चम्पा माँ री दोहावली रणदेव कृत
सुमरूं गणपति आपनैं, मंगल करों महान्।
शारदा बणों सारथी,, देओं आखर दान।।1।।
मांडू आखर मायडी, रणदेव नैं रसाव।
किरपा जद आ करौला,,तदी शब्द संजाव।।2।।
शुभ अवतरण शुक्ल पक्ष, अकदश श्रावण माह।
संवत उनीसौ पिचतर,,ग्राम डीनसी जाह।।3।।
शुभ मात चम्पा सगती, लीन्हों जट रख नाम।
लेय जन्म आ लोवडी,,धन्य करैं मनधाम।।4।।
अवतरी वाघ आंगणै, खुशीयाँ दीन्हा ख्वाब।
लेय जन्म कुल मेहडू,बणाय दिना नवाब।।5।।
अपर चित मन ऊजलौ, जननी आ धनुबाय।
तज आया आप सगती,धरा ऊपर धराय।।6।।
नानरों ग्राम वाव में, जिला बनासकांठ ।
जाणै सब आ जौगणी,, कष्टा देवें गांठ।।7।।
कम उम्र माँ कारणी, भगती मन रख भाव।
बिन विद्यागर जायकै, सीख लिना शब्दाव।।8।।
शक्ति रो माँ रूप सजैं, देवी चारण दाय।
एक वर्ष में वारि दो,,भोज करा मन भाय।।9।।
देवी कम उमरा मयी, भगवती भजन भाय।
रामायण गीता सबैं, सगलां कंठ बसाय।।10।।
सर्व गुण मात सज सरैं, करम धरा लें काय।
चिडि कबुतरा चुगा करैं, हथेली रैह मार।।11।।
तिरह वर्ष मा तप लियों, गुरू खेत ने खोज।
गरीब री गर्वावली,, भगतां करहैं भोज।।12।।
चम्पा विवाह मंड चजै, राणीदान र लार।
मरू ग्राम मात परणै,, तरणी बांधै तार।।12।।
सिडायंच कुल सांतरै, परणा वाघादान।
पिता धर्म पूरण करैं,,सगती राखैं शान।।14।।
पारकर सूं पलायना, आ तारिसरा आप।
कर शुभ दिवसैं कारणी,, पूरण रखें प्रताप।।15।।
तारिसरा भी छोड तरैं, जा मात बीकाणाय।
जदा जगदंब जौगणी,, चम्पानगर बसाय।।16।।
आजीवन ही मायडी, भगती भाव भराय।
भगती कर नित भगवती,,रजगज भगता रसाय।।17।।
चम्पानगर में जाय्कै, दिय वचन दाढाल।
काल मुक्त रहैं नगरी,, परम बोल दें पाल।।18।।
आज होत रही नगरी, चमना वाली चाँद।
करैं बीकाण ऊजलौ, करणी रैं उपरांत।।19।।
दिधो मात खूब परचों, भगता दु:ख लें भार।
सारा जंजाल सगती,,मेट्या पांव पसार।।20।।
पोते री सुण बात माँ, पद करती परदान।
जा सुथार सपना मही,, निज किरपाह निदान।।21।।
क्षय रोगी मलदान री , लोवडी रखें लाज।
खाकर उराय कोड नैं,,देवें जीवन राज।।22।।
विजयदान पर वसूली,भगती भाव भराह ।
पूत उनरा सेवाभी,, किरपा अंब कराह।।23।।
सगतीय एकर सब नैं, अंत वचन बोलाय।
मगसर एकादशी नैं, ज्योति लिन हो जाय।।24।।
एकादशी मगसर मा, जागरण विच जगाय।
विजय थारी भगती सूं,मात अन-धन लुटाय।।25।।
धरो सगलांय मात रों, भगती वालौं ध्यान।
“रणदे” ध्यावैं रंजसूं,,माँ चम्पा लो नाम।।26।।
–रणजीत सिंह चांचडा “रणदेव”