चारण माने चाह+रण……………………
>गरासदार गोपालदासजी बारहठ व विर परबतजी वरसडा
जामनगर के जामसताजी ने संवत् 1639वि.को अहमदाबाद के ‘मुजफ्फर शाह’ बादशाह को शरण दे दी। अकबर ने ईसे लोटाने को कहा परन्तु सताजी ने शरणागत की रक्षा का अपना धर्म समझते हुए वापिस देने से मना कर दिया। इस पर अकबर के सूबेदार मिर्जा अजीज कोका को जामनगर पर सेना देकर भेजा।
नवानगर (जामनगर) के महान वीर चारण परबतजी वरसङा ने जामनगर के प्रत्येक गाँव में जाकर वीरत्व का बोध कराते हुए नवयुवकों की सैन्य टुकङी तैयार की । और नागङा वजीर के नेतृत्व में युद्ध क्षेत्र को प्रयाण किया और परबतजी वरसडा विरता से लडकर विरगति को प्राप्त हुए।अकबर की भारी सेना से यह एतिहासिक युद्ध ‘भुचर मोरी’ की समर भुमि मे लङा गया। दुसरी ओर महात्मा ईसरदासजी बारहठ के पुत्र 6 ग्रामो के गरासदार गोपालदासजी बारहठ अपने परिजनों सहित अन्य पाँच सौ तूम्बेल चारणो की टुकङी का स्वयं नेतृत्व करते हुए, विर चारणो की सेना को लेकर समर भुमि मे पहुचें।
इस युद्ध में अकबर की सेना से अप्रतिम वीरता से लङते हुए इन चारणों ने शत्रुओं का भारी विनाश किया ओर खून की बहती धारा में इन्होने मरण को वरण किया। इन चारण वीर योद्धाओं के पराक्रम को देखकर ” मिरजा अजीज कोका” ने कहा ,जेमने पासे आवां चारणों छै’ तेने आपणे केवी रीते जीती शकीशुं ? धन चारणो ने जेमणे पोताना धणीनुं नमक उजाली पृथ्वी पर पोतानुं नाम अमर कर्यु।” कुल मीलाकर 1100 चारण ईस युद्ध मे विरता से लडकर शहीद हुए।
इस युद्ध में सताजी के पुत्र अजाजी रणखेत रहे। जिनकी पाग लेकर गोपालदासजी बारहठ ने राणी को सुपुर्द किया, जिसके साथ राणी भूचर मोरी के रणक्षेत्र में आकर सती हुई। गरासदार गोपालदास बारहठ के शरीर पर 52 घाव लगे हुए थे । इसलिए वह भी कुछ देर बाद विरगति को प्राप्त हुए । आज भी भूचर मोरी के युद्ध मैदान मे इस विर बारहठ का “पालिया” (चबुतरा) बना हुआ है।जो इसकी वीरता के गीत गाता हुआ इसकी साक्षी दे रहा है।
जयपालसिंह (जीगर बऩ्ना)थेरासणा