श्री राजबाई का जन्म स्थान गुजरात के सौराष्ट्र धांगध्रा तालुका के चराडवा गाँव मै
वाचा शाखा के चारण उदयराज के घर हुआ। वाचा शाखा के पुरुष और स्त्रिया वाग्देवी वाणी सरस्वती के उपासक थे। इनकी वाणी की वचन सिद्धि प्राप्त थी और इसीलिए ये वाचा कहलाये।
गुजराती साहित्य के प्रसिद्द विद्वान पींगलसी परबतजी पायक द्वारा लिखित “पूज्य आई माँ सोनबाई माँ मातृदर्शन जीवन इतिहास संहिता” के अनुसार राजबाई का जन्म विक्रम संवत 1595 के माघ सुद शुक्ल पक्ष मै हुआ। इनका जन्म लोकपुज्य देवी करणी माता के स्वर्ग धाम पधारने के लगभग 10 महीने बाद हुआ। इन्हें करणी माता की अवतारी देवी माना जाता है। अकबर की समकालीन थी, राजबाई ने 80 वर्ष की आयु प्राप्त की और विक्रम संवत 1676 में आप स्वर्गधाम पधारी।
श्री राजबाई आजीवन ब्रम्हाचारीणी रही उनके पिता उदा वाचा महापुण्यशाली पवित्र आचरण वाले विद्वान्, भक्त, वचनसिद्ध, पुरुषार्थी और साधन संपन्न थे। पूर्व जन्म के कर्मो एवं जीवन की तपस्या के कारण ही उनकी पुत्री के रूप मै लोकदेवी राजबाई का जन्म हुआ।
राजबाई के देविगुणों की कीर्ति पश्चिम भारत मै और विशेष कर कच्छ, सौराष्ट्र, राजस्थान, सिन्ध और दिल्ली आदि क्षेत्रो मै तेजी से विस्तृत हुई। राजबाई का एक मंदिर राजस्थान नागौर जिले के लाडनू के निकट समना गाँव के पूर्व मै तथा रेवाड़ा गाँव के दक्षिण में डोबरां (गोचर भूमि) के नाम से प्रसिद्द ओरण में है। इस मंदिर में संगमरमर के पत्थर पर सिंह पर सवार दो भुजाओ वाली आकृति उत्कीर्ण है इसे राजबाई का सिणगारू (श्रृंगार) रूप माना जाता है। राजबाई का एक ओर प्रसिद्द मंदिर जोधपुर-जालोर सड़क मार्ग पर चारणों के गढ़वाड़ा गाँव में स्थित है।
*राज बाई के चमत्कार
एक गाय को तीन मण दूध एक बार बीकानेर के प्रिथीराज राठोड ने जब अपने दलबलके साथ द्वारकाधीश के दर्शन करने
हेतु यात्रा की तब उनके साथ अनेक रक्षक दल, घोड़े, व्यापारी एवं परिवार के सदस्य थे। प्रिथीराज राठोड का डेरा तत्कालीन गुजरात के झालावाड प्रांत के चराडवा गाँव के निकट सुन्दर सरोवर के किनारे डाला गया। यात्रा दल के सदस्यों के लिए तीन मण दूध की आवश्यकता थी। वह चर रही गायो के ग्वालो से कहा गया की यह पृथ्वीराज राठोड का द्वारका जाने वाले यात्रियों का संघ है। प्रिथीराज राठोड की प्रार्थना पर राजबाई ने एक गाय का दूध निकलना शुरू किया। जो आवश्यकता के अनुसार तीन मण से अधिक हो गया।
मृत अश्व जीवित किया
दस वर्षीय राजबाई सरोवर पर पानी भरने आई तब वह कुछ लोग चिंताग्रस्त खड़े थे, राजबाई ने उनसे पूछा की आप उदास क्यों है, तो उन्होंने कहा की प्रिथीराज राजाजी का घोडा अचानक मर गया है। राजबाई ने उस घोड़े को हाथ लगा कर कहा यह घोडा मरा नहीं जीवित है, राजबाई के द्वारा स्पर्श करते ही घोडा खड़ा हो गया। इस चमत्कार को देख कर सभी उपस्थित श्रद्धालुओ ने राजबाई माताजी को प्रणाम किया, राजबाई ने प्रिथीराज राठोड को संकट समय याद करने पर सहायता का वचन और आशीर्वाद दिया।
ददरेवा गाँव मै चमत्कार
एक बार राजल माँ के पिता सपरिवार अकाल पड़ने के कारण अपने पशुधन को साथ लेकर गुजरात से राजस्थान के ददरेवा (जिला चुरू) नामक गाँव के पास आकर अस्थायी डेरे में पशु – पालन हेतु ठहरे हुए थे, बीकानेर के महाराज पृथ्वीराज राठोड घोड़े पर स्वर होकर अपने ससुराल ) जैसलमेर की और जा रहे थे तो ददरेवा के निकट जंगल मै एक पानी की नाडी (छोटा तालाब) के किनारे पर दो जंगली भेंसो को आपस में लड़ते हुए देखा। राजबाई पानी भरने के लिए नाडी की ओर जा रही थी और उन्होंने लड़ते हुए दोनों भेंसो के सींग अपने हाथ से पकड़ कर दोनों को अलग कर दिया और नाड़ी में पानी भरने लगी। दोनों भेंसे मूर्तिवत कहदे हो गए, राजबाई पानी का मटका लेकर उन दोनों भेंसो के बीच में से निकल कर चली आई और उनके जाने के बाद दोनों भेंसे फिर पूरी ताक़त से लड़ने लगे। पृथ्वीराज राठोड ने राजबाई को प्रणाम किया और अवतारी देवी समझा राजबाई ने पिता के डेरे में ले जाकर सत्कार किया और पृथ्वीराज राठोड द्वारा आशीर्वाद मांगने पर कहा की जब कभी संकट का अनुभव करो मुझे याद करना में जरूर आउंगी, जब पृथ्वीराज राठोड की पत्नी चम्पादे को अकबर ने नवरोज के अवसर पर बुलाया तो पृथ्वीराज राठोड ने अपनी मान – मर्यादा पर मंडराते हुए संकट के समय राजबाई
को स्मरण करते हुए, निवेदन किया की नवरोज में मेरी पत्नी के जाने से मेरा कुल कलंकित हो जायेगा और आपने ददरेवा में जो संकट के समय सहायता का वचन (कोल) दिया था उसके अनुसार मेरी मदद करावे। पृथ्वीराज राठोड ने निम्नलिखित सोरठा में कहा-
“बाई साम्भळ बोल, कमधां कुळ मेटण कळन्क।
करज्यो सांचो कोल, ददरेवे दीनो जीको।।”
लोकपुज्य देवी राज बाई ने सामय पर पहुँच कर अपना कोल पूरा किया और नवरोज की प्रथा हमेशा के लिए बंद करवादी।
झिन्झूवाडा में झाला को राजगद्दी प्रदान
राज राजेश्वरी (राजबाई) माताजी का एक प्रसिद्द मंदिर झिन्झूवाडा में भी स्थपित है। उस मंदिर के प्रमुख श्री बलदेवसिंह जस्सुभा झाला द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक में राजबाई के बारे में विस्तार स वर्णन किया गया है,झिन्झूवाडा झाला वंश की रियासत रही है। उक्त पुस्तक में वर्णित विवरण के अनुसार “धांगध्रा तालुका के चराडवा गाँव में अवतरित मत राजबाई आद्याशक्ति की अंशावतार थी, झिन्झूवाडा में ईद के दिन हिन्दू से मुसलमान धर्म अपनाने वाले सूमरा थानेदार हुआ कर्ता था उसने गोवध कराया, उक्त गोवध ने हिन्दू प्रजा के मन को उद्वेलित कर दिया था, गोवध की घटना से माता राजबाई अत्यधिक क्रोधित हुई। उन्होंने
झिन्झूवाडा का राज्य झाला कुमार बनवीरसिंह को सौंपने का आशीर्वाद दिया, बनवीरसिंह को राजबाई ने दर्शन दिए और जहा माताजी के स्वप्न में दर्शन हुए उस स्थान पर कुमकुम के पगलिये, अबीर, चावल मांगलिक चिन्ह स्वत: ही प्रकट हुए, कुमार बनवीरसिंह ने राजबाई के आशीर्वाद से सूमरा मुस्लिमो के शासन को ख़त्म किया और राजगद्दी पर विराजमान हुए। झिन्झूवाडा के गढ़ में राजबाई का मंदिर निर्मित किया जो आज भी लोक आस्था का स्थान है, उस क्षेत्र की जनता राजबाई को अत्यधिक आस्था के साथ
पूजती है।