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चारणा री मरजाद – कवि भंवरदान झणकली

देव कुळ मों जन्म देती, जीभड़ी अमरत जड़ी।
उण जिभ्या पर आज आखर लाख गाळ्या ले थड़ी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।1।।

तणक पडतां वरत तूटी जुग वदन बम्बी जुड़ी।
तोड़ सगपण आज ताकव घाव बेचे धीवड़ी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।2।।

शाबळा रो जुल्म सांप्रत निरख नाठी न्यातड़ी।
दुर्बळा निर्दोष ऊपर कोफ बीजां कड़कडी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।3।।

अगन कुंड मों होमता अंग पारकां विपती पड़ी।
दुष्टता कर आप दौड़े हेतुआ कर हथकड़ी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।4।।

वचन छूटा वजर बूठा तखत तुटा तण घड़ी।
चुतर बणिया आज चारण कूड़ बोलण कचहड़ी।।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।5।।

राखता संतोष रेणू क्रोड धन लख वन कड़ी।
देव चोरी करे देवल माँगड़े लंब मोजड़ी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।6।।

ज्ञान घटिया मान मिटिया प्रोळ ऊधटी झूपड़ी।
भरे साँसण लाग भूमी आद रीता ऊँधड़ी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।7।।

अर्ज भँवरदान री एक मान लीजो मावड़ी।
भाळवा आजो माँ भवानी लेह त्रम्बळ लोहड़ी।
ऐ रही मरजाद अब तो माघणा घर मावड़ी।।8।।

~कवि भंवरदान झणकली

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