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“दिल लगी”
 “गज़ल”

मैने सीखा है जिंदगी मे, हर दिल दिल से लगाना।
यही जीवन है मेरा यारो, यही मेरा फसाना।
मैं पीता नहीं शराब कभी, किसी ग़म को भगाने।
ना आदत है मेरी कोई नशा, युं हौश गंवाने।
लेता हुं लुत्फ से जरूर, जब हो दिले दीदार दिवाना
यही जीवन है मेरा यारो, मैंने सीखा है जिंदगी मै।।

मैं खालिस जो पीया करता हुं, कभी कतरा नहीं पानी।
मुझे नफरत है मिलावट से, आदत है बेगानी।
हर शबा रोज़ महफिले साकी, होता पैमाने पे पैमाना।।
मैंने सीखा है जिंदगी मैं……..

तेरा प्याला है बड़ा गजब, अजब नशा भी इस कदर।
पीते ही मदहौश हुए, पीया जिन दिल लगाकर।
पीया कबीर ने भर भर, तुलसी ने तरबतर, हुई मींरा मस्ताना।।
मैंने सीखा है जिन्दगी मै…….

मैं खडा़ हुं दरबार तेरे, सिर को झुकाए।
अब लोट के ना जाऊंगा, बिन रहमत तेरी पाए।
करदे उल्फत की नवाजिश आका, तेरा पता भी बताना।।
मैंने सीखा है जिंदगी मैं……

मैं आजिर हूं, मुत्नजिर भी, तेरे दर्शन को हरदम।
मुझे मिल जाय मेरी मंजिल, बढ़ते चले कदम।
मेरी नियत हो यारब्ब! नशेमन तेरे, सिर को झुकना।।
मैने सीखा है जिंदगी मैं दिल, दिल से मिलाना….

मेरी बेबसी का फायदा, जालिम दुनिया ने उठाया।
देना पडे़गा हिसाब तुझे, कयों बेबस को रुलाया।
कयों ढाए हैं जुल्म इन्तहा, तुझे धिक्कार ज़माना।।
मैंने सीखा है जिन्दगी मैं, दिल दिल से लगाना……

मैं लब पे कभी लाता नहीं, कोई लम्हा ग़म का।
मुझे परवाह भी नहीं मौत की, ना शोंक हरम का।
“आहत” की इबादत मैं, ना रोजा़ ना तस्बी,
ना सिजदाए काबा, ना गँगा मैं नहाना।।
मैंने सीखा है जिन्दगी मैं, हर दिल – दिल से मिलाना।
यही जीवन है मेरा यारो, यही मेरा फसाना।
हर दिल – दिल से मिलाना।

~आशूदान मेहड़ू “आहत” जयपुर (राज.)

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