चारण समाज में देवल देवी के नाम से चार लोक देवीयां अवतरित हुई थी।
उनमें प्रथम- जैसलमेर के बोगनयायी गांव के मीसण शाखा के चारण अणदा जी की पुत्री एंव करणानन्दं आणंद की बहिन थी, जिन्होने वीर पाबुजी राठौड़ को केसर कालमी घोड़ी दी थी,
ईसके सम्बधं में एक दौहा प्रसिद्ध हैं:-
अणदै री मीसण नमो, झलै त्रिसुळां झल्ल।
पाबु ने दी कालमीं, गढांज राखण गल्ल।।
ईसके सम्बधं में एक दौहा प्रसिद्ध हैं:-
अणदै री मीसण नमो, झलै त्रिसुळां झल्ल।
पाबु ने दी कालमीं, गढांज राखण गल्ल।।
द्वितीय:- देवलबाई प्रसिद्ध भक्त कवि ईसरदासजी की धर्मपत्नी जो शक्ति का अवतार मानी जाती है।
तृतीय:- देवल देवी आढांना नामक गांव के स्वामी आढा शाखा के चारण मांढाजी के पुत्र चकलुजी की पुत्री थी, जो सुवाप गांव के स्वामी किनीयां शाखा के चारण मेहाजी की पत्नी थी, करणीजी आदि सातों बहनों को जन्म देने का सौभाग्य इसी देवल देवी को था, इन्हे भी शक्ति का अवतार माना जाता है।
चतुर्थ:- देवल देवी माड़वा गांव के सिंढायच शाखा के चारण भल्ला जी की पुत्री थी इन्हे भी शक्ति का अवतार माना जाताहै।
चारण बरण चकार में, देवल प्रगटी दोय।
पैली तो मीसण थई, बीजी सिंढायच जोय।
सवळ घड़सी आंख में, होतो दुष्ट अदीठ।
सो बळिहारी देवला, आन कियोज मजीठ।।
मांणक हंदो काळजो, रोज बींधतो आंण।
सो पच देवल गांळियो, सिंढायच सब जांण।।
पैली तो मीसण थई, बीजी सिंढायच जोय।
सवळ घड़सी आंख में, होतो दुष्ट अदीठ।
सो बळिहारी देवला, आन कियोज मजीठ।।
मांणक हंदो काळजो, रोज बींधतो आंण।
सो पच देवल गांळियो, सिंढायच सब जांण।।