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😁 अठे हर कोई भरे बटका 😁
….  राजस्थानी हास्य कविता  ….

घुमावण ने नहीं ले जावां,
तो घराळी भरे बटका ……।
घराळी रो मान ज्यादा राखां,
तो माँ भरे बटका ……..।
कोई काम कमाई नहीं करां,
तो बाप भरे बटका ……।
पॉकेट मनी नहीं देवां,
तो बेटा भरे बटका ……।
कोई खर्चो पाणी नहीं करां,
तो दोस्त भरे बटका …..।
थोड़ो सो कोई ने किं कह दॉ,
तो पड़ौसी भरे बटका ….।
पंचायती में नहीं जावां,
तो समाज भरे बटका …..।
जनम मरण में नहीं जावां,
तो सगा संबंधी भरे बटका …।
छोरा छोरी नहीं पढ़े,
तो मास्टर भरे बटका …….।
पुरी फीस नहीं देवां,
तो डॉक्टर भरे बटका ……।
गाड़ी का कागज पानड़ा नहीं मिले,
तो पुलिस भरे बटका …….।
मांगी रिश्वत नहीं देवां,
तो अफसर भरे बटका ……।
टाइम सूं उधार नहीं चुकावां,
तो मांगणिया भरे बटका ……..।
टेमूं टेम किश्त नहीं चुकावां,
तो बैंक मैनेजर भरे बटका ……।
नौकरी बराबर नहीं करां,
तो बॉस भरे बटका ………।
*व्हाट्सएप्प पर मेसेज नहीं करां तो,*
*थै भरो बटका ………।*
अब थे ही बताओ,
जावां तो कठे जावां,
अठे हर कोई भरे बटका।

~आशूदान मेहडू जयपुर

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