राजस्थान रै मध्यकालीन वीर मिनखां अर मनस्विनी महिलावां री बातां सुणां तो मन मोद, श्रद्धा अर संवेदनावां सूं सराबोर हुयां बिनां नीं रैय सकै। ऐड़ी ई एक कथा है कोडमदे अर सादै (शार्दूल) भाटी री।
कोडमदे छापर-द्रोणपुर रै राणै माणकराव मोहिल री बेटी ही। ओ द्रोणपुर उवो इज है जिणनै पांडवां-कौरवां रा गुरु द्रोणाचार्य आपरै नाम सूं बसायो। मोहिल चहुवांण राजपूतां री चौबीस शाखावां मांय सूं एक शाखा रो नाम जिका आपरै पूर्वज ‘मोहिल’ रै नाम माथै हाली। इणी शाखा में माणकराव मोहिल हुयो। जिणरै घरै कोडमदे रो जलम हुयो। कोडमदे रूप, लावण्य अर शील रो त्रिवेणी संगम ही। मतलब अनद्य सुंदरी। राजकुमारी ही सो हाथ रै छालै ज्यूं पल़ी अर मोटी हुई।
राजकुमारी कोडमदे मोटी हुई जणै उणरै माईतां नै इणरै जोड़ वर जोवण री चिंता हुई। उण दिनां राजपूतां में फूठरै वर नै इती वरीयता नीं दिरीजती जिती एक वीर पुरुष नै दिरीजती। इणी कारण उणरी सगाई मंडोवर रै राजकुमार अड़कमल चूंडावत सागै करी दी गई।
कोडमदे जितरी रूप री लंझा ही अडकमल उतरो इज कठरूप। एक’र चौमासै रो बगत हो। बादल़ चहुंवल़ा गैंघूंबियोड़ा हा, बीजल़ी पल़ाका करै ही, झिरमिर मेह वरसै हो। ऐड़ै में जोग सूं एकदिन अड़कमल सूअर री शिकार रमतो छापर रै गोरवैं पूगग्यो। उठै ई जोग सूं कोडमदे आपरी साथण्यां सागै झूलरै में हींड हींडै ही। हींड लंफणां पूगी कै उणरी नजर सूअर लारै घोड़ै चढिये डारण देहधारी बजरागिये अड़कमल माथै पूगी। नजर रै सागै ई उणरो सास ऊंचो चढग्यो अर उवां थांथल़ीजगी। थांथरणै रै साथै ई धैंकीज’र पड़गी। पड़तां ई उणरो सास ऊंचो चढग्यो। रंग में भंग पड़ग्यो। साथण्यां ई सैतरै-बैतरै हुयगी। उणनै ऊंचाय’र महल में लेयगी अर झड़फा-झड़फी करण सूं उणरो सास पाछो बावड़्यो। ज्यूं सास बावड़्यो जणै साथण्यां पूछ्यो कै-
“बाईसा! इयां एकएक भंवल़ कियां आयगी? ओ तो आखड़िया जैड़ा पड़िया नीं नीतर आज जुलम हुय जावतो। म्हे मूंडो ई कठै काढती?”
जणै कोडमदे कह्यो कै-
“अरै गैलक्यां भंवल़ नीं आई। म्हैं तो उण ठालैभूलै ठिठकारिये घोड़ै सवार नै देखर धैलीजगी।”
आ सुणतां ई उणां मांय सूं एक बोली-
“अरे बाईसा! उवै घोड़ै सवार नै देख’र ई धैलीजग्या जणै पछै उण सागै रंगरल़ी कीकर करोला? उणरै सागै तो थांरो हथल़ोवो जुड़ण वाल़ो है!”
“हैं! उण सागै म्हारो हथल़ेवो! तूं आ कांई काली बात करै? अर जे आ बात सही है अर ओ इज अड़कमल है तो सुणलो इण सागै हथल़ोवो जोड़ूं तो म्हारै बाप सागै जोड़ूं।” कोडमदे रै कैतां ई आ बात उणरै माईतां तक पूगी।
कोडमदे रै मा-बाप दोनां ई कह्यो-
“बेटी ! तूं आ बात जाणै नीं है कै थारो हुवण वाल़ो वींद कितरो जोरावर अर आंटीलो है। उणरै हाथ रो वार एक’र तो भलां-भलां सूं नीं झलै। पछै तूं ई बात नै जाणै है कै नीं कै सिहां अर सल़खाणियां सूं वैर कुण मोल लेवै? आ सगाई छोड दां ला तो थारो हाथ झालण नै, ई जमराज सूं डरतो कोई त्यार नीं हुवैला।”
आ सुणतां ई कोडमदे कह्यो-
“अंकनकुंवारी रैय सकूं पण अड़कमल सूं गंठजोड़ नीं जोड़ूं।”
माणकराव मोहिल आपरी बेटी रो नारेल़ दे मिनखां नै वल़ोवल़ी मेल्या पण अड़कमल रै डर सूं किणी कान ई ऊंचो नीं कियो।
सेवट आदमी पूगल रै राव राणकदे भाटी रै बेटे सादै (शार्दूल) नै कोडमदे रै जोग वर मान टीको लेयग्या। पण राणकदेव सफा नटग्यो। उण राठौड़ां सूं भल़ै वैर बधावणो ठीक नीं समझ्यो।
मोहिलां रा आदमी मूंडो पलकार’र पाछा टुरग्या। उवै पूगल़़ सूं कोस दो-तीनेक आगीनै आया हुसी कै पूगल़ रो कुंवर सादो उणांनै आपरी घोड़ी चढ्यो मिल्यो।
असैंधा आदमी देख’र सादै पूछ्यो तो उणां पूरी बात धुरामूल़ सूं मांड’र बताई। जद सादै नै इण बात रो ठाह लागो तो उणरो रजपूतपणो जागग्यो, मूंछां रा बाल़ ऊभा हुयग्या। भंवारा तणग्या। उण मोहिलां रै आदम्यां नै कह्यो-
“हालो पाछा पूगल़। टीको म्हारै सारू लाया हो तो नारेल़ हूं झालसूं!”
सादै आवतां रावजी नै कह्यो कै-
“हुकम! ठंठेरां री मिनड़ी जे खड़कां सूं डरै तो उणरै पार कीकर पड़ै? जूंवां रै खाधां कोई गाभा थोड़ा ई न्हाखीजै? राजपूत अर मोत रै तो चोल़ी-दामण रो साथ है। जे टीको नीं झाल्यो तो निकल़ंक भाटी कुल़ रै जिको कल़ंक लागसी उवो जुगां तक नीं धुपैलो। आप तो जाणो कै गिरां अर नरां रो उतर्योड़ो नीर पाछो नीं चढै–
धन गयां फिर आ मिले, त्रिया ही मिल जाय।
भोम गई फिर से मिले, गी पत कबुहन आय।।
आ कैय सादै, मोहिलां री कुंवरी कोडमदे रो नारेल़ झाल लियो पण एक शर्त राखी कै-
“म्हारी कांकड़ में बड़ूं जितै म्हनै राठौड़ां रो चड़ी रो ढोल नीं सुणीजणो चाहीजै तो साथै ई उणांरै रै घोड़ां रै पोड़ां री खेह ई नीं दीसणी चाहीजै। ऐ दोनूं बातां हुयां म्है उठै सूं एक पाऊंडो ई आगै नीं दे सकूं। क्यूंकै–
झालर बाज्यां भगतजन, बंब बज्यां रजपूत।
ऐतां बाज्यां ना उठै, (पछै) आठूं गांठ कपूत।।
मोहिलां वचन दियो अर सावो थिर कियो।
आ बात जद अड़कमल नै ठाह लागी तो उणरै रूं-रूं में लाय लागगी। उण आपरै साथ नै कह्यो-कै-
“मांग तो मर्यां नीं जावै। हूं तो जीवतो हूं। सादै अर मोहिलां अजै म्हारी खाग रो पाणी चाख्यो नीं है। हुवो त्यार। मोहिलवाटी सूं निकल़तां ई सादै नै सुरग रो वटाऊ नीं बणा दियो तो म्हनै असल राजपूत मत मानजो।”
अठीनै सादो जान ले चढ्यो अर उठीनै अड़कमल आपरा जोधार लेय खार खाय चढ्यो। माणकराव आपरी लाडकंवर रो घणै लाडै-कोडै ब्याव कियो अर आपरै सात बेटां नै हुकम दियो कै-
“बाई नै पूगल़ पूगायर आवो। आपां सादै नै वचन दियो है पछै भलांई स्वारथ हुवै कै कुस्वारथ बात सूं पाछो नीं हटणो।
आगै मोहिल अर लारै आपरी परणेतण कोडमदे सागै सादो। मोहिलवाटी सूं निकल़तां ई अड़कमल रो मोहिलां सूं सामनो हुयो। ठालाभूलां नै मरण मतै देख एक’र तो राठौड़ काचा पड़्या पण पछै सवाल मूंछ रो हो सो राटक बजाई। बारी-बारी सूं मोहिल आपरी बैन री बात सारू कटता रैया पण पाछा नीं हट्या। जसरासर, साधासर, कुचौर, नापासर, आद जागा मोहिल वीर राठौड़ां सूं मुकाबलो करतां कटता रैया। छठो भाई बीकानेर अर नाल़ रै बिचाल़ै कट्यो तो सातमो मेघराज मोहिल आपरी बात सारूं कोडमदेसर में वीरगत वरग्यो। ऐ सातूं भाई आज ई इण भांयखै में भोमियां रै रूप में लोक री श्रद्धा रा पूरसल पात्र है।
हालांकि उण दिनां ओ कोडमदेसर नीं हो पण आ छेहली लड़ाई इणी जागा हुई। अठै इज भाटी सादै अर अड़कमल री आंख्यां च्यार हुई। उठै आदम्यां सादै नै कह्यो-
“हुकम! आप ठंभो मती। आप पूगल़ दिसा आगै बढो।”
जणै सादै कह्यो कै-
“हमैं कांकड़ म्हारी है! म्हैं अठै सूं न्हाठ’र कठै जाऊंलो? मोत तो एक’र ई आवै, रोजीनै नीं-
कंथा पराए गोरमे, नह भाजिये गंवार।
लांछण लागै दोहुं कुल़ां, मरणो एकण बार।।
जोरदार संग्राम हुयो सेवट अड़कमल रै हाथां सादो भाटी ई वीरता बताय’र आपरी आन-बान रै सारू स्वर्गारोहण करग्यो पण धरती माथै नाम अमर करग्यो।
आपरै पति नै वीरता सागै लड़’र वीरगत वरण माथै कोडमदे नै ई अंजस हुयो। उण आपरी तरवार काढ आपरो जीवणो हाथ बाढ्यो अर उठै ऊभै एक आदमी नै झलावतां कह्यो-
“लो ! ओ म्हारो हाथ पूगल ले जाय म्हारी सासू रै पगै लगावजो अर कैजो कै थांरै बेटे थांरो दूध नीं लजायो तो थांरी बहुआरी थांरो नाम नीं लजायो तो ओ दूजै हाथ रो गैणो है इणसूं म्हारै सुसरैजी नै कैजो कै इण तालर में तिसियां खातर एक तल़ाव खणावजो।”
इतो कैय उण जुग री रीत मुजब कोडमदे रथी बणाय आपरै पति महावीर सादै रै साथै सुरग पूगी-
आ धर खेती ऊजल़ी, रजपूतां कुल़ राह।
चढणो धव लारै चिता, बढणो धारां वाह!!
उठै राव राणकदे कोडमदे री स्मृति में कोडमदेसर तल़ाब खोदायो जिको इण बात रो आज ई साखीधर है कै मरतां-मरतां ई आपरी बात री धणियाणी मनस्विनी कोडमदे किणगत लोककल्याणकारी भावनावां रो सुभग संदेश जगत नै देयगी।
~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”