लाख़ा जमर रौ जस (आउवा पाली) – कवि भंवरदान झणकली
“सौल़ह सौ संवत रै बरस तियाल़िसै बीच़।
ला़ख़ा ज़मर ज़ालीय़ा सतीया श्रोणित स़ीन्च”
“धीरज तज जौध़ाण पत कौफ कीयौ कमधैश।
मुरधर छौड़ौ माघ़णा दियौ निकाल़ौ दैश”
किरनाल़ कुल़ रौ कलंक राजा,कंश बनकर कौफीयौ।
निकलंक गढ़ जौधाण़ रौ नव कुंगरौ नीचौ कीयौ।
माॉघण़ा छौड़ौ दैश मुड़धर, हुकम घरघर हाल़ीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
खल़बल़ी माची दैव खैड़ा सीम सैड़ा उण सम्मै।
हरगज बैसण दै न हाकम हाल़ की हौसी हमै।
गरजीयौ चठ़वा भीर गौपौ कमध कागज मैलीय़ा।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।।
समसत सांसण़ हुवा सुना हैक संग व्हैयर हुवै।
आंसु बहाती रही रहीयत रूखड़ा झुर झुर रौवै।
प्रभात् ठल़ता पशु पंछीया नेण नीरझर नाखीयॉ।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।।
थौरा करै सरदार थाका पण़ हठी कौमल़ न हुवौ।
प्रण धार गौपौ छौड़ पाली वीदगा संग ऊठ भूवौ।
चांम्पावता कुल़ रीत चतूर चौज राखण चालीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
पहाड़ी तलसर बीच पाता कैहरडा़ डैरा कीया।
शिशौद रौ संदैश लै मैवाड़ मंत्री आविया।
सांसण़ समापण हिन्दुवौ सुरज पुर्वजा पथ पालि़या।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
परतैक चारण हौय परवैस वास पाली आवीया।
ऊगाणलै वल़ गाम आऊवै पास डैरा पाविया।
महादुष्ट आगै किध मैड़ा भ़ाण़ कुल़ रा भौमीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
बिन दाग मांघण छौड़ मुड़धर जाट ज्यू नही जावसी।
राजन्द रौ जस वंश रौल़ण़ परम परचा पावसी।
अखियात अमर खिड़ग जमर सत्य समर साजीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
सतधार कर सणगार सतीया गीत सिन्धु गावीया।
बलिदान किधौ गात गौविन्द राग पत दरसाविया।
हिगलाज सुत निस अंग हौमण मरण सारू चालीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
धधकियौ पावक धौमतर झड़फत झाल़ा अंग झड़ै।
विलखत् हत मासुत बालक जामणी जमर चड़ै।
परवार तौड़ै मौह पदमण वीरद कज तन बाल़िया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
उड खाख आॅधी उपड़ी गैतूल़ चड़ीयौ तन घड़ी।
औढ़ाण पीगल पांगल़ी वण चुनड़ी अमर चड़ी।
ढ़ाकीया सुजस धुंवर हॉंस सरगा हालीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
दीपै पतंगा दैख दीपक भंवर अंका पंक झरै।
हुतास अंम्बुज हौय हरसीत तन मन सुत हरै।
जाति धर्म ईण जल़कर जाचका अजुवाल़ीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
मुरझा गया अणमौल कमल़ झुमता ईण जात रा।
चमकिया हौय अमर चहुदिश रौज तारा रात रा।
पॉथूवा पाया गाम पाछा नरक उदै नावीया।
धनवाद चारण़ जात उण दिन लाख जीवण जालिय़ा।
छप्पय
धन चारण उण दिन साख सौ वीस संचाल़ी।
धन चारण उण दिन पुर्ण एकता पाल़ी
धन चारण उण दिन कर दुशमन री काल़ी।
धन चारण उण दिन रक्त दै धर रखवाल़ी।
जणवार कर तागौ जमर असंख्य हुवा अजर अमर।
कर जौड़ कथा समरण करै भण़ै सुजस बारट भंवर।।
~कवि भंवरदान झणकली