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सद्गुरु देवेभ्यो नम:
।। आइ श्री गंगामां की सद्गुरु स्वरूप में मेरे शब्दों द्वारा की गई प्रथम वंदना।।

।। छप्पय ।।
हवन करी धरी हेत, पाठ हरिरस रो पढ़यो ।
धरा कर्णावती धाम, नाम गोविंद रो गढयो।
मास अषाढ, पक्ष शुक्ल, पूर्णिमा तिथि पुरी।
वार शुक्र, संवंत साठ, एक क्षण नहीं अधुरी ।
संकल्प करी चित शुद्ध सों, दास जयेश यों जान्यो।
आइ गंगामां सद्गुरु पदे, मैं आपहुं को मान्यो ।

धरती मात धरी धीर, नवेखंड सबकुं निभावे।
ज्यों भानु बिन भेद, देही अजवास दिपावे ।
ज्यों धरे तरुवर छांय, वारी ज्यों प्यास बुझावे।
अमर करे अमरत, ज्यों अन्न तृप्ति उपजावे।
भागीरथी पाप भव भव के, टारत है भवतारणी।
जगदम्ब गंगामां दास जयेश की, सार ल्यो काज सारणी।

मन भक्ति महामाय, परम ईश्वर सुं प्रीति।
चारण जन की चाह, रखां उज्ज्वल कुल रीति।
हेत संप घर होय, भरया धन धान्य भंडारा।
धेनु, महिषी, अरु धरा, आनंद चित विधा अपारा।
व्यसन, रोग, वैर, विकार टरे , सदा सजन को साथ हो।
जगदम्ब गंगामां, जयेश शिरे, हमेश आपको हाथ हो।
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हम अपने सद्गुरु की कृपा के पात्र बनें ऐसी प्रार्थना के साथ ब्रह्मांड के सर्वोच्च सद्गुरु – तत्व को कोटि कोटि वंदन।
– सद्गुरु कृपा अभिलाषी

-कवी – जयेशदान (जय)

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