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छंद रूप मुकुंद – कवि भंवरदान झणकली

घर हूत अणुत कपूतर पूत, भभूत लगाए भटकता है।
गुरू धूत कै जूत करतूत सहै, अस्तूत मां भूत अटकता है।।
अदभूत धँआङ माँ धुत रहै, अण कूंत अफीम गटकता है।
अवधूत वणै मजबूत नशा, जमदूत की फांस लटकता है।।1।।

घर बार तजे वर्ण च्यार तजै, बदकार चैली संग रखता है।
लौक लाज तजै माहराज वजै, बकवाद वैदान्त की बकता है।।
हहंकार हसै गैवार फंसै हुशियार कौ दैख हिचकता है।
रहणी करणी तप जौग सुणै, गिदङी खण मौड गिसकता है।।2।।

कई मंदर मां हुङदंग करै, कई बांग मसीद मां कुकता है।
कई नंग तङंग निहंग फिरै, कई भंग तरंग मा बूकता है।।
कई अंग मशी भभरंग चढा, कई धूंण अगन मां सूकता है।
कई आत्मज्ञान उटंग करै, कई जंतर मंतर फूंकता है।।3।।

कई धार बंदूक शिकार करै, कई भीख मांगै उद्र भरता है।
कई दार तजै व्याभिचार करै, कई चौर चकार विचरता है।।
कई त्याग संसार बैकार फिरै, कई ग्रह विचार उचरता है।
भँवरू दिरकार असार सभी, धनकार जौ उधम करता है।।4।।

धिक धिक जौ भैख अफंड धरै, धिक धिक जौ भर्म फौलावता है।
धिक धिक जौ दैश गद्धार वणै, धिक धिक जौ हराम का खावता है।।
धिक धिक जौ लूट खसौट करै, धिक धिक जौ घूंस कमावता है।
धिक धिक कहौ भंवरू उनकौ, जौ समाज मां नाम लजावता है ।।5।।

धन धन मजूर वैज्ञानिक जौ भूगर्भ ब्हमांड मा मालता है।
धन धन किसान कौ जौ अन्न दहै, धन ग्वाल पशुधन पालता है।।
धन धन वणिक वैपार करै, धन जवान सिमा रखवालता है।
धन धन जो भंवर दान सदा मेहनत के मार्ग चालता है।।6।।

~कवि भंवरदान झणकली

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