Fri. Nov 22nd, 2024

पेर कटारी पोढयौ, दे प्रचणा सर पाँव।
रण धपावेह रगत सौ, रंग हो मीसण राव।।

भेरदानजी मीसण ओगाला ने भोयात्रे गढ़ पर कटारी पेर ने भूपालसिंह चौहाण का राज्य और वंश करके उस गढ़ वाले शहर को एक सुनसान जंगल बना दिया!

ओगाला से कवि चंदादानजी मीसण अक्सर भेरदानजी से कहते थे की दादाजी आप कोई ऐसा काम करो की में आपको मेरे काव्य से अमर कर दू, तब एक ही जवाब देते थे समय आने दे ! आखिर समय आ ही गया गाँव के रबारियों के ऊंट चोरी करके भूपालसिंह के आदमी ओगाला से ले गए, तब बात कोटड़ी में आई और चारणों व् राजपूतो के मध्य चले आ रहे सम्बन्धो को याद करके ऊंट लौटाने का आग्रह किया पर नही माने और बात गंगासरा के चौहानों को बताई तब भी भूपालसिंह ने किसी की भी बात नही मानी और अपनी हठ पर कायम रहा, उस वक्त भेरदानजी साथ में थे उन्होंने कहा अब बात अपनी आ रही रित से मानायेंगे और ठाकुर को कह कर उठ गए, आखिर वो समय आ ही गया और भेरदानजी ने कटारी पहन कर पूरे गढ़ को रगत से छांट कर ऐक आमली के निचे आकर कटार से आखरी नवज को काटने लगे की भेरजी ने चंदाजी को हाथ के इशारे से कहा कि तुम अमर की बात कर रहा था अब बोल क्या हुआ तेरे काव्य को तब भेरजी ने ओजस्वी वाणी से अपने द्वारा रचित साणोर गीत सुनाया और जिस भांति गीत रचित था उसी प्रकार ही भेरजी ने अपना पराक्रम करके भोयात्रे को तहसनहस किया !
भूँके सियाल भोयात्रे, नरपट पड़या नाल।
मीसण भेरो मारतो, भूपा रौ घर भाळ।।
आज भी वाह सिर्फ सान्याल ही भूंकते है!!

-हिंगलाज ओगाला 

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *