिले की ल्यारा तहसील में है ! यह स्थल ऊंची पर्वत मालाओं से गिरा हुआ है तथा यहां पहुंचने से पूर्व दुर्गम रेगिस्तान को पार कर चंद्रकूप ज्वालामुखी को पार करना पड़ता है यहां से आगे दुर्गम पहाड़ी रास्ता है हिंगलाज यात्रा दुर्वह है वही उसके नियम भी अत्यंत कठोर हैं यात्रा में ब्रम्हचर्य पालन के अलावा स्वयं की सुराही का पानी किसी को नहीं देने का नियम है , ऐसे में अनेक लोगों की तो तपते रेगिस्तान में इन कठोर नियमों के कारण भी मौत हो जाया करती थी ! पर तपस्वियों के लिए तो यह भी एक तपस्या थी हिंगलाज में अप्रैल माह में मेला भरता है आज तो इस मेले में लोगों की भीड़ जुटती है पर कुछ वर्ष पूर्व गिनती के लोग ही पहुंच पाते थे !
एक युवा संत बुद्धगिरि ने भी हिंगलाज यात्रा का मानस बनाया और इस चुनौतीपूर्ण तीर्थ यात्रा के लिए अपने गुरु लक्ष्मण गिरी से आज्ञा मांगी ! लक्ष्मण गिरी बुद्ध गिरी के तप को जानते थे इसलिए उन्होंने सहर्ष इस तीर्थाटन की स्वीकृति प्रदान कर दी !
हिंगलाज में भी कुंभ की भाँती 12 वर्षों से बड़ा मेला भरता है बुद्ध गिरी ने भी इस अवसर का लाभ लेने की सोची तथा फतेहपुर से हिंगलाज दर्शन के लिए रवाना हो गए ! साधक जब ठान ले तो सिद्धि को प्राप्त करना कठिन नहीं होता अनेक महीनों तक पदयात्रा करते हुए बुद्ध गिरी लाशबेला राज्य की राजधानी शोणवेणी होते हुए चन्द्रकूप पर्वत को पार करके बुद्ध गिरी अघोर नदी तक पहुंचे वहां उनकी भेंट अघोरी बाबा से हुई यह अगोरी बाबा बुद्ध गिरी के गुरु लक्ष्मण गिरी जी के गुरु भाई थे , मां हिंगलाज के शक्तिपीठ तक ले जाने का कार्य अघोरी बाबा का होता है वही गुफा के भीतर आद्यशक्ति की प्रतिमा के दर्शन कराते हैं आज भी इस शक्ति पीठ में दर्शन कराने वाले महन्त को अघोरी बाबा ही कहा जाता है यह हिंगलाज महापीठ के मठाधीपति होते हैं !
जब बुध गिरी महा माई के दर्शन संपन्न कर फतेहपुर लौट आए तब भी उनकी स्मृति से सर्वतत्वमयी आध्या शक्ति की वह ज्योतिर्मई कांति लुप्त नहीं हुई तो 1852 मैं नवरात्रा के समय जगदंबा परास्वरुप ने साक्षात उन्हें दर्शन देकर कृत कृत किया और कहा तुम यहीं प्रतिमा की स्थापना कर मेरे दर्शन कर लिया करो इस प्रकार उनकी हिंगलाज यात्रा सर्वतो फलदायिनी सिद्ध हुई ! संत की तपस्या का फल आम जन को भी मिला आम जन के लिए दुर्गम हिंगलाज यात्रा तो संभव नहीं है किंतु चैतन्य रूपा मां परमेश्वरी के दर्शन यहां जागृत तपोभूमि बुद्धगिरी मंढी (फतेहपुर, सीकर) में आसानी से किए जा सकते हैं तथा अपने पापों का निवारण कर मोक्ष की कनुकामना की जा सकती है !
परमतपस्वी बुद्धगिरी सिद्धपुरुष तो थे ही पर मां के साक्षात दर्शन पाकर वह स्वयं महाप्राण शक्ति के प्रयाय हो गए !
इष्टदेवी हिंगलाज के दर्शन से बुद्ध गिरी अत्यंत प्रसन्न हुए उन्हें अपना साधु जीवन सफल हुआ लगा जिस ककेडे के पेड के नीचे वे ध्यान लगाया करते थे वहां से कुछ ही हाथ पूर्व में उन्होंने अपने हाथों मां का एक छोटा सा चबूतरा बनाया तथा उस पर मां की प्रतिमा स्थापित की मां हिंगलाज के दर्शन की बात श्रद्धालु जनों में जंगल की आग की भांती फैल गई जिसे भी पता लगा वही प्रसन्न हुआ और बुद्ध गिरी मंडी की ओर दौड़ पड़ा !
नवरात्र में अष्टमी के दिन बिना किसी औपचारिकता के मंदिर की स्थापना हो गई ! देवी भक्तों के लिए यह किसी वरदान से कम बात न थी उनके लिए अतिरिक्त प्रसन्नता का विषय था क्योंकि 51 देवियों में अन्य देवियों के मंदिर तो यत्र-तत्र मिल जाते हैं पर दुर्गम स्थल पर अवस्थित मा हिंगलाज का मंदिर अगर सुगम्य स्थल पर हो जाता है तो इससे बड़ी सौभाग्य की दूसरी और क्या बात हो सकती है !
हिंगलाज तीर्थ (पाकिस्तान) में मां के अद्भुत विग्रह में दीपक की अखंड जोत जलती है यहां भी स्थापना के प्रथम दिन से प्रतिमा के समक्ष अखंड ज्योति प्रारंभ की गई जो लगभग 200 वर्षों से निरंतर जल रही है !
यह हिंगलाज धाम सीकर से पश्चिम की और 60 किलोमीटर दुर बीकानेर रोड पर फतेहपुर के पास में स्थित हे मुझे भी इस हिंगलाज माँ के दर्शन का लाभ मिला इस दर्शन लाभ और पूरी यात्रा का श्रेय में आयुक्त साहब श्री राम सिंह सा पालावत ,हणुतिया को दूंगा और जीवन भर आभारी रहूँगा जिन्होंने मुझे ये दर्शन लाभ दिलाया !
~~प्रेषित गणपतसिंह चारण मुण्डकोशिया