राजस्थान के दक्षिणी भाग में बसा देवनगरी के नाम से प्रख्यात सिरोही जिला इसी सिरोही जिले के पश्चिम दिशा में सिरोही जिला मुख्यालय से 25 किमी की दूरी पर बसा हुआ है आसिया सिरदारो की जागीरी का गांव वडदरा जिसका आज राजस्व नाम वलदरा है।
वलदरा वीर शिरोमणी व दानी दूदाजी आसिया को विक्रम संवत1640 में दत्ताणी के युद्ध मे सिरोही के सेना का नेतृत्व कर सिरोही रियासत को विजय श्री का वरण करवाने पर सिरोही महाराव सुरताण द्वारा साँसण जागीरी में दिया गया इस सम्बंध में दुरसाजी आढा जिन्होंने शत्रु पक्ष की और से दत्तानी के युद्ध मे भाग लिया था उन्होंने ये दोहा कहा था।
आछो लड़ियों आसियो, दुदो खेत दत्ताण।
घोड़े चढ़े गज भजिया, दीध विजय सुरताण।।
इस गांव के बारे में जितना लिखूं वो कम ही है पर इस गांव में एक महासती हुए है उनका सक्षिप्त परिचय से रूबरू करवाना मेरा अहोभाग्य समझता हूं।
सगत हीरा माताजी का जन्म सिरोही जिले के बरलूट गांव में सामाजी देवल के घर विक्रम सम्वत 1898 में हुआ था आपकी शादी गांव वलदरा के चतराजी आसिया के साथ हुई थी। माँ हीरा माताजी को हरिया माताजी का इष्ट था। तत्समय सिरोही नरेश केसरसिंह थे उन्होंने वलदरा की जागीरी जब्त करने का फरमान जारी किया तब सिरोही से सैनिक वलदरा को खालसा करने हेतु आये तब वलदरा के आसिया बन्धुओ ने वीर दूदाजी के सिरोही राज्य पर उनके योगदान का जिक्र किया पर वो नही माने, आखिरकार एक बार सेनिको को सिरोंही लौटना पड़ा, वलदरा को खालसा करने का ध्येय केसरसिंह बना चुका था इसका पता वलदरा के आसिया सिरदारो को लग चुका था इसलिए वलदरा के तीनों धड़ो से कुल 6 देवियो ने जमहर करने का फैसला किया गया उन्हें अपने पीहर मिलने हेतु भेजा गया परन्तु प्रकृति को कुछ और ही मंजूर था यहां मैं किसी गांव का उल्लेख नही करना चाहता हूं उन्हें अपने पीहर वालो ने मना कर दिया परिणामस्वरूप उन्होंने जमहर जलने का मानस त्याग दिया।
गांव पर आए संकट के बादलों को देखकर वलदरा के ठाकुर खुशालदानजी ने तेलिया वागा पहन लिया जब इसकी जानकारी उनके हम सखा और अजीज मित्र भारतदानजी को मालूम पड़ी तो उन्होंने भी तेलिया वागा पहन लिया। भारतदानजी हीरा माताजी के पुत्र थे जब ये बात हीरा माताजी को कुँए पर जाने पर मालूम हुई तो वे कुँए से आते वक्त रास्ते मे एक बड़ी पीपल के पेड़ के नीचे हरिया माँ का कच्चा थपा हुआ थान था वहां पर अपने पुत्र भारतदान के तेलिया वागा पहनने पर विलाप करने लगे व रात भर बैठे रहे माताजी के पीपल के नीचे कच्चे थान के सामने रात को सपने में द्रष्टान्त पड़ा कि भारतदान की जगह तुहि जमहर जल दे औऱ विस्वाश नही होतो अंगारों में सुबह अपने दोनों हाथ डाल देना तब तुझे विश्र्वास हो जाएगा।
सुबह हुई हीरा माताजी की बहू चूल्हे पर खींच बना रहे थे तब माताजी ने आते ही चूल्हे में धौंक के पेड़ की लकड़ियों के जल रहे अंगारों में अपने दोनों हाथ डाले और हाथ जलने के बजाय दूधधारा बहने लगी जब यह दृश्य उनकी बीनणी ने देख लिया तो वे हतप्रभ रह गयी एवम अपने आप को संभालते हुए पूछा कि सासुजी ये क्या है, तब हीरा माताजी ने अपनी बीनणी को बताया कि बीनणी वलदरा पर घोर संकट आने वाला है और मुझे जमहर करना होगा और तु चुप रे।
आखिर वो दिन आ ही गया सिरोही नरेश केशरसिंह ने वलदरा को खालसा करने हेतु स्वयं वलदरा आ गया सिरोही रियासत की फ़ौज के आगे इतनी टक्कर लेना नामुमकिन था पर वलदरा के आसिया सिरदारो ने दूदाजी आसिया की आन बान औऱ शान रखते हुए खेत अर्थात लड़ने का फैसला किया तब अचानक हरिया माताजी के वचनों अनुसार हीरा माताजी को सत चढ़ा और सभी आसिया सिरदार ढोल नगाड़ों के साथ हीरा माताजी के साथ जमहर व युद्ध हेतु वलदरा से रवाना हुए तब आसिया भुताजी की ठुकराइनजी माताजी के आगे सो गये तब माताजी ने कहा कि ये क्या है तब उन्होंने कहा कि मां आप तो जानती ही हो तब हीरा माताजी ने कहा कि जा तेरे 9 वे महीने पुत्र होगा और उसका नाम जेठूदान रख लेना और तेरा वंश खूब फलेगा फुलेगा जिसकी परिणीति आज भी हो रही है वलदरा के आसिया परिवारों में सबसे बड़ा जेठानी परिवार है। जिसमे मैं भी एक हूँ इसी परिवार से हूँ जो मेरा सौभाग्य है फिर माताजी हनुमानजी मन्दिर के दर्शन कर हनुमानजी से प्रार्थना कर दक्षिण दिशा की और रवाना हुए तब वलदरा से 5 KM दूर कुमा गांव की औऱ बढ़े तब कुमा गांव के आसिया बन्धुओ के अनुनय विनय पर माताजी ने वलदरा से 03 किलोमीटर दूर पर जमहर किया, जिसके परिणामस्वरूप केशरसिंह भाग छुटा व माताजी ने उन्हें श्राप दिया कि सिरोही में जन्मा हुआ कभी राजा नही बनेगा व नही वो किले में रहेगा।
इस श्राप की परिणीति के तहत आज भी सिरोही का किला निर्जन पड़ा हुआ है व मनादर सिरोही से आये हुए सिरोही के महाराव है जो किले से बाहर रहते है साथ ही उस समय से लेकर अब तक किले में सुबह और शाम दोनो समय नियमित पूजा हो रही है यह घटना विक्रम संवत 1955 की ज्येष्ठ सुदी आठम ने बुधवार को हुई थी इस सम्बंध में गोरुदानजी मोतेसर ने दोहा कहा है जो निम्न प्रकार से है-
सर पांडव ग्रह शशी, सम्वत जेठ शुद आठम।
जमहर तू हीरा जली, वरण में हुआ बखान।।
इस दोहे के माध्यम से अर्थात पांच पांडव ओर पांच सर अर्थात 5 औऱ 5 ग्रह 9 ओर शशी अर्थात चन्द्रमा 1 इस तरह विक्रम संवत 1955 की घटना का उल्लेख किया है।
प्रेषित:- नरपतसिंह आसिया
वलदरा सिरोही राजस्थान