सुरसत थारी सेव,
गणपत नै ध्यावूं गहर।
भल ुकती दौ भेव,
दारु-दूषण दाखवूं।।1
मारु डूब मरंत,
दारू रै दरियाव में।
उता समंद जल अंत,
मरे न डूबै मांनवी।।2
इमरत देवां आप,
दारू असुरां नै दियौ।
मंगल अठी मिलाप,
दंगल उण दिस देखलौ।।3
पी गैलौ पांणीह,
बकै रात भर बावला।
व्है धन री हांणीह,
पांणी दै मिनखापणै।।4
सी नह उडै सरीर,
पैठ उडै दारू पियां।
नाली हंदौ नीर,
गंगाजल ज्यूं मत गिटौ।।5
दारू कारण देख,
कोट किला बिकग्या किता।
मार करम में मेख,
उण मारग हालै अजे।।6
दांम उधार न देय,
दुनियां दारूखोर नै।
लिछमी कांनौ लेय,
बूडापौ बिगड़ै बुरौ।।7
गालै दारू गात,
हद पीधां लकबौ हुवै।
बिगड़ै सारी बात,
लागै भूंडौ लोक में।।8
जात-जात रा जोग,
मोटियार कितरा मुंआ।
इण दारू री ओग,
कुलवट रौ हुयग्यौ कदन।।9।।
दारू पैली दास,
वणै फेर दोस्त वले।
पछै नांख जमपास,
मारै घांटौ मुरड़ नै।।10।।
डिगतोड़ा बेड़ौल,
हिलतोड़ा देख्यां हसै।
छेकड़ मद री छौल,
खुद डबै पड़ खाड में।।11
तूली बलतां तंत,
लोय साव छोटी लगै।
झाल न पछै झिलंत,
गिणौ आग मद एक गत।।92
ऊतर जावै आब,
झिलियां दारू री झपट।
खांनौ हुवै खराब,
हर ठौड़ा अपजस हुवै।।13
अपत बीज ऊगौह,
गैबाऊ वधियौ गजब।
पांणी नह पूगौह,
(जठै) दारू पूगी देस में।।14।।
उन्नति रौ व्है अंत,
पतन तणै मारग पड़ै।
दारू में दरसंत,
निसचै लक्षण नरक रा।।15
हत्या लूट हुवंत,
जुलम पाप सगला जके।
चाकू छुरा चलंत,
दारू कारण देखलौ।।16
दुरघटना दारुह,
दोजख दुरमत दैण दुख।
सांप्रत इण सारुह,
आं री राशी एक है।।17
शराब अर सिगरेट,
दुसमण मोटा देह रा।
ऊमर रै आघेट,
दीठां व्है भूंडी दशा।।18
प्रात समै मद पीण,
आमिष मं नीयत अड़ी।
है नर वे गुण हीण,
ठाली मोटा ठीकरा।।19
चावा चौतालैह,
मोटा मिनख मनीजता।
हाल्या हेमालैह,
दारू सूं बिगड़ी दशा।।20
हाला पियै हमेस,
जाबक प्याला जहर रा।
फींकर देवै फेस,
लखै नही लवलेश वे।।21
लीवर री बण लाठ,
ओजर वधै अडोपतौ।
घटतौ जावै घाट,
पछतावै सेवट पछै।।22
दारूखोरां देख,
घर पड़ौस में व्है घृणा।
विगड़ै डौल विसेख,
हेतालू अलगा हुवै।।23
चेहरै रातड़ छाय,
आंख्यां लगै अडोपती।
दारू में दरसाय,
बोली हाली बावली।।24
डिगे लड़थड़ै डील,
जीभ थोथलीजै जिकां।
कोजौ ढंग कुचील,
दारुखोरां देखलौ।।25
बडा जोध बलवांन,
मुंआ जवांनी मांयनै।
देखै पण नादांन,
नशेड़िया सुधरै नहीं।।26
हुवै जीवतां हांण,
मरियां ही अपजस मिलै।
पी दारू तज प्राण,
वंश लजावै बावला।।27
प्रगटै पूरब पाप,
अकल घटै इन्सांन री।
शराब पैणौ साप,
पियैसास ठा नह पड़ै।।28
रिश्वत रौ रेलौह,
दारू हंदी दोस्ती।
धरम नहीं धेलौह,
बेशक खेलौ बीगड़ै।।29
झूठी घसकां झाड़,
दुरविसनां रा गुण दखै।
तिल रौ करदै ताड़,
रिणी वखांणै वारुणी।।30
दारु हंदौ दौर,
आजादी री ओट में।
पोची पाछल पौर,
सोची नहीं शराबियां।।31
धन री उडसी धूड़,
बिगड़ी में सब बदलसी।
चूड़ायण ज्यूं चूड़,
कढसी मदिरा कालजौ।।32
हिलिया दारू हाय,
चोखै कुल रा छोकरा।
पेख जिकां दुख पाय,
घर वाला मन में घुटै।।33
दूजां देखादेख,
शराब पीणौ सीखियौ।
भेखत वालौ भेख,
जांणौ नकटा पंथ ज्यूं।।34
दारू रै दरड़ैह,
पड़िया सौ अरड़ै पछै।
करड़ै फैंकरड़ैह,
घरड़ै रौ घांणियौ।।35
सांप्रत नह संतोष,
खोस लेत घर री खुशी।
दारू में सौ दोष,
राख होश अलगा रहौ।।36
जग प्रमांण जूनाह,
नशा नमूना नाश रा।
रुल टाबर रुनाह,
घर सूना हुयग्या घणा।।37
भविष्य कांनी भाल,
कर प्रतपाल कुटंब री।
बोतल आगी बाल,
मद है अकाल मौत ज्यूं।।38
शराब सत्यानाश,
कर देसी निसचै कहूं।
जीवण जिन्दा लाश,
दिन थोड़ा में देखस्यौ।।39
हाथी जिसड़ा हेर,
मरग्या, साथी मोकला।
दिन आथमतां देर,
इतरी लगसी आपरै।।40
ज्यां जलम्यां घण जांण,
बांटी हरख बधाइयां।
हद की दारू हांण,
रुपिया मांगै रोवता।।41
हुय मदवा लजहीण,
लीण अलीण न लेखवै।
करवै पाप कमीण,
हाला सूं मति छीण व्है।।42
बजता बेवड़ियाह,
तोटै तेवड़िया तिके।
पी दारू पड़ियाह,
वीगड़िया कुल वीदगां।।43
दारु हंदी दैण,
खत्रवट मांही खैण ज्यूं।
रे मार्यौ अध रैण,
डैण भिखारी डोकरौ।।44
बींद समेत बरात,
विन परण्यां पाछी वली।
औ दारू उत्पात,
मुदै कलै रौ मूल है।।45
होय नशै धुत हाय,
सुत इकलौती मार शठ।
पछै रोय पछताय,
उम्र कैद भुगती अधम।।46
दारू पीवण दांम,
जणणी नह दीधा जदे।
कियौ कपूत कुनांम,
मारी चकुवां मावड़ी।।47
भरी नींद में भ्रात,
अग्रज नै हणियौ अनुज।
घटियोड़ै की घात,
पी दाूर पागलपणै।।48
पी मद मार्या पूत,
बहन भ्रात माँ बाप नै।
कलँक तणी करतूत,
कियौ नाश नेपाल कुल।।49
रात समै ससुराल,
ग्यौ नागी तरवार ग्रह।
दारुखोर दकाल,
पुलिस ले गई पकड़ नै।।50
जुलमी मद रै जोस,
छोकरियां नै छेड़वै।
दे धक्का निरदोस,
मारै चलती रेल में।।51
पी मद चंवरी पूग,
कियौ बींद धमचक कलह।
सांप्रत आई सूग,
बनड़ी नटगी ब्याव सूं।।52
कूड़ी सौगन काढ,
पिता तणौ लोही पियै।
दारू री जमदाढ,
मिनखपणै नै मार दै।।53
बेटै आगल बाप,
पगां मेलियौ पोतियौ।
धूड़ धरम में धाप,
तौई नह दारू तज्यौ।।54
आसव पी अधरात,
घात करण पूगौ घरै।
भाल पिता निज भ्रात,
कपूत खग सूं चोट की।।55
बेच देत बिगड़ेल,
जायदाद घर री जमीं।
खूट्यां बिगड़ै खेल,
दारू कर दै दुरदसा।।56
पी दारू दुख पाय,
भूखा टाबर भाल नै।
फन्दौ गलै फसाय,
आपघात करलै अधम।।57
जो मद पीवण जाय,
जाय नहीं जागम जमै।
जमघट रात जगाय,
मरघट रै मारग मुड़ै।।58
थोथौ व्है तन थूल,
हाथ पगां हिय बल हटै।
मद विनाश रौ मूल,
नित पीवै निरभागिया।।59
नित मिलवा रौ नेम,
सांझ पड़ंत शराबियां।
पछै मिटै वो प्रेम,
हाड गलै जद दूर व्है।।60
भूटक खाय भचीड़,
भांगै टांगड़़ भोगनौ।
पाटा बांधै पीड़,
रांधै छाती पी रूला।।61
दारू पी दुख देत,
करमहीण नर कुलखणा।
चित में रहै न चेत,
रलै आबरू रेत में।।62
बुझियै मन माँ बाप,
जोड़ायत टाबर जगै।
सब दिन रै संताप,
मद पी पागल मारदै।।63
नागा हुय नाचंत,
माँ बहनां रै सांमनै।
नाकां नीर छिलंत,
मदवा मरै कुमौत सूं।।64
माँ-जायोड़ा मार,
कितां बाल हत्या करी।
करवै बलात्कार,
जुलमी भुगतै जेल में।।65
विटल होय बेचेत,
मूतर दै गाभां महीं।
दुनयिां लांणत देत,
मदवै सूं लाजां मरै।।66
मर्यां जाय मोकांण,
पाछा जल दारू पियै।
हरख हुवौ कै हांण,
गतराड़ां रै एक गत।।67
जित ही सनमन जोय,
पसंद करै पियक्कड़ां।
खलियोड़ा पत खोय,
गुटकीबाजां एक गुट।।68
गरीब कन्या गाय,
खूंटै दारुखोर रै।
हुवै पंच ज्यां हाय,
राड़ां देवै रात-दिन।।69
दूर हूंत दुरगंध,
आवै तन सूं उबकती।
रोम-रोम में रंध,
शराब अर सिगरेट री।।70
जोड़ायत ढिग जाय,
हेज कियां नफरत हुवै।
अवस ऊबका आय,
बासै मूंडौ अत बुरौ।।71
रुलता आधी रात,
उथड़कता घर आवसी।
बिगड़ै लारै बात,
सूना रूना सांपरत।।72
असली रहै न अंश,
पड़दां में लड़दा पड़ै।
वीगड़ जावै वंश,
दारू करदै दोगला।।73
जुलमी ठेकै जाय,
मद गटकावै मोकलौ।
पड़ हेठौ फल पाय,
मुख पर कुत्ता मूतरै।।74
दारू खरचै दांम,
गिलास तणा गुलांम वे।
करै न आछा कांम,
निपट हुवै बदनांम नर।।75
पैठ पईसौ पांण,
मांण म्रजादा सब मिटै।
हुवै घणेरी हांण,
जांण सुरा जीरांण ज्यूं।।76
जिके पियै नित जांम,
जांणै जिके हरां ज्यूं।
ताकत अकल तमांम,
तुलना कर देखौ तिकां।।77
पिता तणौ धन पाय,
बना फनाफन बीगड़ै।
जद तौलत निठ जाय,
पछतावै रोवै पछै।।78
मांग उधारौ माल,
नह देवै पाछौ निलज।
दारू तणा दलाल,
खोटी संगत सूं खलै।।79
सगपण मांय शराब,
ब्याव न व्है दारू बिनां।
दी जिंदगांणी दाब,
सोग भंगावण में (इ)सूरा।।80
भेली हौवे भीड़,
पीवण दारू रै पगा।
बोतल तणा बटीड़,
व्याव सगायां में विधन।।81
सगपण मांही साठ,
बरात में व्है बेवड़ा।
ठकराई मद ठाठ,
आपस में नीं ओलखै।।82
बोतल नै बाजोट,
चसम देखियां छिन चढ़ै।
मिटगी म्रजाद मोट,
रे इण छोरारोल में।।83
बोलै ओछा बोल,
तंग करै जावै तठै।
पण समाज में पोल,
शराबियां नखरा सहै।।84
बिस्तरै देवै बाल,
फेर गिलासां फोड़दै।
बण जांनी बिकराल,
पी दारू बांथ्यां पड़ै।।85
छिकै लेत मद छाक,
मुफत मिल्यां अणमाप रौ।
उण ही ठौड़ उलाक,
सब घर करदै सूगलौ।।86
जिकां बड़ेरां जोग,
सब बातां कीनी सही।
नर जलम्या नाजोग,
करै नाश घर कीरती।।87
अन्न तणौ आधार,
मूरख घण खायां मरै।
पीधां मद अणपार,
कौ मरियां अचरज किसौ।।88
मरै घमा मजदूर,
बेकसूर आयै बरस।
जद ठा पड़ै जरूर,
हाला जहरीली हुती।।89
कच्चा शराब काढ़,
बेचै शठ पीवै विकल।
गिटतां छूटै गाढ़,
घमआ रुलै इक साथ घर।।90
मटकै मांही मूत,
रालै बिच्छू ऊंदरा।
तिण मद री करतूत,
मरै घणेरा मांनवी।।91
हद पीधोड़ौ होय,
डौल देख टाबर डरै।
कांनौ लै हर कोय,
शराबियां सूं सड़क पर।।92
ढीलै गलै ढलाय,
प्रथम बार मद पीवतां।
लगै कालजै लाय,
मूंडौ भूंडौ मिचलकै।।93
होवै तन धन हांण,
शराब अर सिगरेट सूं।
पढ़लौ शास्त्र प्रमांण,
अदालतां आदेश नै।।94
इण दारू री आग,
भढ़ केइ हुयग्या भूंगड़ा।
लिपलां संगत लाग,
निरभागी समझौ नहीं।।95
पीवणिया मत पेख,
नीं पीवणियां नै निरख।
रख विवेक री रेख,
दूरदृष्टि सूं देखणौ।।96
सैणकहै समझाय,
विध-विध सूं दारू बूरौ।
दिल नह आवै दाय,
करमहीण गिनर न करै।।97
मर जासी माईत,
भाई टल जासी भलै।
मतलब वाला मीत,
बात न करसी उण बखत।।98
मुंहगाई री मार,
नौकरियां नाका लग्या।
बिनां ग्यांन बेकार,
वपरावै दारू बुरौ।।99
चित में व्है चीयाप,
दवा वस्त्र घी दूध रौ।
मद पीवौ अणमाप,
इणरौ किसौ अड़़ाव है।।100
सुणै नहीं सत्संग,
वणै नहीं तीरथ वरत।
भले रंग में भंग,
निरलज करै नशेड़िया।।101
वरतै मंगलवार,
व्है मिन्दर यासोग व्है।
विटल न करै विचार,
दुरविसनी दारूड़ॢया।।102
मांदा व्है माईत,
अथवा पौढ्या आंगणै।
विटलां रात व्यतीत,
हायपियां बिन नह हुवै।।103
हुवै घाट हरद्वार,
पावन गीता पाठ व्है।
दारू कंठ डकार,
फूल सरावै फीटला।।104
हद पीधो मद होय,
घर में डरा व्यापै घणौ।
जुलमी री गत जोय,
कलपै टाबर कांमणी।।105
राकस गत पी रोल,
कूटै मारै कुटंब नै।
घर मांही विष घोल,
मदवा पागल हुय मरै।।106
निलज कियौ घर नाश,
घण टाबर लाशां धरी।
पियौ बैठ मद पास,
दिन ऊगै तांी दुसट।।107
ग्याबीता बिन ग्यांन,
धन खरचै खावै धका।
मिनखां में अपमांन,
शराबियां रै नह सरम।।108
गोडा हाड गलंत,
डोला लगै डरावणा।
करजा मांहि कलंत,
दारूखोर दिवालिया।।109
मदवां रै भरमार,
बंडल खाली बोतलां।
निपट अडोली नार,
विलखै जेवर वास्तै।।110
लख गिलास में लास,
जांणौ दारू नै जहर।
पलक न रहणौ पास,
सुमत हुवै तौ सांभलौ।।111
दादा पड़दादाह,
जे इण मारग जावता।
(तौ) मिटती मरजादाह,
कटती जिंदगांणी कठण।।112
पाय भुजां रै पांण,
जेवर घर दौलत जमीं।
पुरुषारथी प्रमांण,
दौ या दारू छोड दौ।।113
घायल हुवां घणाह,
मदवा ही आवै मिलण।
जिण सूं मूढ जणाह,
मोटी समझै मंडली।।114
प्रथम जताता प्रीत,
गिटता दारू आय घर।
मर्यां पछै वे मीत,
टुक नह भालै टाबरां।।115
लोप म्रजादा लीक,
ग्रहियौ मारग गिरण रौ।
ठबक लागियां ठीक,
उण दिन खुलसी आंखियां।।116
पढण नौकरी पांण,
माईतां कीनी मदत।
अब क्यूं हुवा अजांण,
दारू सूं कर दोस्ती।।117
भायां सूं दुरभाव,
माईतां सूं द्रोह मन।
निसचै डूबै नाव,
खूटल दारूखोर री।।118
हिक पीवण में होड,
बीजी नहीं बराबरी।
छटकै दारू छोड़,
चो चाहौ सुख जीवणौ।।119
ग्रह्यौ न इंगलिश ग्यांन,
पास न की प्रतियोगिता।
पण इंगलिश मदपांन,
किण कारण सीख्यौ कहौ ? ।।120
लिखणौ पढणौ लेश,
इलम ग्यांन नह आपनै।
दारू रौ उपदेश,
किणसपूत दीनौ कहौ।।121
आजादी आयांह,
घमी जातियां सुधरगी।
(पण) जोगै कुल जायांह,
पगड़ांडी ली पतन री।।122
मंच तणा मिजमांन,
कविजण मीठै कंठ रा।
सुरा गमाई शान,
उणसूं दुकांन ऊठगी।।123
सत्संग मे सार,
संगत बुरी शराब री।
चित में करौ विचार,
मत डूबौ मझधार में।।124
सगपण रौ दस्तूर,
चोखै व्याव रचावणौ।
(तौ) दारू राखौ दूर,
औ इज एक उपाय है।।125
हुवै कुटुंब सूं हेज,
ईजत चाहौ आपरी।
जिके करौ मत जेज,
तज दौ दारू नै तुरत।।126
छोड देत छंटेल,
दारू नै थोड़ा दिनां।
झटकै पाछौ झेल,
खेल बिगाड़ै खूटला।।127
हुवै नौकरी हांण,
विघन तरक्की में वले।
मिलै कुजस अप्रमांण,
दारुबाजां देखलौ।।128
करै न घर रौ कांम,
फिरै रोवता फालतू।
नाजोगा बदनांम,
मुफतखोर मद पी मरै।।129
खूटल दारूखोर,
समझाया समझै नहीं।
ढींब अकल रा ढोर,
पछै घमआ पछतावसी।।130
मुंआ केई बेमौत,
केई मरण त्यारी करै।
फेरूं होसी फौत,
दारू मारै दीकरा।।131
सैणां रै मन सोच,
दुसमण हस ताली दियै।
समझातां संकोच,
माता पिता रै मन महीं।।132
हुवै पियोड़ैौ हाय,
जाय न सकै जलूस में।
जे कचेड़ियां जाय,
जावै सीधौ जेल में।।133
माल अडांणौ मेल,
मद पीधां झगड़ै मरै।
खलां-डलां व्है खेल,
पापी पछतावै पछै।।134
नशै मांय व्हरै नीच,
हसै देखजग हेरियां।
बसै कुलखणां बीच,
फसै अभागै फंद में।।135
दिल धंधै सूं दूर,
करै नहीं कसरत कदे।
नशेबाज बेनूर,
दीसै दारूखोरिया।।136
जावै बालक जाग,
प्रात भ्रमण पुरुषारथी।
नशेड़िया निरभाग,
मांचै में पड़िया मिलै।।137
खाणौ कदे न खाय,
वेला सर मदवा विटल।
लोही छाड लखाय,
पछै दिनां रा प्रांमणा।।138
बडै मिनख सूं बात,
परतख जो करणी पड़ै।
जे पीधोड़ौ जात,
बणी बात जावै बिगड़।।139
अड़बी मेटण आय,
भला गनायत भाव सूं।
विच में मद वपराय,
(तौ) लाय चौगुणी लागसी।।140
कीधौ सगपण कोय,
पीधोड़ै री पत नहीं।
हरख कसूंबौ होय,
सभा गांम री साख दै।।141
इम्तिहांन अवसांण,
अथवा होवै इंटरव्यू।
पीधै री पहचांण,
होत पांण नुकसांण व्है।।142
ग्रह सांस दुरगंध,
नासां हूंता नीसरै।
आसव छक मतिअंध,
बकरकंध ज्यूं गति बणै।।143
पी डूबै परवार,
मदवा कालीधार में।
सह जांणै संसार,
नशेड़ियां रै ठिक नहीं।।144
हुवै पिल तो हेत,
पी दारू झगड़ै पछै।
राल करम में रते,
घायल हुय आवै घरे।।145
बीड़ी री नीं बाफ,
बाफ आपरी नीकलै।
साफ जांण इन्साफ,
धूंवौ ऊठै धरम रौ।।146
आतम-बल नीं अंश,
छूटै नह बीड़ी छतां।
वले विगड़ाण वंश,
बोतल क्यों पकड़ी बना।।147
रात समै पी रोल,
फिसल डिगै आडा फिरै।
डरावणौ व्है डोल,
किता मिनख टालौ करे।।148
धूंवर धूंवैरीह,
सिगरेटां र शराब में।
मद पी मूंवैरीह,
गत अचेत पड़ियौ गुड़क।।149
आसव पी अणपार,
तेज चलावै कार तद।
पूरौ ही परिवार,
मदवै रै हाथां मरै।।150
बहता पड़ मग बीच,
तांणां खावै तड़फड़ै।
निलज नशेड़ी नीच,
करै नाश तन कुलखणा।।151
इण चहुंकुंट अनेक,
चावा ठावा नर चतुर।
नीत निरमली नेक,
नशा नरक ज्यूं निन्दवै।।152
लाखां जूना लेख,
वाचौ प्रमांण भागवत।
दारू रा फल देख,
जदुकुल नाश हुवौ जदे।।153
आर्यावर्त अकाज,
हाला रै कारण हुवौ।
पराक्रमी पृथिराज,
मदछक गत मारीजियो।।154
रिड़मल भड़ राठौड़,
तात सुपह जोधै तणौ।
चूक हुवौ चित्तौड़,
निधड़क दारू रै नशै।।155
जग चांपावत जोर,
गाईजै भड़ गीतड़ां।
अरियां मिल चहुं ओर,
दारू में कीनौ दगौ।।156
टाबी भड़ टणकेल,
रांगड़ राजस्थान रा।
आसव छौल उझेल,
डूबा हरजी डूंगजी।।157
घड़ी दुसमणां घात,
जांन बुलाई जुगत सूं।
आसव छक अधरात,
किरमर खल तंडल किया।।158
कह मद तणी कुरीत,
कई मुंआ ठाकर कंवर।
गुणियण रचियौ गीत,
आछौ बुधजी आसियै।।159
प्रिसणां दारू पाय,
नौली तोड़ी निरलजां।
परभाते पछताय,
रुपियां बिन ग्या रोवता।।160
होतां लसकर हार,
तलाक ली दारू तणी।
बाबर भड़ां बकार,
सांगै सूं जीत्यौ समर।।161
दारू पर बगदाद,
उमर खलीफा अवलियै।
बेटौ मरियां बाद,
सही कोरड़ां दी सजा।।162
सिख नह पियै शराब,
मद वरजित इस्लाम में।
खुद कै वैद खराब,
जैन आर्य सगलौ जगत।।163
अलगौ अवतारांह,
पियौ नहीं पैगम्बरां।
संत भगत सारांह,
तजियौ मद तीर्थंकरां।।164
दया रंतिदेवाह,
न्याय करण नौशेरवाँ।
सह हरिचंद सेवाह,
हेवा दारू नह हुता।।165
महावीर हणुमान,
द्रोणाचल लायौ दुझल।
धरै जिकण रौ ध्यांन,
नर दारू पीवै नहीं।।166
आदि ऋषभ अरिहंत,
पूजै पारसनाथ नै।
चीज पवित्र चढ़ंत,
नाकोड़ा भैरव नमो।।167
वजै गरीबनवाज,
औ ख्वाजा अजमेर रौ।
सिंवरै सकल समाज,
चीज नशीली नह चढ़ै।।168
सखरा मिनख सपूत,
मिलसी च्याूरं वरण में।
आसव गिण्यौ अछूत,
जिव्या सुख सूं जगत में।।169
रंग पीथल राठौड़,
क्रिसन रुकमणी वेली कृत।
सात्त्विक कवि सिरमौड़,
मद नै रद समझयौ कमध।।170
धिन ऊजल धर धाट,
अखां भगत सोढौ अखौ।
प्रभु बैठायौ पाट,
हर भजियौ जगमालहर।।171
मेड़तियौ जयमल्ल,
हरी भगत दूदा हरौ।
भाव सतोगुण भल्ल,
साकौ कर जूंझ्यौ समर।।172
द्रढ़ मन दुरगादास,
इगियारस रौ व्रत अडिग।
रंग कमध गुण रास,
आसवल चख्यौ न आसवत।।173
लियौ न दारू लेश,
मरद शिवाजी मरहठै।
स्वतंत्रता सन्देश,
अमर नांम करग्यौ इला।।174
राख्यौ सिख रणजीत,
कोहिनूर हीरौ कनै।
चाख्यौ नह मद चीत,
लांठै नृप लाहौर रै।।175
मुरधर देस मझार,
विजय भूप री वार में।
सगलै शाकाहार,
हिंसा प्रतिबंधित हुई।।176
सुत हरजी समरत्थ,
शहीद दलपत सूरमौ।
हाला दियौ न हत्थ,
हैफा हीरो अमर हुय।।177
रुपांदे रांणीह,
मीरां भगतां मुगट मणि।
जहर सुरा जांणीह,
अमी लहर निज इष्ट नै।।178
नांम अमर नारीह,
तोरल कठियांणी तिका।
धिन सत व्रत धारीह,
कच्छ देश पूजै किता।।179
कुण व्ही कवियांणीह,
समानबाई सारखी।
पतिव्रत पहचांणीह,
ब्रज बाणी प्रभु वन्दना।।180
करमां भगती कीन,
धिनो जाट ज्यूं ही धनौ।
लोक अमर जस लीन,
रोम-रोम सतगुण रम्यौ।।181
वसुधा तेजौ वीर,
हलोतियै गावै हुलस।
धिनो सतोगुण धीर,
देवकला पूजै दूनी।।182
चवां गोग चहुवांण,
सतगुण हरभू सांखलौ।
सोलंकी सुभियांण,
सिरै वभूतौ सिद्ध है।।183
रोहितास गुण रास,
बीलाड़ै दीवांण बड़।
वरज्या नशा विणास,
सिद्ध रूप पूजै सकल।।184
सिंध में जमियलसाह,
रुणेचै में रांमदे।
रुचै सतोगुण राह,
प्रगट अवलिया पीर है।।185
धर सोढांण सधीर,
सतोगुणी मांडण सुतन।
प्रगट पिथोरौ पीर,
दुहु राहां पूजै दुनी।।186
सांप्रत भांमासाह,
बड दाता संपत ब्रवी।
प्रथमी सुजस प्रवाह,
राह सतोगुण री रखी।।187
ख्यात रची विख्यात,
मरुभाषा मरुभोम री।
सतोगुणी साख्यात,
नांमी मुंहतौ नैणसी।।188
दुज हौ राघवदेव,
जिणरै चंडू जलमियौ।
सतगुण ज्योतिष सेव,
धन्य करी पिच्छम धरा।।189
‘शिव रहस्य’ रौ सार,
आय सुणायौ आगरै।
कर अकबर स्वीकार,
गंगारांम सतोगुणी।।190
कथ रैदास कबीर,
खलक खुदा बातां खरी।
अमर नां अकसीर,
जांण्यौ जांम हरांम जिम।।191
गुरु नानक रौ ग्यांन,
नित्त खुमारी नांम री।
महापाप मदपांन,
धवल आचरण सिख धरम।।192
जांभा नै जसनाथ,
नांमदेव पीपा निरख।
सेन भगत रै साथ,
विष ज्यूं समझी वारुणी।।193
गुरु गोविंद रा ग्रंथ,
पढ्यां मिलै सत प्रेरणा।
प्रगट खालसा पंथ,
दुरविसनां सूं दूर है।।194
रामकृष्ण सत रुप,
वल्लभ नींबारक वले।
कह मदिरा जम-कूप,
चित मिनखां चेतावियौ।।195
दादू दरिया देख,
रांमा हरिया रजब ज्यूं।
रामचरण सत रेख,
आमिष मद गिणयौ अखज।।196
सांप्रत तुलसी सूर,
सिरै भक्त साहित्य में।
भजियौ हरि भरपूर,
तजियौ मद तांमस तिकां।।197
सूफी सेख सलीम,
तिकौ सीकरी गिर तप्यौ।
हौ कवि भक्त रहीम,
नशौ खुदा रै नांम रौ।।198
सांप्रत सांईदीन,
आबू पर तपियौ अवल।
अलख तणै आधीन,
खलक नशा खंडण कियौ।।199
मोटौ भगत मुराद,
ग्यांनी कवि गुजरात में।
अमिट खुदा कर याद,
नेह तणौ बांट्यौ नशौ।।200
ढूमण कवियण ढंग,
जैन धरम रौ रंग जिण।
चारण बांण सुचंग,
नृप आखेट निषेधियौ।।201
सिरवै जलम सुजांण,
कुशललाभ सा जैन कवि।
पिंगल छन्द प्रमांण,
सतोगुणी जेसांण रौ।।202
दाखां ईसरदास,
अमर ग्रंथ ‘हरिरस’ आख्यौ।
हौ मीसण हरदास,
सांइयौ झूलौ सत्पुरुष।।203
वरणी ‘विवेक वार’,
नांमी जिण नीसांणियां।
दुरविसनां दुत्कार,
केसव गाडण हरि कथ्यौ।।204
मांडण भगत महान,
गोदड़ महड़ू सा गुणी।
धर्यौ न मद में ध्यान,
अमर नांम त्यां ईहगां।।205
देथौ मुथरादास,
‘राघवरासौ’ जिण रच्यौ।
आतम ग्यानं उजास,
पाप गिण्यौ मदपांन नै।206
सार तत्त्व गुण सोध,
तज असार बातां तिके।
पावन छप्पय प्रबोध,
अलूनाथ कवियै अख्या।।207
पातां भगत प्रवीण,
बारठ नरहरि कवि बड़ौ।
आसव गिण्यौ अलीण,
धिन माधव दधवाड़ियै।।208
ब्रह्मानन्द बिख्यात,
अवल खांण री आसियौ।
गुणी संत गुजरात,
पवित्र जीवण पालियौ।।209
थलवट जुढियै थांन,
भाख्या गुण भगवांन रा।
ग्रहियौ आतम ग्यांन,
पीरदांन लालस प्रगट।।210
देथा स्वरूपदास,
ब्रह्मदास वीठू वले।
ओपै काव्य उजास,
पातव दादू पंथ रा।।211
संतदसा बड संत,
खिड़ियौ कांवलियां खरौै।
गूदड़ पंथ गिणंत,
दीपत गादी दांतड़ ।।212
राम भजन रणकार,
कृपाराम त्यां सुत कहां।
शाहपुरै श्रीकार,
रांमचरण रा गुरु रह्या।।213
रांमदास सिध रुप,
पूजै ज्यांरा पगलिया।
ऊजल थली अनूप,
गांम बिराई गुणियणां।।214
धणियप प्यालौ धांम,
जोधांणै नृप मांन जद।
रंग कवि नाथूरांम,
लालस दारू नह लियौ।।215
निज कवियै चिमनेस,
रच ‘हरिजस मोख्यारथी’।
सतोगुणी सन्देस,
दीनौ थलवट देस नै।।216
जनकवि ऊमर जोय,
‘ऊमर-काव्य’ कृती अमर।
कियौ नशौ नहीं कोय,
आर्य धर्म अपणावियौ।।217
वांणी ‘काग’ विख्यात,
दूलाभाई देखियौ।
गढ़वी कवि गुजरात,
पूरण सात्विक पद्मश्री।।218
देथा शंकरदांन,
रह्यौ लींबड़ी राजकवि।
सदावरत सनमांन,
सतोगुणी सौराष्ट्र में।।219
रोहड़ रावतदांन,
रावतजी रै गांम रौ।
भजियौ उर भगवांन,
तजियौ भोजन तांमसी।।220
रेंणव दर्शनरांम,
शाहपुरा रौ महंतश्री।
निज पद छोड स्वनांम,
भज हरि मरुभाषा भणी।।221
सतगुण सीखण सार,
जैन संत भीखण जिसा।
वाचक दिव्य विचार,
थपाक तेरापंथ रा।।222
दिया जीत उपदेश,
कथाकोश मरुवांण कथ।
जयाचार्य जोगेश,
पूजक तेरापंथ रौ।।223
धरम अहिंसा धार,
मंडण मिनखाचार रौ।
अणुव्रत रै आधार,
आचारज तुलसी अजर।।224
नंामी भगत निराट,
किसनदास छींपौ कवी।
दुरविसनां नै दाट,
‘करुणा अष्टक’ जिण कथ्यौ।।225
साधक सालगरांम,
रांमसनेही कवि रुड़ौ।
आख्यौ ग्रंथ अमांम,
‘सप्तव्यसन संतापिनी’।।226
अवनि सिद्ध अनेक,
सांई बाबा सारखा।
आखी दुनियां एक,
उत्तम सात्विक आचरण।।227
उत्तम सत उपदेश,
भल दादा भगवांन रा।
सुख पावण सन्देश,
तजौ दुरविसन तुरत ही।।228
दखां रामसुखदास,
स्वांमीजी सौ बरस सिर।
इमरत बचन उजास,
कलू नशा खंडण किया।।229
लिखमौ माली लेख,
वनमाली भजियौ विहद।
प्रभु गुण बांणी पेख,
सिरै गृहस्थी संत हौ।।230
वींझौ तप्यौ वडाल,
खोखर बाबौ तेखलै।
भाखर बिहुं भुरजाल,
धांम बण्या थलवट रा।।231
मिश्रीमील महाराज,
कहिजै मरुधर केसरी।
मांने सकल समाज।
संत हुतौ नांमी सुकवि।।232
अहनिस जप अरिहंत,
सत व्याख्यान सुणावतौ।
सो हस्तमीमल संत,
पूजनीक है सत्पुरुष।।233
बिस्मिल सुभाष बोस,
भगतसिंघ आजाद भड़।
हुवा नहीं मदहोस,
देसभगत पूजै दूनी।।234
नेक विवेकानन्द,
त्यूं गांधी शास्त्री तिलक।
दयानन्द अरिवन्द,
मद्य निषेथक मालविय।।235
रामतीर्थ रै रूप,
देश-विदेशां दीपियौ।
शाकाहार सरुप,
अमर नांम कीधो इला।।236
प्रगट रुस में पेख,
टाबी टॉलस्टॉय सो।
सतोगुणी संपेख,
गांधीजी कीधौ गुरू।।237
शाकाहारी सोय,
सिरै जॉर्ज बर्नार्डशा।
जग चावौ नर जोय,
प्राइज नोबल पावियौ।।238
भारतेन्द्र हित भाव,
हरिश्चन्द्र राष्ट्रीय हौ।
सात्विक गुणां स्वभाव,
जोत जगी हिन्दी जगत।।239
रंग राजेन्द्रप्रसाद,
प्रथम देश रौ राष्ट्रपति।
शाकाहारी स्वाद,
आजीवण अपणावियौ।।240
जाकिर हुसैन जोय,
भारत री नेता भलौ।
होड न दूजां होय,
चखी न मदिरा छांट ही।।241
देशप्रेम हित दौड़,
मौलाना आजाद मिल।
सतोगुणी सिरमौड़,
शराब कदे न सेवियौ।।242
सरहद गांधी सोय,
अब्दुल गफ्फारखान औ।
कियौ नशौ नहिं कोय,
जांणै दुनियां जिकण नै।।243
पह सरदार पटेल,
लोहपुरुष नेता लखौ।
अरियां दाब अठेल,
सतोगुणी हौ सूरमौ।।244
रंग नरसिंहाराव,
चरणसिंह सा चौधरी।
आसव सूं अलगाव,
गोकुलभाई भट्ट गिण।।245
श्री सम्पूर्मानन्द,
प्रज्ञ प्रसिद्ध महापुरुष।
सात्विक गुणां समन्द,
विद्वत नेता जग विदित।।246
थिर जस राजस्थान,
जयनारायण व्यास ज्यूं।
नेता गुणां निधान,
ऊजल राख्यौ आचारण।।247
गांधी पथ अगवांण,
नशा विरोधी नेक नर।
जस ले गयौ सुजांण,
सिद्धराज ढढ्ढा सिरै।।248
द्रढ़ मिरधा बलदेव,
कहियै किसान केसरी।
सुध की जनहित सेव,
आमिष मद गिणियौ अखज।।249
मुरधर मायं मसूर,
डी.आई.जी. नेक दिल।
दारू राख्यौ दूर,
खुद मेहर फीरोज खाँ।।250
करणीसिंह कमधज्ज,
नांमी बिकानेर नृप।
आमिष सूरा अखज्ज,
गिणियौ पोतै गंग रै।।251
नाहर आउवै नेक,
चांपै मद नह चाखियौ।
उण ज्यूं कमधज एक,
नर उम्मेद नींबाज हौ।।252
गुरु रवीन्द्र टैगोर,
ग्रंथ अमर ‘गीतांजली’।
विश्व सु भाव विभोर,
सात्विक कवि सिरमौर हौ।।253
स्वतंत्रता साखीह,
भाखी ‘भारत-भारती’।
रुचि सात्त्विक राखीह,
गुप्त मैथिलीशरण गुण।।254
समदर मोती सीप,
गीत सत्त्व साहित्य गिण।
दीपशिखा ज्यूं दीप,
महादेवी वर्मा अमर।।255
सर्वोदय री साख,
संत विनोबा सारखौ।
भूदानी सत भाख,
दुरविसनां नै दाटिया।।256
गुणस्वामी गोपाल,
महक्यौ चूरु क्षेत्र में।
परमारथ व्रत पाल,
दरस्यौ गांधी दसूरौ।।257
वेदां रौ विद्वान,
मधुसुदून ओझा अमर।
सत आचरण सुज्ञान,
जग चावौ नर जयनगर।।258
प्रणम्य मोरोपंत,
प्रज्ञ मनीषी पिंगले।
देशप्रेम दरसंत,
सदवृति शाकाहार में।।259
श्री हनुमानप्रसाद,
सदाचार पोद्दार सो।
पुरस्यो ग्यांन प्रसाद,
शाकाहार विचार सूं।।260
कर सुकृत ‘कल्याण’,
पावन गीत प्रेस सूं।
जयदयाल घण जांण,
गोयन्का सात्विक गुणी।।261
मरुभाषा रौ मांन,
बदरीप्रसाद सूं बध्यौ।
ग्रंथ रच्या गुणवांन,
साकरिया हौ सत्पुरुष।।262
सत व्रत आलमशाह,
खांन हुतौ हीरौ खरौ।
रुची नहीं मद राह,
चाह रही साहित्य चित।।263
चख्यौ नहीं मद छांट,
‘मधुशाला’ बच्चन मुणी।
असल अरथ में आंट,
भरमीजै नर भोलिया।।264
तौर कंठ में तेज,
‘सैनाणी’ रौ कवि सिरै।
हाला सूं परहेज,
मेघराज राख्यौ मुकुल।।265
मोहम्मद सदीक मांन,
मरुभाषा कवियां मुगट।
धर्यौ न मद में ध्यांन,
इमरत कंठां ओपियौ।।266
डिंगल पिंगल डांण,
सुकवी हुतौ सतोगुणी।
प्रज्ञाचक्षु प्रमांण,
विजय बोगसौ सरवड़ी।।267
सत पवित्र संस्कार,
इष्ट धार कवि आसियौ।
करग्यौ पर उपकार,
नांमी मुरार नोखड़ै।।268
सिंयावधां सिमरत्थ,
वीठू मूलौ वासणी।
बिहुं चारण बडहत्थ,
मुदै न चाख्यौ मांस मद।।269
दीठौ लक्ष्मीदत्त,
सात्विक हौ बारठ सिरै।
जाहर किया जगत,
परचा रांमापीर रा।।270
चावौ चंडीदांन,
सो रतनू चौपासणी।
ध सतगुण हरि ध्यांन,
नहीं कियौ कोई नशौ।।271
साचौ साहितकार,
राजपुरोहित नर रतन।
शाकाहार सुधार,
खांडप में नरसिंह खरौ।।272
बीकांणै विद्वांन,
सूर्यकरण पारीक सा।
संस्कृति रौ सम्मांन,
नांम अमर सात्विक नरां।।273
देख नरोत्तमदास,
स्वामी पंडित सदगुणी।
पूरण कियौ प्रकास,
सेवा मरुभाषा सजी।।274
बीकनगर विद्वांन,
शर्मा अक्षयचन्द्र सो।
विशेष प्रतिभावांन,
रसणा सुरसत राजती।।275
निरभै बीकानेर,
भीम पाँडिया कवि भलौ।
चावौ नर चहुंफेर,
शाकाहार सतोगुणी।।276
सात्विक सुकवि ‘रसाल’,
शुक्ल रामशंकर सही।
विद्यासिन्धु विशाल,
गुरुवर परम सतोगुणी।।277
पूज्य हजारिप्रसाद,
सो आचार्य हजार सम।
शुद्ध सतोगुण स्वाद,
साहित रौ चाख्यौ सदा।।278
मुनि जिनविजय महान,
शास्त्री विद्याधर समौ।
सात्विक गुणां समान,
दशरथ शर्मा दीपियौ।।279
थिर जस राजस्थान,
प्रज्ञ मुख्य न्यायाधिपति।
सतोगुणी श्रीमान,
दुर्गाशंकर हौ दवे।।280
साहित गुणां सतेज,
हुतौ अगरचंद नाहटा।
भल सात्विक भाणेज,
विज्ञ हजारी बाँठिया।।281
मनोहर् शर्मा मान,
प्रज्ञ मनीषी बीकपुर।
‘वरदा’ रौ विद्वान,
ज्ञानी परम सतोगुणी।।282
सुर मरुभाषा संग,
जोधांणै सात्विक जकौ।
रांमकरण घण रंग,
आसोपा इतिहासविद।।283
भारत बैंकर भाल,
दस में नव मरुदेश रा।
टॉड लिख्यौ टकसाल,
जिके घणकरा जैन है।।284
वसिया वौपारीह,
मुंबई कलकत्तै महीं।
सब शाकाहारीह,
थेटू राजस्थान रा।।285
श्री बिड़ला घनश्याम,
जमनालाल बजाज सो।
स्वतंत्रता संग्राम,
गांधीसंग सतोगुणी।।286
चोखाणी चावौह,
रामदेव रजथान रौ।
प्रिय निज पहनावौह,
विद्वत कलकत्तै वस्यौ।।287
श्री घनश्याम सराफ,
मरुवासी बस मुंबई।
सात्विक अंतस साफ,
जसधारी सुत जिकण रा।।288
साहित प्रेमी सेठ,
सूरजमल जालान सो।
ठावी डिंगल ठेठ,
कलकत्तै संग्रह करी।।289
प्रज्ञ सिरै पोद्दार,
सात्विक रामप्रसाद सो।
साहित हित संस्कार,
अमर सुजस करग्यौ इला।।290
नांमी लेखक नेठ,
आदू जेसांणै उतन।
सांसद सोभ्यौ सेठ,
गोविंददास सतोगुणी।।291
सेक्सरिया श्रीमंत,
सीतारांम सतोगुणी।
विद्याप्रिय धनवंत,
यूं रामेश्वर टांटिया।।292
सगलै शाकाहार,
मोदी मित्तल मूंदड़ा।
वधियौ ज्यूं वौपार,
केज़ड़ियाल कानोडिया।।293
डालमिया डागाह,
बांगड़ जाजू बागड़ी।
आमिष मद आगाह,
अग्रवाल खेताण इण।294
शाकाहार सुहाय,
सुरेका’र सिंघाणिया।
मुरारका मन भाय,
रुइया नाहर रुंगटा।।295
चावा चूड़ीवाल,
बाहेती ज्यूं बागला।
मरुप्रदेश गुणमाल,
सोमाणी सात्त्विक सिरै।।296
जस लै जैथलियाह,
सत्त्व केड़िया सेठिया।
किता सुधार कियाह,
मोद बंग-मुरधर मही।।297
भरियौ सात्विक भाव,
भुवालका भालोटिया।
पेखौ सुजस प्रभाव,
बिन्नाणी बीकांण रा।।298
पाटोदिया प्रतक्ख,
दूगड़़ नै जाजोदिया।
अलीण मद आमक्ख,
लख्या खेमका लोहिया।।299
थेटू मुरधर थार,
शाह सराफ सरावगी।
पह वौपार अपार,
गोइन्का बिड़ला गिणौ।।300
इण धर हुवा अपार,
संत सती अर सूरमा।
भूषण गुण भंडार,,
दूषण राखय्ा दूर ही।।301
दारु सूं रै दूर,
जीव दया पालै जिके।
पावै सुख भरपूर,
देव सकल आशीष दै।।302
ब्राह्मण पूज्य विशेस,
विवेक बुद्धि वांणिया।
वरतै सात्विक वेस,
अखज न खाता आद सूं।।303
मोटां कीजो माफ,
ऊंचै पद रा अनुभवी।
समझाइश आ साफ,
निरअंकुश पीढ़ी नवी।।304
खूब हुवौ खैगाल,
आ नजीर इतिहास री।
तज दारू तत्काल,
कमर कसौ उन्नति करण।।305
औ नह छूटौ आज,
छेकड़ कदे न छूटसी।
खरी कोढ़ में खाज,
रोवत आंसू रालसौ।।306
दिस एकण दारूह,
बीजी दस घरबार है।
सपूत रै सारूह,
किसौ एक वधतौ कहौ।।307
पढ़ियां इता प्रमांण,
आंख न खुलसी आपरी।
(तौ) जांणत थकां अजांण,
जिनगांणी जीरांण है।।308
पिता हुकम सुण पूत,
छिन में दारू छोड दै।
मन ज्यांरौ मजबूत,
जिके भलां नर जलमिया।।309
हुवै सूरमां हाक,
निबलां सूं होवै नहीं।
लेवै मरद तलाक,
शराब अर सिगरेट री।।310
कवियै शक्तीदांन,
दारू दुरगुण दाखिया।
गुणी ग्रहैला ग्यांन,
निरभागी सुणसी नहीं।।311
दारु-दूषण दाख,
चेताया दे चाबका।
साची कूड़ी साख,
नशौ छोड खुद निरखलौ।।312
दीपै थलवट देस,
गुणी बिराई गांम रौ।
सुत गोविंद सगतेस,
‘दारू-दूषण’ दाखियौ।।313
संवत विक्रम सोय,
दो हजार बासठ दखां।
जेठ सुदी नम जोय,
ग्रंथ रच्यौ गुरुवार नै।।314