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करनी माता
माता करनी रौ जनम वि.सं. 1444 री आसोज सुदी 7 परवाणै 20 सितम्बर 1387 ई. शुक्रवार रै दिन जोधपुर रै त्हैत आयै सुवाप गाम मैं हुयौ हौ। इणां रै पिता रौ नाम मेहाजी किनिया हौ अर माता रौ देवल आढी। मूलदान देपावत मुजब करनीजी सूं पैली छह बैनां ही, जद के चंद्रदान चारण मुजब इणां सूं पैली पांच बैनां ही। इणां रै जनम रौ नाम रिद्ध (रिद्धि) बाई हौ। जद भाई रै घरां इणां रै रूप में अेक और बेटी रौ जनम हुयौ तौ इणां रा भुवाजी इणां रै सिर माथै ठोलौ मारतां कैयौ- ‘लो, फेर भाटौ आयग्यौ!’ ठोलौ मारण रै समजै ई उणां रै हाथ माथै हवा बैयगी, हाथ री आंगलियां आपस में जुड़गी। चंद्रदान चारण मुजब इण चमत्कार नै देख’र इणां रा भुवाजी मेहाजी सूं बोलिया- “आ लड़की संसार में आपरी ‘करणी’ दिखावैला। इणनै अबै सब ‘करणी इज कैवजौ।” तद सूं ई इणां रौ नाम ‘करणी’ पड़ग्यौ अर आपरै भावी जीवण में इणी नाम सूं चावा हुया। अंबादान बारठ मुजब पांच बरस बाद जद इणां रा भुवाजी इणां नै सिनान कराय रैया हा तौ अै पूछियौ- “भुवाजी, आपरै हाथ रै ौ कांई हुयग्यौ?” पडूत्तर में भुवाजी मांड’र पूरी बात बताई। उण बगत कन्या रिद्धू उणां रौ हाथ आपरै हाथ में लेय’र सैलावती थकी बोली- “आपरी आंगलियां तौ काम करै है नीं! कियां कैवौ के अै काम नीं करी, सो ‘करणी’ नामकरण अठै सूं ई हुयौ। मूलादान देपावत मुजब टाबरपणै में आपरा भुवाजी सूं कंधी करावता थकां उणां री आंगलियां नै सीधौ करण वाली ‘करणी’ बाजी। जूनी लिखावट में अक ग्रंथां में करनी सबद रौ इज प्रयोग मिलै। आजादी रेै बाद राजस्थानी रूप बणावण रै प्रभाव सूं ‘करणी’ सबद रौ इज प्रयोग मिलै। आजादी रै बाद राजस्थानी रूप बणावण रै प्रभाव सूं ‘करणी’ सबद प्रचलित हुयौ जिणरी आज देखादेखी सब लोग लिखै। इणां रै जनम बाबत अेक दूहौ इण मुजब देखम जोग है-
दुसल सुत मेहा घरै, गाम सुवाप मंझार। 
चौदह सौ चमालवैं, आय लियौ अवतार।। 

करनीजी रौ ब्याव लगैटगै 21 बरस री उमर में साठीका गाम रै बीठू कैलू रै बेटै देपाजी सूं हुयौ हौ। चंद्रदान चारण मुजब परणीज’रर साठीका जावतां वै आपरै पति नै मारग मैं ई आपरै जीवण रौ उद्देस बतावता थकां साफ कैय दियौ हो के उणरौ जीवण सांसारिक सुख भोगण अर घर गिरस्थी चलावण खातर नीं हुयौ है, बल्कै राव अर रंक नै सदाचार, न्याव अर मरजादा रौ मारग बतावण सारू हुयौ है। जिका के भोली -ढाली गरीब जनात माथै भांत-भांत रा अन्याव कर अत्याचार करै। कैयौ जावै के करनीजी रै अनुरोध करियां देपौजी उणां री छोटी ब ैन गुलाब बाई सूं ब्याव कर्यौ जिणसूं उणां रै च्यार बेटा अर अेक बेटी हुई। किशोरसिंह बार्हस्पत्य ई ‘करनी चरित्र’ में ई देपौजी रै गुलाब बाई सूं दूजै ब्याव री बात लिखी है। किणी ई प्राचीन ख्या, पुराभिलेख इत्याद में अैड़ौ उल्लेख नीं मिले। बख्तावर मोतीसर रचित ‘करनी-प्रकाश’ मुजब करनीजी रै च्यार बेटा पूनौ, नगौ, सीहौ अर लाखण पैदा हुया हा। करनीजी रै जनम सूं पैली इम मरूछेत्र में अनेकूं छोटा-छोटा राज्य हा। वै अेक दूसरै रै अठै लूट-मार कर्या करता हा। इण सूं इण छेत्र री प्रजा अणूंती ई दुखी ही। जद वि. सं. 1300 रै आसै-पासै राठौड़ कुंवल सेतराम रै बैटे राव सीहा रौ अभ्युदय हुयौ तद मारवाड़ रै पाली अर उणरै आखती-पाखती रै इलाकां में मुसलमाना शासकां रौ अत्याचार अणूंतौ ई बधग्यौ हौ। प्रजा री पुकार माथै राव सीहा आपरौ राज्य थापन कर्यौ। राव सीहां सूं लेय’र राव वीरम तांी राठौड़ां री कोई दस पीढियां लगौलग मारवाड़ री प्रजा री सुरक्षा अर भलाई सारू बडी-बडी लड़ाइयां लड़ी अर आपरौ बलिदान दियौ। वि.सं. 1440 में जद वीरम जुद्ध में काम आयग्यौ तौ उणरौ बेटौ चूंडौ गादी माथै बैठ्यौ। वि.सं. 1475 में कान्है रौ देहांत हुयग्यौ अर गादी माथै उणरौ भाई सत्तौ बैठ्यौ। राव सत्तै रै बाद रणमल नै करनीजी री किरपा सूं जांगल रौ राज्य प्राप्त हुयग्यौ हौ अर उणां रै ई आसीरवाद सूं वि.सं. 1487 में उणरौ मंडोर माथै ई अधिकार हुयग्यौ हौ। रणमल रै चित्तौड़ मार्यौ जावण रै बाद वि.सं. 1496 री काती बद पांचम नै राव जोधै रौ राजतिलक हुयौ तौ करनीजी आपरै बेटै पुण्यराज (पूनै) नै राजतिलक सारू भेज्यौ। उण बगत मंडोर माथै महाराणा कुंभा रौ अधिकार हौ। वि.सं. 1510 में राव जोधै जोधपुर दुरग री नींव करनीजी रै हाथां सूं रखवाई। राव जोधै जोधपुर रौ राज्य आपरै बडै बेटै बीकै नै नीं देय’र आपरी हाडी राणी जसमादे रै बेटै सातल नै देवणा चावता हा। इण बात सूं उणरौ भाई काधल नाराज हुयग्यौ अर बात बधगी। बीकै नै छोटा-मोटा राज्य फतै कर’र नवै राज्य रौ राजा बणावण री तेवड़’र वौ उणनै लेय’र जोधपुर सूं निकलग्यौ। कांधल अर बीकौ दल-बल समेत देशनोक करनीजी कनै पूग्या। अर करनीजी रै आसीरवाद अर सहायता सूं ई वै ई छोटै-मौटै राज्यां माथै फतै हासल करी।
आवड़ तूठी भाटियां, गीगाई गौडांह। 
श्री बरवड़ सीसोदियां, करणी राठौडांह।। 

मतलब- “राजस्थान रै च्यार राजपूत कुलां माथै च्यार शक्तिसरूप देवियां रै वरदहस्त रैयौ, जिणसूं उणां रौ राजकुलां रै रूप में अभ्युदय हुयौ। भाटियां माथै आवड़, गौडां माथै गीगाई, सीसोदियां माथै बरवड़ अर राठौड़ां माथै करणी तूठी।” उण बगत राठौड़ां रै प्रति भाटियां रौ बैर अेक अभिशाप-सो बण्यौड़ौ है। सो करनीजी दिव्यशक्ति सूं कोी तजबीज बैठावण लाग्या। उणं दिनां पूगल रौ राव सेखौ मुलतान री कैद में हौ। राव सेखै री पत्नी कररनीजी सूं उणनै छुटवावण री अरज करी। उचित मौकौ देख’र करनीजी सेखै री पत्नी सूं बीकै सारू उणरी बेटी रंगकुंवर रौ हाथ मांग्यौ।

सेवट वि.स.ं 1539 में बीकै रौ ब्याव रंगकुंवर रै साथै सम्पन्न हुयौ। कन्यादान रै बगत करनीजी राव शेखै नै मुगत करवा’र राजर कर दियौ। भाटियां सूं ब्याव-संबंध हुय जावण सूं बीकै सारू आपरै नवै-नवै राज्य रै बधापै रा मारग खुलग्या तौ करनीजी राती घाटी में वि.सं. 1542 में बीकानेर दुरग री नींव राखी। वि.सं. 1545 री बैसाब सुदी बीज, शनिवार रै दिन दुरग अर नगर री प्रतिष्ठा करीजी। इण मौकै कांधल बीकै रौ राजतिलक करनीजी रै हाथां सूं करवावण रीं इंछा लियां देशनोक पूग्यौ। पण करनीजी कैयौ के म्हैं रणमल अर जोधै रे राजतिलक रै बगत ईं नीं गई, सो अबै ईं नीं चालूंला।आपरै बेटै पुण्यराज (पूनै) नै भेज दियौ। इण भांत करनीजी री किरपा अर सहायता सूं बीकै नै आपरै पिता राव जोदै सूं ई बडै राज्य रौ राजा बणण रौ सौभाग मिल्यौ।

करनीजी जद लगैटगै 67 बरस रा हा त उणां रै पति देपौजी रौ देशनोक में सुरगवास हुयग्यौ ह। अैड़ी धारणा है े करनीजी आपरै शरीर रौ त्याग लगैटगै 151 बरस री उमर में कर्यौ।
देशनोक में आयौड़ै निज मिंदर रौ शुभारंभ करनीजी रै बणायौडै गुंभारै सूं ई हुयौ जिणनै करनीजी पूजा स्थल रै रूप मे ंकाम मे ंलिया करता हा। करनीजी री आग्या सूं ई उणां रै भगत जैसलमेर रै शिल्पकार बन्नै खाती रै हाथां बणायोड़ी प्रतिमा वि.सं. 1595 री चैत सुद चवदस, शनिवार रै दिन थापन करीजी। तद सूं उणां रै च्यारूं पेटां रा वंशज लगौलग पूजा अरचणा करता आय रैया है। जद सूं लेय’र आज तांी करनीजी रौ औ मिंदर नित निखरीजतौ थकौ मौजूदौ सरूप पायौ है। करनीजी सूं संबंधित केई चमत्कारजनक घटनावां अर उणां रै दियोड़ा परचा चावा है। करनीजी सूं संबंधित अणमाप साहित्य काव्य रै रूप में मिलै, जिणरौ सिरजण चारण कवियां कर्यौ है। करनीजी सूं संबंधित तीन खास पीठ-स्थन है- सुवाप, देशनोक अर धिनेरी।

दयालदास सिंढायच री ख्यात मुजब वि.सं. 1594 री चैत बदी बीज रै दिन करनीजी आपरै हाथां सूं गुंभारौ बणायौ जिणमे जाल रा लट्ठा काम में लिया। गुंभारौ बणाय’र करनीजी जैसलमेर पधारिया। जैसलमेर पूग’र रावण जैतसी नै नीरौगौ कर्यो। उठै सूं बावड़ता अै बैंगटी पूग्या जठै हरभू सांखलौ उणां सूं रोटी री मनवार करी। त करनीजी कैयौ- ”हरभू ! संतोख कर भाई ! ” बैंगटी सूं गाम गड़ियालै आया जठै खराढञ्या तलाई ई ही। इण तलाई रै कनै ई धिनेरी तलाई ई ही। जठै करनीजी रथ रूकवा’र उतर्या। आ तलाई बीकानेर अर जैसलमेर राज्यां री सींव माथै आई थकी है। दयालदास री ख्यात मुजब अठै इज वि.सं. 1595 री चैत सुदी 9, गुरुवार रै दिन आपरौ शरीर-त्याग कर्यौ। उण बगत इणां रौ बेटौ पूनौ ई साथै हौ।

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