हल्दीघाटी रा समर होवण में ऐक दोय दिनां री ढील ही, दोनों ओर री सेनावां आपरा मौरचा ने कायम कर एक बीजा री जासूसी अर सैनिक तैयारियां री टौह लेवण ने ताखड़ा तोड़ रैयी ही। जंगी झूंझार जौधारां रो जोश फड़का खावण ने उतावऴो पड़रियो हो। राणाजी रा मोरचा तो भाखरां रै भीतर लागियोड़ा हा नै मानमहिप रा खुलै मैदानी भाग मे हा। लड़ाई होवणरै दो दिन पहली मानसिंहजी शिकार खेलण थोड़ाक सा सुभट साथै लैय पहाड़ां रै भीतरी भाग मे बड़ गिया। राणाजी रा सैनिक जायर राणाजी ने आ कही कि हुकुम इण हूं आछो अवसर कदैई नहीं मिऴेला अबार मानसिंहजी ने मारदेवां का कैद कय लेवां। इण बात पर राणाजी आपरी वीरता री उदारता दिखाय आपरा सुभटां ने पालर कैयो क आंपणै औ कायरता रो करतब नीं करणो है। आंपा धर्म रा रक्षक हां अर भगवानरा भगत हां जणैई आंपांरी बिजै हुवै है। महाराणाजी री ई उदारता रो बरणाव कवि केसरीसिंहजी सौदा रा मुख सूं।
।।दोहा।।
अरज करि सुभटन यहां, प्रभु अवसर यहँ पूर।
कैद करें गहि कूर्म को, ह्वै जो हुकम हजूर।।
रानकहि अरिदल रहित, अनुचित कर्म अतीव।
हम रक्षक दृढ धर्म तो, दे हैं विजय दईव।।
।।कवि-कथन।।
त्रियअरू शत्रु एकान्तमें, काहू को मिल जात।
रहै मुस्कल बहु रिसिनको, रहतसुन्यो मनहाथ।
।।मनहर।।
पारासर जैसे मछगंधा को ऐकान्त पाय,
काम-वासना को तृप्त करिवे टरे नहीं।
द्रोन से अपूर्व वीर चक्रब्यूह बेध काल,
बाल अभिमन्यु कहँ गहिबे मुरे नहीं।
कर्न के कहे पै कान नेक न किरिटी दीन्हो,
धर्म युध्द ठान भुज धरम धरे नहीं।
कौन परताप महारान सो अरिन कैद,
करि तो सकै पै क्षमा करि के करे नहीं।।
।।दोहा।।
कउ कहत महारानकी, भई महा यहँ भूल।
लैते बदला मान तै, हतो समय अनुकूल।।
पै देखहू यह भूल को, महिपति कितनो मोल।
सबलछमी निरगर्वधनी, ताहिसके को तोल।।
।।मनहर।।
प्रचुर पहारन में हजारन फौज परी,
ताके ढिग कूर्म कर्न मृगया विचारी है।
शत्रुन निकट असहाय फिरै सून्य हिये,
माननीय कच्छप की कैसी मति मारी है।
गहिबे की अरज भई त्यौं गहिलोत हू तें,
पातल छमा की तहाँ नजर प्रसारी है।
मान अविचारता पै कैते अविचारी वारौं,
रान की उदारता पै बली बलिहारी है।।
धन्य है महाराणा प्रतापसिंहजी जिणानै आपरै उपर अबखा बिखा री भी कोई परवा नीं होवती पण आपरा ऊँचा राजपूति अर मानवता रा ऊंचा उसूल अर काण कायदां ने आपाण पाण निभाय कुऴवट अर रजवट रूखाऴी है।
~राजेंद्रसिंह कविया संतोषपुरा सीकर (राज.)