श्री सीलां माँ रो छंद ~ भंवरदान झणकली
साल अठ दस सत अठ समे मास घटा प्रिय मात।
दनुज गुरु दीप्त चहुदस उदे भया अखियात।।1।।
पात हंस पी धर भूत पत गढ़ सरवर सुत गाम।
शुभ मुहूर्त सज द्विज सुत निरख्यो सीलां नाम।।2।।
धन रतनु धन माड़ धर धन धन कोड़ा धाम।
धन शंकर तुझ धीवड़ी नवखण्ड राखण नाम।।3।।
विठू घर तोरण वांदयो मात वधारण मान।
जगत सुचावो झणकली सांसण गाम सुथान।।4।।
(छंद त्रिभंगी १८जोड़१४तीन वृत्यनुप्रास)
शंकर घर स्याणी कन्या कहाणी वेद वखाणी ब्रह्माणी।
विमल सुरवाणी व्योम वचाणी ऊमा निज धर उतराणी।
इल पर आखाणी जगत सुजाणी घर जोगराज तणी धरणी।
सीलां सुख करणी आयां शरणी दे धन धरणी दुःख हरणी, माँ दे धन धरणी दुःख हरणी।।1।।
धोखो नृप धारे बुरी विचारे लश्कर सारे ललकारे।
मोहता मणकारे तुरंग तैयारे हे संग खोखर हथियारे।
पूगा इण पारे सीम सहारे ध्वंश करण सांसण धरणी।
सीलां सुख करणी।।2।।
चारण चळचळीया साम सुजळीया काळा वासंग कळ कलियां।
डग मग डोकरिया कसे कटरिया ढिब ढाकणिये आढलिया।
वेरी दळ अळीया सामां वलिया उमेद गलिया अणिअ रणी।
सीलां सुख करणी।।3।।
साहलां सुण सारंग पड़ी पुकारंग जमर धारंग जण वारंग।
सीलां सत सारंग चिता प्रसारँग वचन उचारंग वृत्त धारंग।
मेटा अरि मारंग साज सवारंग जै जै कारंग जै करणी ।
सीलां सुख करणी।।4।।
खोखर सब खाया दुष्ट दबाया गाँव झणकली जस गाया।
रणजीत रूळाया गर्व गळाया गढ़ सूना कर गणणाया।
चारण हरषाया परचा पाया वंश वधाया जसवरणी।
सीलां सुख करणी।।5।।
समरे जस गावे अवर सुणावे परम सरग सा सुख पावे।
अन्न धन्न उपजावे विदया वधावे उमर अंग रति आवे।
भोजन मन भावे भूत भजावे अणद उपावे अवतरणी।
सीलां सुख करणी।।6।।
सीता खुद सैणी गवर सिवाणी कमला करनल महाकाली।
विरवड़ धन वाली वीस भुजाली हिंगळ ज्वाला हाथाली।
विरदाली वांकल दुर्गा देवल देंमां लाछल दिवतरणी।
सीलां सुख करणी।।7।।
छप्पय
धीणो धर धन धान मान दहे मातेश्वरी।
भीर करे भय भांज समरयां वेळा साँझ री।
चारण वर्ण चकार भरी सभा मो भूप री।
भणे जात त्रिभंग संग रहे नित शंकरी।
विठूआं वंश वाहरु वणे सिह चढ़े कारज सरे।
कर जोड़ अर्ज भँवरू करे धन्य कवि जो इष्ट धरे।
~कवि भंवरदान झणकली