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श्री वीरों माँ भिंयाड़ छंद


रचना –
राजेन्द्रदान वीठू (कवि राजन झणकली)
 
रावळ गुड़े रांण रो अरी दळ आयो एक
गऊ ले गयो गांम रे हुकम न छोड़ी हेक।।
संदेशो सब रो सुणने आयो नयन अंगार
भजे मात रीस भरने कोप्यो सुत खंगार।।
धेन कारज धरणी पर वाहर कीधी वार।
सुत खंगार सगत रो क्रोध लीनी कटार।।
सुत री कटार सुण ने घोर मच्यो घमसाण।
वीठूवांण सगत वीरू जाय कियो जमराण।।
छंद सारसी
जमराण जातां जबर माता क्रोध पाता कोपियम
घमसाण घाता खबर पाता ओथ आता ओपियम
तुरगांण ताता बिखर जाता लाय लाता लावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती मात वीरों मावड़ी जी मात वीरों मावड़ी,,,,1 

गऊ मात कारण क्रोध धारण अरि मारण ओकरी
सुत घात सारण भोम भारण होम कारण होकरी
कज जात कारण देह डारण धोम धारण धावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती मात वीरों मावड़ी जी,,,,,2

वीठूवांण माता वंश आता गाम पाता झणकली
महादान ताता धीव धाता देव दाता दरशली
भीमाण भाता पीव पाता सुख साता सावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,,3

गई मात लारे धेन कारे सुत मारे सोवियम
भई घात भारे खून खारे लाल कारे लोवियम
सतमात धारे वाह वा रे जमर जारे जावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,4

सरगों पधारे देव सारे मग निहारे मातरम
फर के धजारे इतर झारे पुष्प बिछारे पाधरम
छेरम बजारे चरज गारे मां पधारे मावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,,5

शोभा बखाणी शंभु राणी धनियाणी धावली
भीमाण वाली वेर लाणी राज राणी रावळी
तीजे पुराणी पूग जाणी व्योम वाणी वावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,6

नागण रूपाळी अगन वाळी क्रोध काळी कालका
करणी कृपाळी जाळ आळी लोक पाळी लाडका
धरणी रूखाळी परत पाळी धोम वाळी धावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,,7

धर धूम्प् ध्यावो पूज पावो चरज गावो चारणी
अन्न धन्न उपावो सुख पावो मरज घावों मारणी
हेलेज आवो दरश पावो भजन भावों भावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,,8

राजन रचावे कवत ठावें साद आवे सोम्भळे

लांछन भगावे समत आवे मांन पावे मोकळे
सारस सुणावे ध्यान धावे लिछम लावे मावड़ी
समरयो रहिजे बेल सगती,,,,,,9
छप्पय
वड़ सगत वीरों सती सदा रहे मम साथ
कविता कथन नित करूँ पांण जोड़ परभात।।
राज काज रक्षा करे अफण्ड टाळे अनीत
बडो भरोसो मात वीरों सद गुण देय साहित।
मधुकर सुत राजन कहे नत मस्तक नित मात
विघन टाळे मात वीरों बेल रहे हर बात।।

कवि राजन झणकली कृत

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