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।।शिव स्तुति।।
(सवैया-घनाक्षरी)
वृषभको वाहन बिछावनौ है लोमविष,
विषईतुचा को वास क्रोधके निकेत है।
आसीविष भूषण, भखन विष विंधुमाला,
मंगल तिलक सर्वमंगला सहेत है।।
विषय विनाश वेष रहत विषैही रत्त,
शूल औ कपाल इहिं संपति समेत है।
देखौ धौं अभूत भूतनाथ एकौपल भजे,
रीझ मर्त्यनामानि अमर्त्य पद देत है।।१।।
भोरे भूलिजात भवभोग दे दे भोर ही लौ,
भोरी गोरी भवा के सुमान भारीयतु है।
तपकी अतुलताई तेजकी तरलताई,
पनकी पवित्रताई पार पारीयतु है।।
रति हूं सौं रत्त औ विरति सौं विशेष रत्त,
आरत पुकार सुनि उर धारीयतु है।
कासीनाथ कासी सावकासी हू न होत नैक,
हांसी भजै वासी तै बिसासी तारियतु है।।२।।

।।कवित्त – छप्पय।।
जटाजूट सिर गंग चन्द्रशेखर चरव हुतवह।
गरल कंठ अहिहार मुंडमाला विष भख्ख्ह।।
डमरू सूल कप्पाल पानि धनुवान प्रकाशित।
दपु विभूति अवधूत सिंध गज चर्म सुवासित।।
वामांग सिवा वाहन वृषभ, जयति जयति शंकर अजर।
रघुनाथचरित कृतध्यान हित, सुमति देहु दाहक समर।।

~~महात्मा नरहरिदास बारहट
सन्दर्भ: अवतार चरित्र

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