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गुरु गोविंद दोनों खडे, कीसको लागुं पाय
बलीहारी गुरुदेव की, (मोहे) गोविंद दियो बताइ
अमर लोकसाहित्यकार इशरदान गढवी नी रेकोडींग मांथी सांभळेली गुरु-शिष्य विसेनी वात
राजस्थानमां “डुंगर भरवाड” नामे भगवान नो एक भगत रहे…भगवान नी भक्तिमां ए माणस एटलो गांडो बन्यो के हवे एने भगवान ने मळवानी जीद करी नांखी..एणे हठ पकडी के मारे भगवानने मळवुं छे..
गाममां के गम्मेत्यां कोइपण व्यक्ति मळे एने इ कायम पुछ्या करे…”तमें भगवान ने जोयो छे?….मने कहो ने इ क्यां मळसे..?”
एना आवा वर्तनथी गामलोको त्रासी गया अने नक्की कर्युं के आपणी नजीकमां ज “भीमपुरी बापु” नुं आश्रम छे त्यां आ डुंगर ने छोडी आविये….बापु आकरा श्वभावना छे एटले आ डुंगरडा ने ठीक करसे…
गामवाळाओए नक्की करीने डुंगर भरवाड ने भीमपुरी बापुना आश्रम पर मुकी आव्या…
डुंगर भरवाडे तो जतावेंत ज बापु ने प्रश्न कर्यो….”बापुं तमे भगवान ने जोयो छे..??
बापुए वळतो जवाब आप्यो….”हा डुंगर भगवान तो मारी पासे घणीवार आवे छे…हवे आवसे तो हुं तने बोलाविस…त्यांसुधी तुं आश्रम मां रहेली गायोनी सेवा कर…भगवान मने मळवा आवसे तो हुं तनेपण बोलाविस..”
डुंगर भरवाडे पुरी श्रद्धा भाव थी गायमातानी २० वरस सेवा करी…दिवस होय के रात एणे एटली सेवा करी के गायनी सेवाना कारणे एना माथाना खरीगया एटलुं नइं पण भरवाड ना माथामां जीव पड्या छतां सतत गौत्रीयोनी सेवा करी… अने २० वरस मां ए खावानुं भुलीगयो पण दररोज गायोनी सेवा करे ने दररोज सांजे बापु पासे जाय ने बापु ने एकज वात पुछे….”बापु भगवान आव्या”
अने २० वरस सुधी बापु नो एक ज जवाब…”ना डुंगर….हजी भगवान मने नथी मळ्यो आवसे तो हुं तनेपण बोलाविस…”
दररोज ना एक ज सवालथी बापु कंटाळी ने एकदिवस बापुए डुंगर ने जवाब आप्यो…”जा पेला कुवामां पड्यो तारो भगवान…जइने मळीले तारा भगवान ने”
पोताना गुरु नी आ वातपर कोइपण जातनी शंका कर्या वगर गुरुजी कदी खोटुं न बोले…मारा गुरुनी वाणीमां असत्स होय ज नइं ए विचार करीने एणे कोइपण विचार कर्या वगर दोट दिधी ने कुवामां कुदको मार्यो….
भगवान मळी ज जसे ने मारा गुरु नी वात सत्य ज होय एवुं माननारा डुंगर भरवाडने साचे ज भगवाने  चतुर्भुज श्वरुपे दर्शन दिधा…ने कह्युं के…”भगत हुं तारी भक्तिथी खुब ज प्रसन्न थयो छुं ऩे तने दर्शन आपवा आव्यो छुं….”
घणा वर्षो सुधी भगवानना दर्शन कराववानी इच्छा धरावता डुंगर भरवाड ने जेदी भगवाने दर्शन आप्या तो हवे ए मानवामाटे तैयार नथी…एणे भगवाने कह्युं…” हुं केम मानुं के तमे भगवान छो कारणके तें जेवा वेस लीधा छे एवा तो अमारा गाममां भवाइ वाळा वेस लेछे आविरीते कांइ थोडी हुं मानी लउं के तुं भगवान छे…!!”
हवे भगावनने पोते भगवान छे एनी साबीती एना भगत ने आपवानो समय आविगयो…पण डुंगर भरवाड कोइ वाते मानवा तैयार नथी के कुवामां सामे उभेल व्यक्ति भगवान छे….
छेल्ले भगवाने पुछ्युं के डुंगर भरवाड ने कह्युंके “तो हुं हवे तने केम समजावुं के हुं तने दर्शन आपवा आव्यो छुं..?”
डुंगर नो जवाब…”हुं एक ज मारा गुरुजी कहे के तुं भगवान छे को हुं मानुं….”
आटलुं कही डुंगरे भगवान भागी न जाय एटलामाटे भगवानने एक दोरडा मां बाधी ने पोताना गुरु श्री भीमपुरी बापुने बोलाववा गयो…
गुरुनी पासे जइने डुंगरे कह्युं…”बापु…चालो तमे मने कुवामां जवानुं कीधुं ने हुं गयो पण त्यां कोइ चारहाथ वाळो माणस आविने मने कहे छे के इ भगवान छे…बापु आप चालीने मने खातरी करावो के इ भगवान छे…कारणके एणे एवा वेस लीधो छे के जेवो आपणे त्यां भवाइ वाळा जेवो ज लागे छे…”
भीमपुरी बापु ने विचार थयो के हुं नानो हतो त्यारथी भगवाननी सेवा करी तोंय न मळ्यो ने आ भोळा-गांडा ने कांइ थोडी भगवान मळवानो छे…???
पण वळी विचार आव्यो के होय हो आ भोळो छे भोळानो भगवान होय हों चाल ने जोइलेवामां सुं वांधो छे…
आम विचारी बापु डुंगर भरवाड साथे कुवानी पाळे पहोंच्यां.
पण ए द्रश्य जोइने स्तब्ध थइगयो ने डुंगर भरवाड ने बखभरीने मळ्या ने कह्युं के ए डुंगर जगतमां गुरु शिष्य ने भगवान ना दर्शन करावे पण तुं जगत नो पेलो एवो शिष्य छो के जेणे गुरुने भगवानना दर्शन कराव्या…डुंगर तुं तो मारो पण गुरु बनीगयो…
पण हवे डुंगर मनमां मुंजायो के पेला कोने पगे लागुं…
पण पेला एणे गुरुने पगे पड्यो आवुं करवानुं कारण पुछ्युं तो डुंगर भरवाडे जवाब आप्यो के मने गुरुजेये न कह्युं होत के कुवामां उभो छे ए भगवान छे तो मने खबर न होत के आ भगवान छे ..तेदी एणे आ साखी लखी…
*गुरु गोविंद दोनों खडे,कीसको लागुं पाय
बलीहारी गुरुदेव की,मोहे गोविंद दियो बताइ*
हवे डुंगरे गुरुने कह्युं के मारे हवे भेख पहेरी लेवो छे…तो गुरुजेए जवाब आप्यो के अरे डुंगर तने भेख पहेरवानी शुं जरुर….तें तो भेख पहेर्या पेला ज भगवानना दर्शन करीलीधा….”
आ वात सांभळी पोताना गुरुजी ना पगमां पडीग्यो
ने एक भजन लख्युं
सदगुरु तमे मारा तारणहार,
आज मारी रांक नी अरजी रे
ठावल धणी सांभळजो….गुरुजी….
आवा सौ गुरु तथा एमना शिष्यो ना चरणो मां कोटी कोटी वंदन
स्वर्गस्थ लोकसाहित्यकार इशरदान गढवी नी रेकोडींग सांभळी ने टाइपिंग करी छे भुलचुक सुधारीने वांचवी
टाइपिंग= राम बी. गढवी
नविनाळ कच्छ
फोन नं.=7383523606

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