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लेख कागळ लख्या तात प्रहलादने काळने जीतवा कलम टांकी = कागबापु द्वारा रचित “झूलणा-छंद”

लेख कागळ लख्या तात प्रहलादने
काळने जीतवा कलम टांकी
वर्षनां वर्ष विचार करीने लख्युं
मागवा नव रह्युं कांइ बाकी
देव सौ पाळता सही विरंची तणी
देवनो देव ए जगत थापे
रद बन्या कागळो एक एवि गति
फेंसलो नाथ नरसिंह आपे. १

देव-दानव मळ्या साथ अचरज घणी
कर्म जोगे करी संप कीधो
संप करी कोइनुं मूळ नव खोदवुं
एमणे जलधिनो ताग लीधो
चौद रत्नो मळ्यां गर्व गगने अड्यो
विजयनो महद् त्यां खोड्यो
पंदरमों फेंसलो विष हळाहळभर्यो
देव ने दैत्यनो दर्प तोड्यो.  २

मुज थकी कोइ मोटुं नथी जगतमां
लेख एवो ज एणे लखाव्यो
लेख लीधा पछी नरम रे’ तो सदा
लेखने फाडवा कोइ नाव्यो
“सर्वने हुं गळुं सर्वने हुं गळुं”
जलधिने ए अहंकार आव्यो
उदरमां उतार्यो कुंभभव* मुनिए
गेबनो फेंसलो त्यां वंचाव्यो.  ३

सर्व स्थळ पामता विजय रण क्षत्रियो
मार्ग भूली दशो दिश दोड्या
भागवुं नहिं कदी वीरने भारथे
लेख एवा ललाटे ज चोड्या
कूतुहल नीरखतां हसी कुदरत कळा
जगतमां एक ऋषिराज आव्यो
जामदग्निए कुठारनी धारथी
फेंसलो भागवानो सुणाव्यो.  ४

विप्रना घोर परतापथी धडकती
सुणता नामने भोम सारी
कंध कुठार वळी जीतना केफमां
भूलियो ब्रह्मवर भान भारी
सीत संतापहर जगत त्रय तापहर
जनकपुरमां रघुनाथ आव्यो
क्षत्रि हणनारने क्षत्रिवर राघवे
फेंसलो वन जवानो वंचाव्यो.  ५

लेख ब्रह्मा लखे पूछी पूछी अने
हुकम लीधा पछी वायु वाता
मेघजळ वर्षतां जेनी आज्ञा थकी
नव ग्रहो ऊंच ने नीच थाता
बाणनी कलम करी शाही शोणित तणी
पत्र रणभोमनो घोर कीधो
दैत्य दशाशीशनां शीशने राघवे
फेंसलो जगत सन्मुख दीधो.  ६

कंस,शिशुपाळ,कौरव अने यादवो
भीष्म ने द्रोण जमराज जेवा
सर्वनो फेंसलो एकसाथे घड्यो
कलममां कृष्णजी कुशळ केवा !
हिमगिरि भींत पर जे लख्यो फेंसलो
वन जतां पांडवे शिर धार्यो
प्राचीने पीपळे भीलना बाणनो
फेंसलो जगतनाथे स्वीकार्यो.  ७

रात दि मुसद्दा घडे छे मानवी
आपनी आंखथी जगत मापे
केस छे लाभमां एम मान्या करे
वकील पण ए ज सलाह आपे
चतुर न्यायाधीश ज्यां कागळो वांचतो
हाथनुं जे लख्युं थाय वेरी
अकळना कोयडा केम करी ऊकले
ईशनी कोरटुं छे अनेरी.  ८

कैंक विद्यार्थी ने कैंक पड्या बन्या
जगत आ एक निशाळ मोटी
कुशळ थ‌इ कैंक भणतर भण्यो मानवी
जळ पवननी ज काढे कसोटी
व्योम ऊडे अने जाय भूगर्भमां
काढता हरिनी कैंक खामी
कुदरती कोरटे ज्यां चड्यो मानवी
(त्यां) भणेली सर्व विद्या नकामी.  ९

जेह न्यायाधीश बन्या ए ज केदी बने
केदीओ तेहने दंड आपे
जे लखे फेंसला ते सुणे फेंसला
काळनो कायदो कोण मापे ?
कोइ वांचे नहीं कोइ पहोंचे नहीं
केम एनी गति जाय जाणी ?
‘काग’ हसतां ने कैंक रोतां हतां
फेंसलो मानता सर्व प्राणी.  १०
कुंभभव – कुंभमांथी जन्मेला मुनि अगस्त्य
रचना = चारणकवि पद्मश्री काग बापु
टाइपिंग = राम बी गढवी*
नविनाळ-कच्छ
फोन =7383523606
आ छंद कागवाणी भाग-२ मांथी टाइप करेल छे

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