।।दूहा।।
सरसत दे मुझ अखर सुद्ध, सूंडाळा कर साय।
प्रभू पच्चीसी प्रेम सूं, गुण सबदी में गाय।।१
ऊभराणो ही ईशवर, आवै करतां याद।
निमख देर लागै नहीं, सुणत भगत री साद।।२
वारी हूं तो वीठळा, देव तिहाळी दाय।
रीझै सुद्ध मन राघवा, खाटो खीचड़ खाय।।३
।।गुणसबदी।।
पख लीनी पहळाद री पाधर, दैत रो गाळण दंभ।
नरहरि बण नीकळयो नांमी, खांमद फाड़ण नैं खंब।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१
प्रेम सूं कीर सुणावतो प्रागळ, गोविन्द री गुणमाळ।
मोचिया पाप गणिका रा माधव, सुणती बैठ संभाळ।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२
सागर में भिड़िया ग्राह सिंधव, हेर हठाळिय हार।
तारख छोडनै धावियो टीकम, वारण री कर वार।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।३
ठगण तो बळीराव नै ठाकर, रचियो बावन रूप।
मुर पैंडा त्रिलोकीय मापी, भाळतो रैयग्यो भूप।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।४
द्रोपदी वाळो चीर दुसासण, खींचियो खायनै खार।
पूरियो अम्बर नार नै प्रभु, पावियो नीच ना पार।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।५
बेबस होयनै पंखणी ब्याई, टींटोड़ी मंझ ताल।
भंवरी वाळा अण्डका भारथ, ढांकिया घंट री ढाल।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।६
नाई जचायनै भूलगी नारी, सिरिया दीनी सोर।
बिलड़ी वाळा खेलता बाळक, झळ में राखिया जोर।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।७
पुत्र हेत पुकारियो पामर, निपट नारायण नाम।
अधम पार कियो अजमेलियो, धिन दियो निज धाम।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।८
गौतम वाळी साप सूं घरणी, पत्थर होयगी पेख।
पद रजी झड़कायनै प्रभू, लोपिया माड़ा लेख।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।९
दीन सुदामा नै तूठियो दाता, माननै रावळो मीत।
कुटिया बदळै कोट तैं कीना, राज री मोटी रीत।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१०
संत री बात रखावण सांवळ, पूरबले घण प्रेम।
भात भर्यो नरसी धर भूधर, हाथ सूं बांटियो हेम।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।११
विष रा प्याला व्याल बिच्छू घण, रूठनै मेलिया राण।
मीरां री कर वेळ तैं माधव, पह लिया रख प्राण।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१२
भीलणी चुगनै ओडियो भेळा, बापड़ी कीना बोर।
हेत ने देख’र बावळो होयग्यो, करगो साफ़ किसोर।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१३
चढ़ियो वाहर सीत री चौड़ै, खाळियो रामण खीज।
सिर विभीखण सोहनो छत्र, राघव राखियों रीझ।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१४
बाळपणो ध्रुव गाळियो बाळक, त्यागनै आस तमाम।
राज तिलोकी रो सांपियो राजन, धिन दियौ निज धाम।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१५
त्यागिया मेवा भूप रा तारां, छूतका दास रा चाव।
नख आडंबर नाळियों नाहीं, भाळियो सांचो भाव।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१६
बाथिये आयनै कंस विदूसियो, नाथियो काळियो नाग।
कुंज गळीन में करतो कांना, रीझ नै बंसरी राग।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१७
भगती रे मिस भाव सूं भीनी, साच कीनी मन सेव।
करमां रो झट खीचड़ो कानव, देखतां खायग्यो देव।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१८
नामदे ऊपर तूठियो नागर, छायदी हाथां छान।
बिन बीजां निपजायद्यो नांमी, धनै रै खेतड़ै धान।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।१९
सेन रे कारज सांवरा सांप्रत, हालियो होय हजाम।
हाथ हजामत कीन हरि तैं, कींकर रै झट काम।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२०
ईसर रे झट आवियो ईसर, बारठ री कर वेल।
गौड़ सांगै नै बाछड़ै सेतो, माधव दीनो मेल।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२१
साईयां रै झट आवियो सांवळ, झूलै री वाहर जोर।
नाज छाटी भर लावियो नामी, भोम होवतांय भोर।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२२
राव नै रंक करै तुंही राघव, रंक करै फिर राय।
टोरै जेम टूरै जन तारां, देख तिहाळीय दाय।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२३
पल मांही तो प्रळै प्रभू, क्षण रचै संसार।
भटकै मानव भूल में भोळा, कर तोरै किरतार।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२४
‘गीधियो’ आखर काय गिणावै, खोब भर्योड़ीय खोट।
मुगती दाता हेक तूं माधव, माफ करै मन मोट।
नमो थारी लीला न्यारी रे, सकै कुण पूग संसारी।।२५
~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”