वर्तमान समय मे चारण समाज में कैरियर निर्माण के विविध अवसर
शाक्त मतावलंबी एवं साहित्य सृजक रही चारण जाति की पिछली 7-8 शताब्दियों से तत्कालीन शासन एवं समाज में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। ज्ञात प्रारंभिक ऐतिहासिक काल में चारण जाति के लोग गो – चारण एवं अश्वपालन / व्यापार का कार्य करते थे। इन लोगों का प्रारंभिक निवास क्षेत्र कच्छ, थारपाकर एवं मरूप्रदेश रहा है। मरूप्रदेश में निवासरत एवं अन्य क्षेत्रों से यहाँ आकर जागीर प्राप्त करने वाले चारण ‘मारू’ कहलाये। मारू चारणों में से अनेको विद्वतजनों ने तत्कालीन शासन में अपनी साहित्यधर्मिता एवं विद्वता का परिचय देकर ख्याति अर्जित की। 15 वीं से 18 वीं सदी तक चारण साहित्यकारों को राजस्थान में 600 से अधिक जागीरी गाँव एवं 250 के करीब डोली जागीर प्राप्त हुयी। इस कालखण्ड में चारणों की भूमिका तत्कालीन राजाओं / सामंतो के दरबारी कवि, साहित्यकार, सलाहकार, मित्र, योद्धा एवं अन्य राजकाजी कार्यों में बहुमान्य रही।
1857 की क्रांति में जनकवि शंकरदान सामोर ने तत्कालीन राजाओं एवं अंग्रेजो के खिलाफ साहित्य सृजन किया। इस जनकाव्य एवं राष्ट्रप्रेम की साहित्यिक अवधारणा को कविराज बांकीदास आशिया एवं केसरीसिंह बारहट के परिवार ने आगे बढाकर चारण समाज को राष्ट्र के मानसपटल पर स्वातंत्र्यप्रिय एवं स्वाभिमानी जाति के रूप में स्थापित किया।
स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् राजस्थान ,गुजरात एवं मध्यप्रदेश के चारण सिरदारो ने शासन के नवीन स्वरूप लोकतांत्रिक सरकार की नोकरशाही में अपनी जगह बनाने के प्रयास किये, जिसमें काफी हद तक सफलता भी मिली।
सांवलदानजी उज्जवल ने राजस्थान के मुख्य सचिव के पद पर सेवाएँ देकर चारण समाज को गौरवान्वित किया। वर्तमान में हजारों चारण समाज बंधु प्रशासनिक, शैक्षणिक एवं अन्य सेवाओं में पदस्थापित होकर सेवारत है। मैं यहाँ पर उपस्थित विद्वान समाजबंधुओं को अवगत कराना चाहूँगा कि पिछले 10-15 वर्षों में लगभग सभी जाति एवं वर्गों के लोग सरकारी सेवा प्राप्त करने के लिये प्रयत्न कर रहे है जिससे कम्पीटिशन अधिक बढ़ गया है। इस कारण विभिन्न सरकारी सेवाओं में समाज के बंधुओं के चयन का प्रतिशत काफी कम हुआ है। दूसरा, समाज के महिला वर्ग की भागीदारी काफी कम है हालांकि समाज में बड़ी संख्या में महिलाये स्नातक एवं उससे अधिक की शिक्षा ग्रहण कर रही है। मैं आप सब से अपील करना चाहूँगा कि बदलते हुये अन्तराष्ट्रीय, राष्ट्रीय एवं राज्यो के परिवेश के मध्यनजर समाज मे महिलाओं की समुचित भागीदारी के बिना समग्र विकास एवं सर्वत्र उपस्थिति की कल्पना नहीं की जा सकती, ऐसे में जबकि अधिकांश सेवाओं में एक तिहाई पद महिलाओं के लिए आरक्षित हो। तीसरा, समाज के युवा वर्ग की सेना, बैंक, रेलवे, एसएससी सहित केन्द्र सरकार के विभिन्न विभागों में भागीदारी बहुत कम है। चौथा, समाज में शिक्षक प्रशिक्षण कोर्स ( बीएड, बीएसटीसी) के प्रति अच्छा रूझान है लेकिन बीएड / बीएसटीसी धारक अधिकांश अभ्यर्थी राज्य सरकारों द्वारा निकाली जाने वाली शिक्षक भर्तियों का इन्तजार करते रहते है। इस मामले में आपको सलाह देना चाहूँगा कि राज्य सरकार द्वारा आयोजित शिक्षक भर्तियों के अलावा केन्द्रीय विद्यालय, नवोदय विद्यालय, दिल्ली अधीनस्थ बोर्ड इत्यादि की भर्तियों में आवेदन कर तैयारी करके उक्त संस्थानों में भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते है। इसके अलावा संस्कृत विषय से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण अभ्यर्थी सेना में हवलदार धर्मशिक्षक के रूप में भी अपनी सेवाये दे सकते है।
मैं इस बात को सोचकर बडा आश्चर्यचकित हूँ कि सदियों से साहित्यसृजक एवं लेखक के रूप में कार्य करने वाले चारण समाज ने आजादी के बाद लेखक के रूप में कैरियर को नहीं चुना। राजस्थान में कुछ विद्वत समाजबन्धु राजस्थानी साहित्यकार के रूप में साधनारत है। गुजरात मे फिर भी भक्ति एवं लोक साहित्य के क्षेत्र में कई चारण बंधु अच्छा कार्य कर रहे है । लेकिन मुझे यह भी प्रतीत हो रहा है कि आधुनिक राजस्थानी साहित्यकारों (19वीं सदी से अब तक) में मुश्किल से 10 प्रतिशत चारण होगें।
समाज के योग्य युवा एवं अनुभवी विद्वतजनो को विविध विषयों जैसे कि भूगोल, इतिहास, राजनीति विज्ञान, अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, जीव विज्ञान, रसायन विज्ञान, भौतिकी, लेखा, वाणिज्य, कृषि, इंजीनियरिंग, मेडिकल, फॉर्मेसी इत्यादि में प्रामाणिक लेखन का कार्य प्रारम्भ करना चाहिये ,क्योंकि मुझे लगता है कि अन्य लोगों की बजाय चारण की लेखनी एवं भाषा शैली अच्छी एवं प्रभावशाली होती है।
भगवती करणीजी की कृपा से मैने वर्ष 2004 में राजस्थान में आयोजित होने वाली प्रतियोगी परीक्षाओं के लिये पुस्तक लेखक का कार्य प्रारम्भ किया था। आज 15 वर्ष की समयावधि में मेरे द्वारा 80 से अधिक पुस्तकों / मार्गदर्शिकाओं का लेखन / मार्गदर्शन किया गया है। जिसमें राजस्थान की एकपात्र रंगीन एटलस भी सम्मिलित है। वर्तमान में उक्त पुस्तकों के 10 लाख से अधिक विद्यार्थी पाठक है जो राजस्थान के सभी जिलो एवं तहसीलों में निश्चित रूप से मिल जायेगें। वर्ष 2007 में राजस्थान धरोहर संरक्षण एवं प्रोन्नति प्राधिकरण में आदरणीय ओंकारसिंहजी लखावत के सानिध्य में मात्र 25 वर्ष की उम्र में मुझे प्राधिकरण द्वारा जारी लेखकों की सूची में शामिल किया गया। यह बात मैं एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ न कि आत्म प्रशंसा करने के उद्देश्य से।
वर्तमान में समाज के युवा वर्ग में अपने आप को रोजगार के मामले में इस प्रकार से समझ रखा है कि अधिकांश प्रकार के कार्य करने में संकोच का अनुभव होता है। निजी क्षेत्र में भी अच्छे पैकेज मिल रहे है। उसके अलावा अभी देश में स्टार्टअप या स्वयं का बिजनेस करने की जो मुहिम चल रही है उसमें भी अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकते है। अभी जयपुर में बाइकर्स थीम पर एक आधुनिक रेस्टोरेन्ट समाज के एक युवा उद्यमी अभिषेक जी आशिया द्वारा प्रारम्भ किया गया है जो सम्भवतः राजस्थान में इस प्रकार का पहला प्रयोग है। पश्चिमी राजस्थान में पिछले 30 – 40 वर्षों से व्यापार हेतु दक्षिण भारत के राज्यों में जाने का प्रचलन देखा जा सकता है। यहा से काफी संख्या में समाज बंधुओं ने दक्षिण भारत में जाकर व्यवसाय स्थापित करके अच्छा धनार्जन किया है। इस सम्बन्ध में मेरा सुझाव है कि दिल्ली – एनसीआर, जयपुर एवं कोटा महानगरीय क्षेत्रों में भी जाकर व्यवसाय किया जा सकता है। दिल्ली एवं जयपुर व्यवसाय करने पर इन दोनों राजधानियों में अच्छा सम्पर्क स्थापित हो सकता है जिसका लाभ अवश्य किसी न किसी रूप में समाज को मिलता है। समाज के युवाओं के लिये राजस्थान के पर्यटन क्षेत्र में अच्छे अवसर है। इस क्षेत्र में कार्य करने के लिये अच्छे व्यक्तित्व एवं विविध भाषाओं का ज्ञान होना आवश्यक है। मैं समझता हूँ कि चारणों की वाक्पटुता, सहज मिलनसारिता एवं अच्छे वक्ता होने के गुणों का इस क्षेत्र में व्यवसायिक उपयोग किया जा सकता है।
सादर ।
जय माता जी री सा ।
मनोहरसिंह कोटड़ा (मनोहरसिंह वणसुर)
श्रम निरीक्षक एवं समझौता अधिकारी,
श्रम विभाग राजस्थान सरकार
(RAS भर्ती बैच – 2013) ग्राम कोटडा
तह. आहोर जिला जालोर
सम्पर्क सूत्र:- 9352180852