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!! कवित्त !!
कविया हिंगऴाजदान जी रचित !!

कविया श्री हिंगऴाजदानजी भगवती के अनन्य उपासक थे, माँ उनकी हर पुकार पर आधे हैलै हाजर होती थी, उस समय की परिस्थितियों मे रिजक रोजगार पर, राज की जबरन जब्ती की कार्रवाईयों मे अधिकतर जगहों के समाज सज्जनों के हित की कानूनी लङाई में कवियाजी खङे मिलते थे, “समै बौत खोटी खुसै रोटी नकोटी में सांस, सह्यौ जात संकट न कह्यौ जात अब तौ” इसी संदर्भ में माँ से प्रणत पुकार की गई है !!

प्रातः की वेऴा मे सिमरणीय कवियाजी ने अनेक जगह के गांवो के जब्ती के जबरिया जुल्मों मे जातिय पक्ष में जिरह करके जलवे दिखाये थे, जिस मे जगदम्बा का जोर ही उनकी जीत का आधार था !!

शाहूकार की तथा सुथार
की पुकार सुन,
नाव लाव कारणैं
करी न जेज अब तो !
मेरी बेर देर आई दुरगा लगाई,
शेर चढके न आई
त्रिशूऴ आभ छबतो !
समै बोत खोटी खुसै रोटी
नकोटी में साँस,
सह्यौ जात संकट न
कह्यो जात अब तो !
जेरबारी भंजन दुलारी
मेह देवल की,
आरी आ हमारी महतारी
आव अब तो !!

तात्कालीन परिस्थितियों में स्वंयं के लिए व समाज हित के लिए संघर्षों से झूझते हुये व कोर्ट कचहरियों में सत्य की रक्षार्थ आर्थिक संसाधनों की तंगहाली तो भी अनन्त असीम जीवट की जिन्दादिली और माँ भव भय भंजनी भगवती राज- राजेश्वरी श्री करनी जी की कृपा से प्रत्येक फाईनल फतह का फैसला उनके पक्ष में ही होता था !!

धन्य है मां की कृपा का प्रसाद व धन्य है उनकी अटूट आस्था को !!

राजेन्द्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर.

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