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सिरुवै जैसल़मेर रा रतनू हरपाल़जी समरथदानजी रा आपरी बखत रा स्वाभिमानी अर साहसी पुरस हा। इणां री शादी रतनुवां रा बही-राव, रावजी पूनमदान नरसिंहदानजी बिराई रै मुजब गांम सींथल़ रा बीठू किशोरजी डूंगरदानजी रां री बेटी वीरां बाई रै साथै हुई।

जद जैसलमेर रा तत्कालीन महारावल़ जसवंतसिहजी(1759-1764वि) अर भाटी तेजमालजी रामसिंहोत रै बीच अदावदी बढी उण बखत हरपालजी ई भाटी तेजमालजी रै साथै हा। महारावल़ अर भाटी तेजमालजी रै बिचाल़ै हाबूर री ‘गेह’ तल़ाई माथै लड़ाई हुई उण बखत भाटी तेजमालजी दुजोगवश निहत्था हा सो वीरगति (1763वि.बैसाग 8) पाई। (संदर्भ जैसलमेर भाटी शासक उनके पूर्वज एवं वंशजों का क्रमबद्ध स्वर्णिम इतिहास-गोपाल सिंह भाटी तेजमालता) महारावल़ उणां री पार्थिव देह नै अग्नि समर्पित करण सूं सबां नै मना कर दिया। उण बखत रतनू हरपालजी हाबूर ऊनड़ां रै साथै मिल़र महारावल़ री गिनर करियां बिनां दाग दियो-

झीबां पाव झकोल़िया, उडर हूवा अलग्ग।
पह रतनू हरपाल़ रा, प्रतन छूटा पग्ग।।

जैसल़मेर सूं संदेशो आयो कै “महारावल़जी कोई बीजो कदम उठावै उणसूं पैला हरपाल सिरुवो छोड देवै।” हरपालजी आपरी ‘वसी’ लेय निकल़ग्या। रतकोड़िया रै गुढै उणां आपरी ‘वसी’ रो वासो कियो।

उणी दिनां थल़ रै किणी देवराज(राठौड़ों की एक शाखा) बोनाड़ा में भिंयाड़ रै कोटड़िये हिंगोल़दास नै मार दियो। जिणरो वैर कोटड़ियां नीं ले सकिया जणै हिंगोल़दास री लुगाई री अरज माथै रतनू हरपाल़जी रै बेटां लियो। जणै कोटड़िया इणांनै भिंयाड़ ले आया अर आपरा भाई मान आधी भिंयाड़ दी।

भिंयाड़ में इणांरी वसी मांय सूं दर्जियां री गायां (गूड़ै या नगर ठिकाणै मांय सूं एक) हरली अर घोड़ां आगै घाल बुवा। उण बखत हरपालजी रा बेटा खंगारजी राठौड़ां नै समझाया कै दरजी म्हांरा है सो आप गायां चोर’र मत ले जावो पण मदछाकिया राठौड़ मानिया नीं, जणै उणां माथै क्रोध खाय खंगारजी कटारी गल़ै खाधी। आ बात जद वीरां माऊ नै ठाह पड़ी तो वै विकराल़ हुयग्या अर चारणाचार रै मुजब सूरज री साख में जमर कियो। गऊ-चोरां रै भयंकर नुकसाण हुयो। आज ई भिंयाड़ में मा वीरां रो थान इण बात रो साखीधर है।

इण सगल़ी बात नै म्हारै कई आत्मीजनां रै आदेश अर आग्रह री रक्षा करतां थकां कीं ओल़्यां में लिखी है जिकी एक’र पाछी आपरी नजर कर रह्यो हूं-
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।।दूहा।।
सिरहर सींथल़ सांसणां, जंगल़ धरती जोय।
सत पत में इणरी सही,  करै न समवड़ कोय।।1
सांगटिया वड सूरमा,  जस हद ज्यांरो जाण।
जाहर रेणव जात में,  महियल़ लाटण माण।।2
कव दाता किरमाल़िया, साचा वाच सधीर।
भल धर सींथल़ भाल़िया,  गढवी वडा गँभीर।।3
वीठू डूंगर पात वड,  कव घर जैण किशोर।
प्रभता उणरी परगल़ी,  चौताल़ै चहुंओर।।4
कँवरी घरै किशोर रै,  जनमी वीरां जोय।
कुल़वट देवण कीरती,  सतवट बैवण सोय।।5
सुणियो गढवाड़ां सही,  सिरुवो माल़ सुमेर।
कवियां जिणनै कूंतियो,  जोड़ै जैसल़मेर।।6
मंझ गरवीली माडमें,  सिरुवो वडो सुथान।
गरवाहर राजै गुणी,  रतनू राजस्थान।।7
समरथ साचो समरथो,  राजै रतनू राण।
है उणरै हरपाल़ सुत,  महिपत देवै माण।।8
मोटो कव ज्यूं मोटमन,  रावां रो रखवाल़।
राजै सीरुवै रतनुवां,  हितू वडो हरपाल़।।9
है रतनू हरपाल़ियो,  जोगो धरती जैण।
अरियां रो अरियाण बो,  सैणां हंदो सैण।।10
हिव सोभा हरपाल़ री,  कानै सुणी किशोर।
वीदग मनां विचारियो,  जोड़ी सगपण जोर।।11
आद गिनायत आंपणा,  प्रीत पुरातन पाल़।
कँवरी तणो किशोर कव,  हेर्यो वर हरपाल़।।12
तनुजा परणाई तरां,  वड वीठू वरियांम।
बंधिया नेह रै बंधणा,  गहर मनां दुय गांम।।13
जायो वीरां जामणी,  खगधर सुतन खँगार।
पाल़ण चारण धरम पुनि,  सरणायां साधार।।14
उणपुल़ में भाटी अडर,  रामाणी तेजल्ल।
पसरी जिणरी परगल़ी,  गहरी कीरत गल्ल।।15
पह हद भाटी पाल़तो,  रजवट हंदी रीत।
रामाणी रखतो रसा,  पहुमी पातां प्रीत।।16
सिर साटै उण सूरमै,  खाटी धरती खग्ग।
जुड़ियां रण नीं जाणतो,  पाछा देवण पग्ग।।17
रामावत सुणियो रह्या,  दो रतनू रणखेत।
उमड़्यो उणपुल़ अडर रै,  हिरदै बंधव हेत।।18
तेजल ले तरवारियां,  जुड़ अरि कीधा जेर।
रांगड़ लीधो रतनुवां,  वसुधा जाहर वैर।।19
संकियो तेजल सूं सही,  माडपति महिपाल़।
आयो तेजल ऊपरै,  कटका़ं ले करवाल़़।।20
मचियो साम्हो मारको,  साचो तेजल सूर।
वरी वीरगत वीर उण,  हिव धरती हाबूर।।21
पाधर महिपत पाल़िया,  देवण तेजल दाग।
हेतव जद हरपाल़ियो,  भच उठियो बजराग।।22
तेज म्हांरो म्हे तेज रा,  हिव कहियो हरपाल।
दाग देसां सिर देयनै,  सतवट उरां सँभाल़।।23
कव पर जादम कोपियो,  दीधो देस निकाल़।
कोटड़ियां कीधो कुरब,  हेर मिनख हरपाल़।।24
हिव विध सूं हरपाल़िये,  महि तज दीधी माड़।
वसी आपरी ले विदग,  भू जद बस्यो भिंयाड़।।25
आया कमध अचाण रा,  भू ले कटक भिंयाड़।
जातां लेयग्या जोरबल़,  धन दरज्यां रो धाड़।।26
करल़ै दरजी कूकिया,  जुथ में खारा जोर।
खगधारी खँगार जद,  सँभल़ी साद सजोर।।27
समझाया सकवी सधर,  समझ्या नीं सिरदार।
रेणव ज्यां पर रूठनै,  करली गल़ै कटार।।28
जद सुणियो यूं जामणी,  खाई गल़ै खँगार।
वीरां वड विकराल़का,  खाय बणी मन खार।।29

।।छंद-रोमकंद।।
बणगी विकराल़िय मा बबराल़िय,  रूठ रढाल़िय आप रमी।
निकल़ी कमधां सिर काल़िय नागण,  जम्मर सूरज साख जमी।
मिल़गी प्रमजोत तुंही मछराल़िय,  छोह कियां झट देह छँडी।
विखियात भिंयाड़ बणी जद वाहर,  मात वीरां इल़ जात मँडी।।30
कुल़ काट लगाय मुड़्या दल़ कायर,  मांण मिटायर मालहरा।
पिंड पौरस पोह तज्यो उर पाधर,  धेन तजी जिणवार धरा।
उणवार रखी अवनी धिन ऊपर,  जामण कीरत तांण झँडी।
विखियात भ़ियाड़ बणी जद वाहर,  मात वीरां इल़ जात मँडी।।31
प्रतपाल़ जुड़ी पख रैयत पाल़ण,  गाढ सदामत शूल़ गहै।
मरियो गऊ चोर नमै दिन मूरख,  बात अखी इम ख्यात बहै।
थिर चारण मांम पुनी सत थापण,  दूठ कुछत्रिय पांण दँडी।
विखियात भ़ियाड़ बणी झट वाहर,  मात वीरां इल़ जात मँडी।।32
भिल़गी नवलाख नमो भलकारिय,  धारिय लोहड़ तूं धरणी।
वड बीसहथी प्रभता बलिहारिय,  वीदग कायब में वरणी।
तरणी फसती भट आयल तारण,  चारण हेक उपाय चँडी।
विखियात भिंयाड़ बणी झट वाहर,  मात वीरां इल़ जात मँडी।।33
सिरुवे सथ आप उजाल़िय सींथल़,  डोकरड़ी डग भीर दिये।
कवि गीध कहै निरधारिय कीरत,  लंब भुजाल़िय ओट लिये।
मनवांछत पूर मनोरथ मावड़,  थाट करै घर मीट ठँडी।
विखियात भिंयाड़ बणी झट वाहर,  मात वीरां इल़ जात मँडी।।34

।।छप्पय।।
वसू वीठवण बात,  वहा तें राखी वीरां।
रैयत री रखवाल़,  सदा सत साय सधीरां।
जामण कीधो जमर,  अमर धर बो तो आई।
गढवाड़ां रो गुमर,  मंडियो सांप्रत माई।
भल भलां करी भींयाड़ नैं,  जस दिरावण जातनै।
कवियांण गीध वंदन करै,  मनसुध वीरां मातनैं।।

~गिरधर दान रतनू दासोड़ी

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