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आज पुरानी पत्रिकाओं के पन्ने पलटते हुए बिड़ला एज्युकेशन ट्रस्ट द्वारा प्रकाशित प्रसिद्ध व प्रतिष्ठित पत्रिका ‘मरूभारती’ 1990के अंक में मेरा एक शोध लेख छपा था-‘डिंगल़ काव्य में महावीर हनुमान संबंधी रचनाएं।उन दिनों मैं बी.ए फाईनल का विद्यार्थी था और श्री करनी चारण छात्रावास सादुलगंज बीकानेर में रहता था। इस आलेख में मेरे दादोसा श्रद्धेय गणेशदानजी की एक रचना-‘बजरंग रंग बाईसी’ भी छपी है। आज महावीर हनुमान की जयंती पर आप सबसे साझा कर रहा हूं-

दूहा
सुध लेवण सीता तणी, उदधी गयो उलंग।
काम कियो किरतार रो, रंग बल़वंता रंग।।1

डरियो नह दध डाकतां, उर में धरी उमंग।
इण कारण तोनै इधक, बाला बजरँग रंग।।2

अथग्ग अडर तैं लांघियो, सीत तणी कर शोध।
मुरड़ अखै नै मारियो, जबर रंग है जोध।।3

लाल लंगोटी लंघड़ा, सुकर ज घोटो साज।
दल़ियो सुत दसकंध रो, रंग तोनै कपिराज।।4

असुर उथापण तूं अडर, अगनी धारण अंग।
लंक जल़ावण लंघड़ा, रंग हो हड़मत रंग।।5

अगन वरी अंग ऊपरै, पूंछ झपट्टा पूर।
लंक लपट्टां बाल़दी, सको सपटां सूर।।6

बाग विधूंस्यो वीरवर, रोल़्यो रावण पूत।
ऐह रंग तोनै इधक, दामोदर रा दूत।।7

सेस बचावण हे सकड़! बणियो तूं बजरंग।
नग लायो नख ऊपरै, रंग हड़मता रंग।।8

सेस बचावण हे सबल़! वैद उठायो बाथ।
इण कारण इल़ आखवै, निडर रंग हे नाथ!!9

असुर उजाड़ण तूं अनड़, जूपण नितप्रत जंग।
मतवाल़ै महावीर नै, रात-दिवस है रंग।।10

बाल़पणै बल़वंत तैं, रोक लियो रिवराज।
जग जांणै जद सूं जबर, रंगां भणा़ कपिराज।।11

उदर ज लियो अदीत नै, बाल़पणै बजरंग।
गोतम-सुता रा गीगला, रंग हड़मंता रंग।।12

स्हायक बण सुगरीव रो, पायक रघुवर पूर।
अहीरावण उथापियो, साचा रंग रै सूर।।13

मनसापूरण हूं मुणूं, संतां काज सुधार।
हरण दोख बडहाथ तूं, है रंग तनै हजार।।14

तीन तिलोकीनाथ पर, अहरनिसा उपकार।
धर सारी धिन-धिन दखै हड़मंत रंग हजार।।15

महि रो संकट मोचणा, संतां संपत साज।
अतल़ीबल़ तो अहरनिस, रंग तवा कपिराज।।16

आवण हेले आध सूं, कठण सुधारण काज।
भगतां रा भय भंजणा, रंग तवां कपिराज।।17

रणखेतां भिड़ियो रंघड़, अहनिस रयो अजीत।
लखवर रँग तो लंघड़ा, जाल़ी लंक अजीत।।18

अजणी-सुत री ऊजल़ी, इल़ पर क्रीत अखंड।
मुणां रंग महावीर नै, देवण दैतां दंड।।19

नित संकट सहणा निडर, प्रीत सांम सूं पाल़।
लांघ लिया रंग लंघड़ा, जोखम भरिया जाल़।।20

रघुवर अगवाण रह, दोख किया सह दूर।
रंग घणा कपिराज नै, निसचर कीधा चूर।।21

रात दिवस निरभै रहै, पखधर तोनै पाय।
करण रंग कपिराज नै, संतां री नित साय।।

सोरठो
वरण दुहा बाईस, कीरत की कपिराव री।
गुणपत गुण गाईस, लार वा’र रै लंघड़ो।।

~गिरधरदान रतनू दासोड़ी

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