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।।सवैया।।

शत्रुन के घर सेन करो समसान के बीच लगाय ले डेरो।
मत्त गयंदन छेह करो भल पन्नग के घर में कर गेरो।
सिंह हकारि के धीर धरो नृप सम्मुख बादि के न्याय नमेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब कौन बिगार करे नर तेरो।।१

खग्ग उनग्गन बीच कढौ गिरी झांप गिरौ किन कूप अँधेरो।
ज्वाल करालन मध्य परो चढती सरिता पग ठेलि के गेरो।
राम सिया उर में धरि के प्रहलाद की साखि ते चित्त सकेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब, कौन बिगार सके नर तेरो।।२

सेज समीप खरो असि लै अरि कोप महीपति तोपन घेरो।
वित्तले वासब सौठग के किन, भोजन मांहि हलाहल भेरो।
तेतिस कोटि कुद्रष्टि करो किन तीनहू दुक्खन गेह बसेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब, कौन बिगार सके नर तेरो।।३

सेज समीप खरो असि लै अरि कोप महीपति तोपन घेरो।
वित्तले वासब सौठग के किन, भोजन मांहि हलाहल भेरो।
तेतिस कोटि कुद्रष्टि करो किन तीनहू दुक्खन गेह बसेरो।
जानकीनाथ सहाय करे तब, कौन बिगार सके नर तेरो।।४

मोदित कर्न अमोदित कौं मन मान्यौ मिले उपकर्न घनेरो।
शोधित कर्न अशोधित कौं, सहसा ह्वै सुजानन केर सकेरो।
बोधित कर्न अबोधित कौं, द्रुत आउत।है बुध व्यूह ते भेरो।
जानकीनाथ सहाय हुवै फिर कौन सहायक ना नर तेरो।।५

रोषित ही रिपुराग चहैरू, त्रिदोषित के रहे रोग न नेरो।
शोषित ही कहै पोषित हौं, तब तोषित भाखै अतोषित केरो।
दोषित होय अदोषित ही स्वत दूषित ही को अदूषित टेरो।
जानकीनाथ सहाय हुवै फिर कौन सहायक ना नर तेरो।।६

क्रोधित ह्वै ढिग आय अक्रोधित शोधत है जउ क्रोध उखेरो।
आय विरोधित वर्ग अराधत खोदत पौध विरोध पसेरो।
रोंधत जो चहु कोंदन सों वह ऊध्धत होय विनम्र घनेरो।
जानकीनाथ सहाय हुवै फिर कौन सहायक ना नर तेरो।।७

शोणित केरो पिपासित होत पिपासित दर्शन हर्ष घनेरो।
जाहि तपा करै त्राशित सो द्रुत होत कृपा अभिलाषित चेरो।
शासित सो सहसा बनै शासक चित्त हुलासित चिंतित केरो।
जानकीनाथ सहाय हुवै फिर कौन सहायक ना नर तेरो।।८

भारति सों प्रतिभा वै प्रभासित श्री सौं सुभाषित गेह घनेरो।
बुद्धि विनायक सों विकसे अरू वै दुरगासन शत्रु न मेरो।
कीर्ति प्रकाशित वै विधि सौं अभिलाषित देव करै मन केरो।
जानकीनाथ सहाय हुवै फिर कौन सहायक ना नर तेरो।।९

~~कवियत्रि भक्तिमति समान बाई

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