Sat. Apr 19th, 2025

डॉ. अंबादान खीमराजभाई रोहड़िया

नाम डॉ. अंबादान खीमराजभाई रोहड़िया
व्यवसायपूर्व प्रोफेसर एवं अध्यक्ष, गुजराती भाषा – साहित्य भवन, सौराष्ट्र युनिवर्सिटी, राजकोट
जन्म व जन्म स्थान 
विशेष प्रवृत्ति
  • पूर्व नियामक, झवेरचंद मेघाणी लोकसाहित्य केन्द्र, सौराष्ट्र युनिवर्सिटी(2011-2021)
  • पूर्व सदस्य, युनिवर्सिटी ग्रंथ निर्माण बोर्ड, गुजरात राज्य (2013-2018)
  • पूर्व सदस्य, गुजराती भाषा-साहित्य सलाहकार समिति, साहित्य अकादमी, दिल्ली (2013-2018)
  • अध्यक्ष, भारतीय इतिहास संकलन समिति, गुजरात(2020 से )
  • पूर्व प्रमुख, गुजरातीनो अध्यापक संघ (2019)
  • गुजराती लिटरेरी एकेडमी ऑफ नॉर्थ अमेरिका के 10 वें अधिवेशन में चारणी साहित्य विशेषज्ञ – वक्ता के रूप में अमेरिका में व्याख्यान (2016)
  • हिंगलाज (बलूचिस्तान) की एवं इंग्लैंड की सांस्कृतिक यात्राओं में बतौर विशेषज्ञ सहभागिता (2005,2017)
सम्मान और पारितोषिक
  • साहित्यकार सम्मान, चारण साहित्य शोध संस्थान, अजमेर (राज.)
  • ‘चारणी साहित्य विविध संदर्भे’, ‘सभापर्व’ और ‘भृंगीपुराण’ को गुजरात साहित्य अकादमी का यथाक्रमे प्रथम, द्वितीय और तृतीय पारितोषिक
  • कविश्री दुला काग लोकसाहित्य अवार्ड.
  • राजस्थानी भाषा, साहित्य और संस्कृति अकादमी, बीकानेर का प्रवासी राजस्थानी संशोधक सम्मान (2013)
  • चारण – गढ़वी अंतरर्राष्ट्रीय फाउंडेशन की ओर से एक्सीलेंस अवार्ड (2015, 2020)
  • प्रमुख स्वामी जन्म शताब्दी समारोह निमित्त अहमदाबाद में आयोजित समारोह में सम्मानित (2022)
गुजरात में चारणी साहित्य रो गवेषणा अभियान अर प्रो. अंबादान रोहड़िया
गुजरात साहित्य आपरी सगळी साहित्यिक विधावां में नवी सिरजणा अर जूनै साहित्य री संभाळ – वीरै संपादन, शोध, प्रकाशन, विवेचन री दीठ सूं केई भारतीय भासावां सूं आगे है। लारला तीनेपांचेक दायकां सूं बठै चारणी साहित्य री लुप्त होवती हस्तप्रतां री खोज, वीरै संपादन प्रकाशन, अध्ययन – विवेचन नैं लेयर इत्तो महताऊ काम होयो अर हो रैयो है कै उणरै बाबत राजस्थानी साहित्य रा अध्येतावां नैं जाणकारी हासल करणी चाहीजै। चारण जाति री घणकरी आबादी हजारूं बरसां सूं गुजरात अर राजस्थान में ई बस्योड़ी रैयी है, जिकै सूं चारण कवियां – सिरजकां री डिंगळ में लिख्योड़ी रचनावां आं दोन्यूं राज्यां रै मांय ई लोगां रै कंठां में मौखिक हस्तप्रत रूप में मौजूद है। कीं हस्तप्रतां जद – कद ई लाधी ही, वांरो अध्ययन – संपादन प्रकाशन होयो अर च्यामेर डिंगळ रा विद्वानां नैं वांरी जाणकारी दिरीजी ही। पण सिरजण अर संभाळ री वा कंठोपकंठ परंपरा लुप्त होवती जा रैयी है, जिकै सूं चारणी साहित्य रा हेताळुवां नैं जूनी – पुराणी कै मध्यकाळ री अप्रगट पांडुलिपियां री खोज सारू रळ मिळ’र अभियान खेड़बा री त्यारी करणी चाहीजै। गुजरात री सौराष्ट्र यूनिवर्सिटी इण दिशा में सोच – समझ र, योजना बणारे काम सरू करयो हो। युनिवर्सिटी री थरपना री बगत बठै रा पैलड़ा कुलपति आपरा संगी – साथियां नैं कैयो कै आपां नैं दूजी युनिवर्सिटियां सूं टाळवां इसो काम करणो है कै जिकै सूं सौराष्ट्र युनिवर्सिटी री निजू पिछाण बणै अर दूर परदेसां तांई इणरै काम री सौरम पूगै| वै रळ – मिळ’र फैसलो वै करयो कै आपां नैं सौराष्ट्र री अस्मिता नैं उजागर करणी है, जिको कंठस्थ परंपरा रा चारणी साहित्य, लोक – साहित्य, संत – साहित्य री हस्तलिखित पांडुलिपियां नैं सोध – सोध र भेळी करणी है। इण विचार नैं साकार करबा सारू वै सौराष्ट्र युनिवर्सिटी में ‘हस्तप्रत भंडार’ री थापना करी, डिंगळ रा विद्वानां नैं इण काम में जोत्या, गुजराती भासा – साहित्य भवन में विशेषज्ञां रा नवा पद सिरज्या सगळां री मैनत सूं 12000 हस्तप्रतां रो घणमूंघो खजानो त्यार होयग्यो। इण काम में रतुदान रोहडिया अर लोककवि ‘दाद’ री भागादौडी सरावणजोग रैथी। सगळा सूं पैली हस्तपतां री सूचियां त्यार होयी तो विद्वानां नैं नवा ग्रँथां बाबत जाणकारी मिली। पतै सरू होयो संपादन से काम डॉ. ईश्वरर दवे, पुष्कर नंदरवाकर, डॉ. प्रभाशंकर तेरैया, डॉ. रमणीकलाल मारू, रतुदान रोहड़िया, डॉ. बलवंत जानी. डॉ. शिवदान चारण, शिवदान गढ़वी जिसा विद्वान इण खजानै माय सूं कीं हस्तप्रतां लेय रे काम पोळायो तो जाणै रसोवड़ा में बणती बानग्यां रो जियां सौरम बारै च्यारूंमेर पसरबा लागी। हस्तप्रत भंडार नैं देखबा सारू विद्वान उमड़बा लाग्या जित्तो लूंठो ओ हस्तप्रत भंडार हो अर जित्तो जाडी चारणी – साहित्य री धारा ही, बित्तो ई दौरो अर चुनौती भरयो काम हो इणरो संपादन अध्ययन – विवेचन अर प्रकाशन। छिटपुट लोगां रै बूथा री बात कोनी ही। इत्ती महताऊ संपदा रै संपादन – विवेचन – प्रकाशन सारू ओक इसी युवा प्रतिभा री अडीक ही, जिकी द्रिढ निस्चै सूं आसण जमा र लांबा बगत सारू बैठ सकै। सतांजोग अणी रै टाणै चारण परिवार में जाया जलम्या, चारणी संस्कारां में रच्या – पच्या, मैनती, सेवाभावी, साहित्यप्रेमी डॉ. अंबादान रोहड़िया युनिवर्सिटी रै गुजराती भासा – साहित्य भवन में रीडर बण ‘र आया। वै अठै सूं ई अम.ऐ. करी ही अर वां दिनां हस्तप्रत भंडार में ई जाया करता। चारणी साहित्य सूं गैरा लगाव री वजै सूं ई वै आगै चाल र पीओच. डी. सारू चारणी साहित्य रा महाकवि हरदास मीसण माथै आपरो घणमूंघो शोध – प्रबंध लिख्यो हो। इण सूं पैली वै चारणी साहित्य रा महाकवि आसाजी रोहड़िया, लांगीदास मेहडूरी पोथी ‘सत्स्मरण’ अर सायांजी झूला री कृति ‘रुक्मिणी’ विवेचन, प्रकाशन कर रे सेवा कर चुक्या हा प्राध्यापक रे नाते डॉ. रोहड़िया र बिचाळै लोकप्रिय रैया है। टेमसर किलामां आपरै विसय रो रोचक रीति सुं विवेचन प्रसंगसर दूहा – सोरठा अर दूजा छंद सुणाणा श्र छात्रां री हर तरै री मदद करणी वारी खामि रैयी। ऐम. फिल. अर पीअच.डी. रा सारू वांरा चरचा सत्र चालता ई रेवता निर्देशन में 12 छात्र पीओच.डी. अर 50 ऐम. फिल. कर चुक्या है। युनिवर्सिटी में पछै वै नवी नवी योजनावां सरू करी, खासक ‘डिप्लोमा कोर्स इन चारणी साहित्य’ ‘सर्टिफिकेट कोर्स इन जैन लिटरेचर ‘ला दस बरसां सूं चालता चारणी साहित्य – पाठ्यक्रम में वै 35 सूं बेसी विविध विसयां भ अध्यापकां नैं भेळा कर’र चारणी – साहित्य में अस्मिता नैं नवी गति – सगति देय र जस कमाये है। सौराष्ट्र युनिवर्सिटी राजकोट रै गुजराती भास भवन में चारण साहित्य रै अध्ययन सारू न्यारे विभाग खोलणो वारै ई दिमाग री उपज है। सन् 2004 सूं वै इण विभाग रा अध्यक्ष बने सेवावां देय रैया है। चारणी साहित्य रै सागै डॉ. रोहड़िया रे रिस्तो अपूरब – अनोखो रैयो है। वांरी वाणीर् चारणी कवियां रा केई – कई अर केई तरेर हरण ‘रो चारणी (साहित्य संदर्भ मत्तैई निसरता रैवै है। हस्तप्रत भंडार लूंठा सिरजकां रा साहित्य माथै काम करता करतां प्रामाणिक जाणकारी वांनै प्रवास निसरणो पड़तो हो। यू.जी.सी. रा शोध प्रोजे पूरा करयां पछै वै चारणी साहित्य रामू नैं सिरजकां अर वांरा जीवन – सर्जन रे बारे में सामग्री भेळी करबा सारू जग्यां – जग्यां प्रवास करयो। क्षेत्र में काम करबा रो नतीजो इत्तो सुखदाई अर सर्जनशील रैयो कै डॉ. रोहड़िया नैं कलम चलाबा सारू केई केई विसय मिलग्या। शोधात्मक सामग्री वांरै कनै ही ई – बस गवेषणापरक लेखन रो काम सरू होयग्यो। सन् 1992 सू 2011 तांई दो दायकां में वांरी कलम सूं 21 पोथ्यां लिखीजी। वांरै मांय सूं दोयेक संपादन री ही, बाकी री सगळी शोध समालोचनापरक ही- आपरी निजू दीठ सूं। खुद रो शोध – प्रबंध लिखती वेळा वाने चारणी साहित्य रा केई केई विसयां अर संदर्भां सूं निसरबा रो मौको मिल्यो हो, भळै चारणी – साहित्य रा त्रैमासिक ‘सरस्वती पुत्र’ रा सहसंपादक होबा सूं वांरो चारणी साहित्य रैं सागै जीवंत संपर्क रैयो हो। इण वजै सूं वानै बांचणो – बिचारणो पड़तो अर वां दिनां जिको कीं लिखीज्यो, वो ‘चारणी साहित्य विमर्श’ नांवरी पोथी में सन् 1992 में छप र साम्हीं आयो। चारणां रै बारै में सै जाणै है कै वै खरी खरी खळकाबा वाळा, टेकीला अर सांच रा पखधर होवै। डॉ. रोहड़िया ‘चारणी साहित्य विमर्श’ पोथी में चारणां रै बाबत चारण सिरजकां रा द्रिष्टांत संजो र उम्दा जाणकारी दी है। चारणी साहित्य री ओक अमर धारा है वीर रस
। इण पोथी में ‘चारणी साहित्य में वीरांगनावां’, ‘चारणी साहित्य में युद्ध वर्णन’, ‘चारणी साहित्य में वीर रस’ शीर्षक लेखां रै सागै वै’चारणी साहित्य में शृंगार’, ‘चारणी साहित्य में रामभक्ति’ इत्याद लेख ई सामिल करया है। कृति – विशेष रै निरूपण पेटै ‘जालंधर पुराण’ अर ‘भृंगी पुराण’ में रस निरूपण रा लेख ई जोड्योड़ा है। इण पोथी रै जित्ती ई महताऊ पोथी है ‘चारणी संदर्भ साहित्य’। इणरै मांय छह लेख है। वां मांय सूं पांच लेख न्यारा न्यारा परिसंवादां सारू लिखीज्या हा। छठा लेख में हरदास मीसण री लघु काव्यकृतियां बाबत परिचायक है। ‘चारणी साहित्य अर लोक संस्कृति’, ‘सौराष्ट्र री रसधारा रै अंतर्गत चारणी साहित्य’, ‘ईसरा परमेसरा’, ‘चारणी साहित्य में राधा रो निरूपण’, ‘जालंधर पुराण में युद्ध – वर्णन’ – औ सगळा लेख चारणी साहित्य में मार्ग – सूचक रैया है। चारणी साहित्य रा अध्येता डॉ. अंबादान रोहड़िया चारणी साहित्य रो सांस्कृतिक मूल्य दरसावता कीं शोधपरक लेख न्यारा – न्यारा निमित्तां सूं लिख्या हा, वांरो संग्रह है’ अवगाहन’। इणरै मांय दस लेख है। पैलो लेख चारणां अर बारोटां रै मांय अंतर दरसावै है। दूजो लेख लोकगीत अर चारण गीत रै बिचाळै री भेदरेखा बाबत है। तीजो लेख लोककथा अर चारणी कथा में अंतर दरसावै है। चौथा लेख में सांयाजी झूला रा पुत्र दिनकर रा लिख्या ग्रंथ ‘राधा चंद्रावली री वडछड़ री री निसाणी’ रो संक्षेप में परिचय है। पांचवों लेख ‘दुहावां में पड़ी अतिहासिक सामग्री’ री चरचा नैं लेयर है। छठो लेख ‘ब्रह्मानंद स्वामी रै जीवन’ बाबत है। सातवों लेख जालोर रै इतिहास बाबत है अर नौवों लेख चारण कवयित्रियां री सिरजण परंपरा संबंधी है। दसवां लेख में बहीबंचा बारोटां सूं लियोड़ी मुलाकात रो विवरण है। डॉ. रोहड़िया रै हाथां हस्तप्रतां में मौजूद सांस्कृतिक धरोहर री रक्षा अर गवेषणा रो काम गतिशील है अर ओक सूं अंक महताऊ पोथी रो प्रकाशन हो रैयो है। ‘चारणी साहित्य सर्जन अने भावन’ पोथी में चारणी साहित्य रानी मूर्धन्य सर्जक बाबत विस्तार सुं विवेचन को गयो है। पैला लेख में मरुधरा रा अणमोल मोती सरीखा आणंद करमाणंद मीमण री साहित्यिक प्रतिभा रचनात्मक शक्ति अर जीवन प्रसंगां गे विवेचन है। वा दोया कवियां रे बाबत डॉ. रोहडिया खोजबीन कर रे बतायो के वै पिता पुत्र हा वारै काव्य अर चिंतन री ताकत मूं प्रभावित सिद्धराज वार्ने पाटण रो राजकवि बणायो। दुजो लेख ईसरदासजी रै काका आसाजी रै बारै में है जिका चारणी साहित्य रा प्रकांड पंडित हा। तीसरो लेख भक्तकवि ईसरदास रोहड़िया रै कृतित्व व्यक्तित्व माथै केंद्रित है। चौथा लेख में अंकर भळे हरदास मीसण री प्रतिभा बाबत लिख्यो है। पांचवों लेख सांयाजी झूला नैं समरपित है। छठा लेख में ब्रह्मानंद स्वामी रै सर्जन अर साहित्यिक कृतियां री विस्तृत जाणकारी दिरीजी है। सातवों लेख 1857 रा स्वातंत्र्य संग्राम में भाग लेवणिया चारण कवि कानदान मेहडू अर वारै सिरजण बाबत लिख्यो गयो है। आठवां लेख में चारणी संस्कृति रा जंगम तीरथ समान शंकरदान देथा री प्रतिभा रो परिचय करायो गयो है अर नौवों लेख कविश्री दुलाभाया काग रै बारै में है। आं लेखां नैं देखतां लागै है कै डॉ. रोहड़िया ऊंचा दरजा रा सिरजकां रा जीवन प्रसंगां, अनुश्रुतियां, इतिहास री बातां रैबारै में सामग्री भेळी करबा में बोत मैनत करी है। इण वजै सूं ओ ग्रंथ सांस्कृतिक धरोहर री रक्षा अर गवेषणा रो महताऊ ग्रंथ बणग्यो। डॉ. अंबादान रोहड़िया री शोध अर संपादन क्षेत्र में उत्तरोत्तर लगन अर निष्ठा रो चारणी सबूत पेश करवा वाळी कृति है पूजा अने परीक्षा इण पोथी रोहड़िया ग चारणी साहित्य अर संस्कृति विस शोधात्मक लेख संचित है। ‘रामरामा’ ‘प्राचीन परंपरा अने कंठस्थ परंपरामा चारण महामाया स्तृति’ ‘राधाजीना बारमाया’ ‘चारणी साहित्य रा पूजक अने परीक्षक रोहड़िया’ अ पांच लेख पोथी में संग्रहीन है। दरअसल भारत रो संस्कृति और साहित रैमांय अंतर्लीन होयोड़ी अंक गतिशील भाग है। चारणी सिरजणा। इणरी खळखाट मा सुरसती नैं रिझातो रैयो हे, पण बगत परवाण उण भार रो सुर कीं मोळो पड्यो है। इयांकला में हूं अंबादान रोहड़िया जियांकला विद्वान चारण साहित्य अर चारणत्व री अस्मिता नैं उजागर करबा री जबरी मैनत कर रैया है। आं विद्वान रै हाथां जीं तस्यां चारण अस्मिता री शोध अध्ययन प्रसारण री दिशा में लूंठो काम हो रैयो है वो गीरबैजोग है। डॉ. रोहड़िया री संलग्नता री प्रमाणभूत भळै आगवीं पोथी है- ‘चारणां साहित्य : वारसो अने वैभव’। इणरै मांय दस लेख है। पैला लेख में बारहठ नरहरिदास रे लिख्योड़ै ग्रंथ ‘अवतार चरित’ रो विस्तार सुं अध्ययन करयो गयो है। राजस्थान रा टेहला गांव में सोळवीं सदी रै छेड़ला दायका में जलम्या भगती धारा रा इण कवि री इण पोथी रो प्रकाशन दिल्ली री साहित्य अकादेमी करयो है। दूजो लेख गणेशपुरी कृत ‘वीर विनोद’ रो रै बारै में है, जिणरो नायक है महाभारत रै कर्ण। तीजो लेख लोक – संस्कृति रा उद्गाता रूप में जाणीता कवि ‘दाद’ री काव्यकला सु संबंध राखै है। ‘टेरवां’ पोथी में आंरा केई अध्यात्म रंगी गीत पढ़ रे लोग आने संत दादल रैनांव सुंई ओळखै है। चौथे ‘गंगास्तवन’ पर लिख्योड़ो लेख है। इणरै मांय राजा भगीरथ री कोसिस सू गंगाजी रै अवतरण री पौराणिक कथा है। पांचवों लेख जशुराम वरसड़ा कृत ‘ऋतु वर्णन’ बाबत है। छठो लेख ‘आई श्री माताजीना छंद’ बाबत है। लेख रै सरू में चारणां में मिलबा वाळी आई (मातावां) री परंपरा अर उपासना नैं लेयर रच्योड़ा छंदां – कवितावां रो आछो परिचै दियो गयो है। आगलो लेख ‘अरज करां सांभळे आव अंबा’ रै मांय आईश्री करणी माताजी री बात है। ‘करणी जग अवतार’ लेख में माताजी री दस रूपां में स्तुति है। इणरी रचना कविश्री शंकरदानजी री करघोड़ी है। नौवों लेख देवीदानजी कृत ‘देवी स्तुति’ बाबत है। लेख में भुज रा इण राजकवि रो टूंक में परिचै दियो गयो है। दसवां लेख में कानदान मेहडू री संतानां रै साहित्यिक योगदान बाबत है। कानदानजी रो 1857 रै स्वाधीनता संग्राम में महताऊ योगदान रैयो हो। वांरी पुत्री रूपाळी बा मध्यकाळ री कवयित्री ही। वांरी लिख्योड़ी घणी कृतियां है। इण पोथी रो खास मकसद चारणी साहित्य री गौरवशाली परंपरा री ओळख कराणी है। अठै डॉ. रोहड़िया री संपादित भळै कीं आदर्श पोथ्यां री जाणकारी देवणी जरूरी लागै है। हरदास मीसण री दीर्घ कथात्मक कृति ‘भृंगीपुराण’ रो वै शोधपरक दीठ सूं संपादन करयो है। पैला प्रकरण में हरदास मीसण रा जीवन – कृतित्व रै बारै में संपादक प्रामाणिक जाणकारी जुटाई है। दूजा प्रकरण में ‘भृंगीपुराण’ अध्ययनमूलक दीठ सूं चरचा करी है 356 छंदां में रच्योड़ी इण पोथी रो कथासार दियो है अर भागौत से मूळ कथा सूं उगरी तुलना करी है। लेखक पोथी रे पात्रों से सजीव परिचै दियो है अर नायक रे रूप में भगवान शिव रा पात्र नै कौशल सूं चित्रित करया है। तीजा प्रकरण में मूळ कृति री वाचना अर गुजराती में अनुवाद है। डॉ. रोहड़िया इण पोथी रो विश्लेषणात्मक अध्ययन कर र रचनाकार हरदास मीसण रो सर्जक प्रतिभा रा दरसण कराया है। वै जैसलमेर जिला रा ‘बोगनी आई’ गांव रा रैवासी हा। ‘वाणी तो अमरत वदां’ डॉ. रोहड़िया रै संपादन री भळे ओक उल्लेखजोग पोथी है। महाकवि काग री जलमशती रै टाणै गुजरात राज्य सूचना विभाग ओक स्मृति – ग्रंथ विशेषांक त्यार करबा रो जिम्मो डॉ. रोहड़िया नैं सूंप्यो हो। पद्मश्री दूलाभाया काग माथै केन्द्रित इण ग्रंथ रो प्रथम खंड है- ‘व्यक्तित्व अने वाड्.मय’, दूजो है- ‘संस्कृति अने समाज’। तीसरो खंड है- ‘प्राचीन अने अर्वाचीननो समन्वय’ अर चौथो खंड है- ‘कागवाणी विविध परिप्रेक्ष्यमां’ अर पांचवां ‘बहुविध परिमाणो’ खंड में ‘दूला काग री साहित्य दृष्टि’ माथै डॉ. मणिलाल पटेल रो अनुसंधानपरक लेख है। मध्यकाळ रा चारणी सिरजका में ईसरदास रोहड़िया अर हरदास मीसण री जियां ई सांया झूजा भगतीधारा रा कवि बाजता हा। वांरी लिख्योड़ी ‘नागदमण’, ‘अंगदविष्टि’, ‘रणजंग’ अर ‘रुकमणी हरण’ पोथ्यां चारणी साहित्य में बोत महताऊ गिणीजै। विद्वानां री नजरां में भाव, भाषा अर अभिव्यक्ति री दीठ सूं ‘रुकमणी हरण’ चारणी साहित्य में बोत अणमोल है। डॉ. अंबादान रोहड़िया अर रतुदान रोहड़िया इणरो संपादन करयो है। वै इण आख्यान री कृतिपरक समीक्षा करता थकां सात पेज लांबो उपोद्घात लिख्यो है, वो मांय सुरू रा दस पेजा में साया झुलारे जीवन अर सिरजण रो ब्यौरो है। पोथी में चारण कवियां री जलमजात कवित्व शक्ति अरवारी रचनावां में मौजूद सत्य, शौर्य, आदर्श, प्रेम, वीरता, देशभक्ति स्वामीभक्ति, परोपकार स्वर्धम, सतीत्व जियांकला जीवनमूल्यां रो परिचय करायो है। पोथी में ‘रुकमणी हरण’ रो कथासार, भागीत अर दूजा पुराणां में लाधती कथावां री भागीत री मूळकथा सूं तुलना करीजी है। इणरै अलावा पात्रा रे चरित्रांकन, सांयाजी रै छंद वैभव, अलंकार, रुकमणी हरण मूळ अर आर्थी, सबदकोस, राजस्थानी – हिंदी – गुजराती री दूजी पोथ्यां में मिलती रुकमणी रै ब्यांव इत्याद री बातां रो बोत ई सावधानी सूं अध्ययन प्रस्तुत कस्यो है। सौराष्ट्र विश्वविद्यालय रा हस्तप्रत भंडार में मौजूद ‘सभापर्व’ रो संशोधन – संपादन डॉ. अंबादान रोहड़िया अर रतुदान रोहड़िया भेळे मिल रे कथ्यो है। गवेषणात्मक दीठ सूं होयोड़ो ओ संपादन इण क्षेत्र में काम करबा वाळा शोधकर्तावां सारू दिशादर्शी है। इण स्वाध्याय में हरदास मीसण महाभारत रा द्रौपदी वस्त्रहरण प्रसंग नैं केन्द्र में राख र फगत 168 कड़ी में ‘सभापर्व’ री कथा कलात्मकता सूं सिरजी है। रचनाकार आपरी सूझ – समझ सूं पौराणिक कथावां में फेरफार करता आया है। ‘सभापर्व’ में संपादक इण बात कानी खास तौर सूं ध्यान अणायो है, जियांन- महाभारत में दुर्योधन द्रौपदी नैं साथळ रो गाभा खिसका ‘र बैठाबा रो संकेत करै है, पर ‘सभापर्व’ में दुर्योधन द्रौपदी नैं आपरै खोळा में बैठवा री बात केवे है अठे भीम री जगह द्रौपदी सिंहणी री जियां गरजै बैठबा री बात केवै है। अठै भीम से जा दुर्योधन, थारा खोळा में भीम री गदा बैठ आवळ कावळ मत बोल भाव अर रस से दीन सभापत काम आयोडा ‘मोतीदाम’ ‘वियाख’ ‘कवित्त’ छंदां री सोदाहरण चरचा कर बतावै है के छंद री दीठ सुंआ पोथी कथामूलक रचनावां में न्यारी निकेवळी है। डॉ. रोहड़िया रै बारे में विद्वान कैदी कै वै चारण साहित्य रा पर्याय होयग्या हुने सारी हस्तलिखित पांडुलिपियां रो संपादन खुर करणो अर दूजां रै भेळप में ई दो – ढाई दर्जन पोथ्यां रै शोध – अध्ययन – संपादन प्रकाशन में लेखन कार्य करणो मांयली सीर, ऊर्जा अर प्रेरणा रै बिना हर्गिज कोनी हो सकै। इण काम रै अलावा चारण साहित्य रै प्रचार – प्रसार श दूजा माध्यमां रो उपयोग करबा सारू खुद नैं ई झोंकणो कोई आसान काम कोनी। डॉ. रोहड़िया युनिवर्सिटी री रोजीना रो जिम्मेवारियां निभाता थकां दूजी युनिवर्सिटियां में साहित्य सम्मेलनां संगोष्ठियां में ई भाग लेता रैया है अर आपरा गवेषणात्मक पत्रवाचनां सूं चारण- साहित्य रै बाबत अनुराग पैदा करा रै साथै- साथै श्रोतावां माथै आपरी विद्वता छाप छोडता रैया है। वै गुजरात री युनिवर्सिटियां रै अलावा राजस्थान, मुंबई, मैसूर, नागपुर, कुरुक्षेत्र, गोरखपुर री युनिवर्सिटियां में वां सूं जुड़योड़ा न्यारा – न्यारा कॉलेजां में व्याख्यान देबा सारू जावता रैया है। डॉ. रोहड़िया अंतरराष्ट्रीय स्तर रा परिसंवाद में चारणी साहित्य विषयक शोध – पत्र प्रस्तुत कर चुक्या है। भारतीय गुर्जर इतिहास परिषद कानी सूं सिक्कर में आयोजित संगोष्ठी में वै ‘चारणी पोयम्स एन इंस्पिरेशन दुगुर्जर देशप्रेमी’ विसयक अर गुजरात युनिवर्सिटी री ‘वर्ल्ड पीस’ संगोष्ठी में ‘युनिवर्सल अपील ऑव् वर्ल्ड पीस इन चारणी साहित्य’ शीर्षक पत्रवाचन करयो अर आपरी वैश्विक दीठ री ओळखाण कराई। आकाशवाणी अर दूरदर्शन सूं ई चारण साहित्य रो मरम जणा – जणा ताई पुगाबा री वारी कोसिसां बणी रैयी है। बी.बी.सी. लंदन सू वारी ‘चारण साहित्य अर इतिहास’ विषय माथै वार्ता साया होयी अर ई.टीवी चैनल रा ‘संवाद’ कार्यक्रम में वांरी चारण साहित्य रा विशेषज्ञ रै नातै मुलाकात प्रसारित होयी। राजस्थान सूं वांरो खास गैरो नातो रैयो है। अंक भेंट में बोलतां वै कबूल करयो है कै चारणी साहित्य रो विशेष अनुबंध गुजरात अर राजस्थान साथै रैयो है। भळै, म्हैं हरदास मीसण माथै शोध – प्रबंध त्यार करयो, जिकां री जलमभोम राजस्थान अर करमभोम गुजरात रैयी है। आई बात ईसरदास रोहड़िया अर ब्रह्मानंद स्वामी (पूर्वाश्रम में लाडुदानजी आशिया) सारू कैय सकां। खरा अरथ में तो मध्यकाळ में गुजरात अर राजस्थान रा क्षत्रिय अर चारण आपस में गैरा जुड्योड़ा हा। इण वजै सूं वांरी रचनावां ई दोनूं राज्यां रै सागै गैरी जुड़योड़ी ही। ओ ईज कारण है कै शोध सारू दोनू प्रजावां अर प्रान्तां नैं देखणो, जाणणो, समझणो ई पड़ै।”
सन् 1982 सूं राजस्थान रा विद्वानां सागै पत्राचार सरू होयो, ता – पछे प्रवास सरू होयो अर छैड़ला बीस बरसां में तो राजस्थान घर जिसो बणग्यो। बठै रा विद्वानां में डॉ. शक्तिदान कविया, पद्मश्री विजयदान देथा, डॉ. सोहनदान चारण, डॉ. अर्जुनदेव चारण, डॉ. महेन्द्रसिंह नगर, अजमेर रा पद्मश्री सी. पी. देवल, श्री ओंकारसिंह लखावत, डॉ. फतेहसिंह मानव, जयपुर रा डॉ. श्यामसिंह रत्नावत, डॉ. रूपसिंह बारहठ, श्री अक्षयसिंह रतनू, बीकानेर रा पृथ्वीराज रतनू अर डॉ. गिरिजाशंकर शर्मा, श्री मूळदान देपावत, अलवर रा पद्मश्री सूर्यदेवसिंह बारहठ, उदयपुर रा डॉ. देव कोठारी अर डॉ. राजेन्द्रसिंह बारहठ इत्याद मित्रां रै साथै साहित्यिक आदान – प्रदान होवतो रैवै है, जिको शोध रै क्षेत्र में टूटती – छूटती कड़ियां नैं जोड़बा सारू दोयां पासी उपयोगी नीवड़े है। डॉ. रोहड़िया सैकडूं – हजारूं बरसां जूनी चारणी साहित्य – संस्कृति री विरासत री रक्षा अर उन्नयन सारू जित्ता समरपित भाव सूं लाग्योड़ा है, बियांन आपरै जीवन रा बेसकीमती बरस अरपित करबा वाळा आज रै बगत में बोत कम लोग लाधै। अबै तो लागै है कै ओ काम वांरो जीवन – मिशन ई बणग्यो। आखो विद्वत् समाज वानै इण सारू जस दे रैयो है अर जग्यां जग्यां वांरै सनमान रा गीरबैजोग आयोजन ई होवता रैया है। राजस्थान रा विद्वानां नैं गुजरात रा इण अभियान सूं सबक लेय र आपरी कोसिसां तेज करणी चाहीजै, क्यूं कै चारणी साहित्य मानवता रो, मानवीय मूल्यां रो ईमानदार साहित्य है। ओ राष्ट्रप्रेम, स्वाभिमान अर सांप्रदायिक सौहार्द्र रा भावां रो बीजारोपण करणियो साहित्य है।

डॉ. अम्बादान रोहड़िया के अन्य प्रकाशनों

प्रकाशित ग्रंथ
  1. चारणी साहित्य विमर्श (संशोधन – विवेचन), 1992
  2. कागआई माहात्म्य (संशोधन – संपादन), 1996
  3. चारणी साहित्य संदर्भ (विवेचन), 1998
  4. साहित्याभिमुख (विवेचन), 1999
  5. जालंधरपुराण -1 (संशोधन – संपादन), 1999
  6. अवगाहन (संशोधन विवेचन), 2000
  7. जालंधरपुराण-2 (संशोधन – संपादन), 2000
  8. अस्मिता अने अनुसंधान (संशोधन – विवेचन), 2001
  9. साहित्यने सीमाडे (संशोधन – विवेचन), 2002
  10. शब्दोपासना (संशोधन- विवेचन), 2003
  11. वाणी तो अमरत वदां (संपादन), 2003
  12. संशप्तक (संशोधन विवेचन), 2004
  13. भृंगीपुराण (संशोधन – विवेचन), 2005
  14. चारण कवि चरित्र (संपादन), 2006
  15. सोपान (संशोधन विवेचन), 2007
  16. चारणी साहित्य विभिन्न परिप्रेक्ष्य (संशोधन विवेचन), 2008
  17. चारणी साहित्य वारसो अने वैभव (संशोधन – विवेचन), 2008
  18. चारणी साहित्य: सर्जन अने भावन (संशोधन – विवेचन), 2008
  19. चारणी साहित्य पूजा अने परीक्षा (संशोधन – विवेचन), 2009
  20. भृंगीपुराण (संशोधन – संपादन), 2010
  21. शब्दायन (संशोधन विवेचन), 2011
  22. जालंधरपुराण (संपादन), 2016
  23. चारणी साहित्य अने लोकसाहित्य (संशोधन – विवेचन), 2020
  24. चारणी साहित्य विविध संदर्भे (संशोधन – विवेचन), 2020
  25. चारणी साहित्य समीपे (2022)
  26. चारणी साहित्य: मणिमाला(2023)

सहलेखन, संशोधन अने संपादन

  1. आसाजी रोहड़िया (संशोधन- विवेचन) 1989
  2. लांगीदास महेडु कृत ‘संत स्मरण’ (संशोधन – संपादन) 1990
  3. सांयाजी झूला कृत ‘रुक्मिणीहरण’ (संशोधन – संपादन) 1992
  4. चारण सर्जक परिचय, भाग – 1 (संशोधन – विवेचन) 1995
  5. हरदास मिसण कृत ‘सभापर्व ‘ (संशोधन – संपादन) 1998
  6. स्वर्ग भूलावुं शामळा (संशोधन – विवेचन) 1998
  7. अधीत -22/23 (सहसंपादन) 2000
  8. अधीत -24 (सहसंपादन) 2001
  9. अधीत -25 (सहसंपादन) 2003
  10. अधीत -26 (सहसंपादन) 2004
  11. हरिरस (सहसंपादन) 2005, 2019
  12. गुणनिंदा – स्तति (सहसंपादन) 2005, 2019
  13. हाला झाला रा कुण्डळिया (सहसंपादन) 2005, 2019
  14. अधीत -27 (सहसंपादन) 2005
  15. अधीत -28 (सहसंपादन) 2006
  16. लोकसाहित्य -1 (सहलेखन) 2006
  17. लोकसाहित्य -2 (सहलेखन) 2007
  18. तुलनात्मक साहित्य (सहलेखन) 2007
  19. अधीत -29 (सहसंपादन) 2007
  20. कच्छ दर्शन (सहसंपादन) 2008, 2019
  21. उत्तर गुजरातनी लोकवार्ता: स्वाध्याय अने सर्वेक्षण (सहसंपादन) 2008
  22. ‘विचारभारती’ नो साहित्यकार परिचयांक (संपादन) 2009
  23. समिध -4 (संपादन) 2010
  24. ‘राजभाषा’ नो चारणी साहित्य विशेषांक (सहसंपादन) 2012
  25. अलगारीनी ओळख (संपादन) 2019