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“अवतार चरित्र” ग्रन्थ में ध्रुव-वरद अवतार की स्तुति

।।छन्द – कवित्त छप्पय।।
ऊँकार अपार, अखिल आधार अनामय।
आदि मध्य अवसान, असम सम आतम अव्यय।
एक अनेक अनंत, अजीत अवधूत अनौपम।
अनिल अनल आकाश, अंबु अवनी मय आतम।
उतपत्ति नाश कारन अतुल, ईश अधोगत उद्धरन।
अध मध्य ऊर्ध व्यापित अमित, तुम अनंत असरन सरन।।1।।

परमधाम पर ज्योति, परम आनंद प्रमेसर।
परहित परकृत परम पूज्य, परब्रह्म जोग पर।
पर आतम परतत्व, परम पद प्रीती परोदय।
परमारथ परश्रेय, परम रिधी प्रकृति परासय।
परनिधि सिधि परब्रह्म पन, परम पुरुष परधाम पति।
पर ध्यान ग्यान पर हेत प्रिय, परम पतित हूं परमगति।।2।।

निराकार निर्लेप, निगम हित निकट निरंतर।
निर्विकार निरधार, नित्य नवधावस नरहर।
निरालंब निर्गुन, निरीह निर वद्य निरंजन।
निर्विग्रह निहचल निधान, निह कल नारायन।
निर्बोध निराकृति नाम निज, निगम हेत निर्नासनित।
निग्रहन नाग नग उद्धरन, नमस्कार नव रुप हित।।3।।

जयति जयति जगदीश, जगत कारन जोगेश्वर।
जगजित जगहित, जगन्नाथ, जग जोति जगत गुरु।
जगनिवास जगसृजन, जगत पोसन जग नासन।
जग तरन जग सरन, जगत मंडन जोगासन।
जगबंधु जगतपित जगनिधि, जयो जगत कारन करन।
जगपावन जगत निधान जय, सदा सुकवि “नरहरि” सरन।।4।।

महात्मा नरहरिदास बारहट

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