Fri. Nov 22nd, 2024

बहुत से भाइयों को, विशेष कर नवयुवक मेहड़ू भाइयों को यह क्रमवार जानकारी हो या न हो, लेकिन तथ्यों की गहराई और इतिहास एवं इस कुल के बही भाटों के साक्ष्य पूर्वक अध्ययनों से यह प्रमाणिक और प्रमाणित होता है कि मेड़वा जो कि मेहड़ूजी केशरिया ने बसाया था, यहाँ से एक नई शाखा मेहड़ू अस्तित्व में आई, कालान्तर में समयानुसार लोग पलायन करते गये मेड़वा से कुछ लोग बीकानेर चुरू सीकर तक चले गए, कुछ लोग पारकर जो कि पशु पालन और पानी के लिए सुरक्षित स्थान कहा जाता था, उस तरफ चले गए, पारकर से समय समय पर लोग काठियावाड़ और सोवराष्ट्र की तरफ गये, मेहड़ू जाति को प्रसिद्धि और पद काठियावाड़ में सबसे ज्यादा मिले, लूणपालजी, गोदडजी, लांगीदासजी, और व्रजमालजी ने बहुत ख्याति पाई, इस क्रम में हमारे पूर्वजों का राजा महाराजाओं के साथ मेवाड़ में आना जाना रहा, यहाँ मेवाड़ में और ईडर में भी मेहड़ू का निवास स्थान हो गया,, आगे चल कर मेहकर्णजी मेहड़ू बाड़ी से सरस्या और महाकवि महादानजी को मारवाड़ में भी जागीरी प्राप्त हुई, इस प्रकार हमारी जनसँख्या का अधिकांश भाग पारकर और काठियावाड़ में पाया जाता है, राजस्थान में खारी को छोड़ कर बाकि सब छोटे छोटे गाँव है ।पारकर में मेहड़ू की एक समय सबसे ज्यादा आबादी थी इसमें गढ़ समोवड़ गूंगड़ी, उंडेर राठी और डीनसी, मेहड़ू शाखा के बड़े बड़े गाँव थे, पर धीरे धीरे लोग काठियावाड़ चले गए, उसका मुख्य कारण पारकर के सोढा राजपूतो और काठियावाड़ के राजपूतों के बीच अधिकांश रिस्तेदारी का होना। सबसे पहले डिणशी से कवि श्री डूंगरसीजी मेहड़ूजी का परिवार गया था, उनको देगाम की जागीरी मिली थी, फिर क्रम बढ़ता ही गया, इस प्रकार हमें मालूम होना चाहिए कि सोवराष्ट्र, काठियावाड़ ईडर मारवाड़ में ही मेहड़ू शाखा का निवास स्थान है, 1971 और  विभाजन के समय पारकर से पूरे मेहड़ू पलायन कर गए है, ओर अब भी पारकर में मेहडू जाती का एक परिवार वहां मौजूद है राठी में, किसी समय में पारकर मेहडूओ की शक्ति और सत्ता का केंद्र रहा,

-भंवरदान मेहडू साता

By admin

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *