।।दूहा।।
दे भगती सुखदायनी, उगती कंठां आय।
है सगती हिंगल़ाज तूं, बीसहथी वरदाय।।१
मरण जलम तूं मेटणी, करण सकल़ रा काज।
पड़्यां चरण परमेसरी, हरण दोख हिंगल़ाज।।२
सह बातां समराथरी, सुक्खदात री साख।
आईनाथ अनाद तूं, नमो नाथ नवलाख।।३
तूं बांकल तूं बिरवड़ी, करनल तुंही कहाय।
दाखा़ सैणल देवला, मालणदे महमाय।।४
सिरधर पड़ियो सांपरत, वरधर राखै बात।
ऊपर गिरधर ईसरी, हरदम थारा हाथ।।५
।।छंद-भुजंगी।।
नमो हींगल़ा मात प्रख्यात नामी।
पुणां मातरी ख्यात नै कूण पामी।
रसा देवियां देव सिर्ताज राजै।
भणै जाप प्राणी तणा पाप भांजै।।१
मही थान बीलोचिसथान मंडै।
खमा कोपियां केवियां सीस खंडै।
वसू वीदगां जात चित्तार बाई।
अगै धार ओतार हज्जार आई।।२
नमो माधरै गेह सन्नेह नामी।
सही खूबड़ा पाल़णी भीर स्वामी।
मुणां रास हुल्लास रू रीझ मांडै।
खमा खेलणी प्राथमी थांन खांडै।।३
दयाधार आधार श्रीमाल़ दीपै।
जयो भांजणी दूठड़ां जुद्ध जीपै।
अनाथां सदा रोटियां दूध आपै।
करै वार साधार रू कष्ट कापै।।४
मही मामड़ा तात री बात माता।
सची राखली रूप व्है दीप साता।
धरा माडरी राय संसार धोकै।
रथां पंथ गैणाग रै सूर रोकै।।५
हथां हाकड़ो नीर तूं पीर हाली।
चँडी रातड़ै दैत नै चीर चाली।
प्रिथी पातवां आज ही सीर पाल़ै।
भुजाल़ी तु़ही बाल़कां मोह भाल़ै।।६
मनां पूरणा ब्रीवड़ा देख माई।
चवां दैतड़ां चूरणी चक्खड़ाई।
मुदै कोढ हम्मीर रो मेट माता।
दयाल़ी बजै आजलो अन्नदाता।।७
बणी सैणला रूप तूं वेद बेटी।
भणां माल चौहांण नै मूंछ भेंटी।
कृपाल़ी जुढीयांण में नीर कीनो।
दिली भूप अल्लाउदी गाल़ दीनो।।८
जयो देवला जोगणी जग्गजामी।
नमो माड़वै धाटरू थान नामी।
भलीयाइये नेहरी मी़ंट भाल़ै।
तु़ही मात अबेढीय वार टाल़ै।।९
उवो माडरै राव ढीमं अदीठो।
मुदै रीझ नै मात कीधो मदीठो।
कियो कोप देवी दूढो नास कीनो।
दयाल़ीज वीसै नैय धाट दीनो।।१०
दखां मात रिध्धू नित्तां रिद्ध दैणी।
वल़ै पातवां सायलां साय बैणी।
मुणां तात मेहोज देवल्ल माता।
सची कीर्ति सांभल़ी दीपसाता।।११
कराल़ी तुंही कांनियो नास कीनो।
डढाल़ी तुंही वीक नै राज दीनो।
चढी जैत पखै जुद्ध भोम चंडी।
खमा कामरा मेछ री सैन खंडी।।१२
सचाल़ी तु़ही काढियो जेल़ शेखो।
छतो चोथ वाल़ो कियो काम छेको।
तुंही शाह री बूड़ती जाझ तारी।
थहै पार सोभा नको अंब थारी।।१३
बजै मात मेवाड़ मे तूंझ वीरी।
भुजाल़ी ज सांगै तणी जूप भीरी।
कृपाल़ी जदै न्याव अदल्ल कीनो
दुनी देखतां सांग नै ताज दीनो।।१४
मलाफ्यो करी राण रै सीस मातो।
नमो सुंद्रां पाल़ियो नेह नातो।
सजी राण संग्राम रै शीघ्र स्हाई।
उठै भांजियो मैंगल़ो शूल़ आई।।१५
खमा हेतवां वाहरू हैज खोड़ी।
करै कीरती ताहरी संत कोड़ी।
तु़ही चांपला मोटवी रूप चंडी।
तुंही मोगला चाहणी जात मंडी।।१६
इल़ा मालणा आलणा वंश आई।
बडाल़ी तुंही थान राजै बिराई।
करां आंबरा नींबड़ा तैंज कीधा।
दखां दूथियां तैं अभैदान दीधा।।१७
जयो नागवी जोगरी तूंझ जाई।
मुदै पाट खोस्यो मँडल्लीक माई।
दखां कामेई मात काछेल देवी।
दियो जाम रावल़्ल़ नैं साप देवी१८
प्रिथीराज रै राजला तूंझ पूजै।
धिनो कोप तोरै पत्तसाह धूजै।
रँग राजला तूं मुग्गलांण रूठी।
छत्री कोम री लाग नौरोज छूटी।।१९
मुणां बीठवां वंश गीगाय माता।
वणी धेनवां साय तू बीसहाथां।
रसा रेणवां राज ही लाज राखी।
सचै काज तांई ससी सूर साखी।।२०
तुंही जैतल़ा मानला जानबाई।
तुंही सुंदरी जीवणी सोनबाई।
तुही सोनला इंद्रां रूप साजै।
ब्रिदाल़ी तुंही अंबका नाम बाजै।।२१
दिपै थान दासोड़िय सुक्खदाई।
मयाल़ी बजै पेमल़ा नाम माई।
कल़ी मे थल़ी कीरती तैंज कीनी।
तुंही दूठ कल्लैय नै कोढ दीनी।।२२
चवां ऊदरी माड़वै रूप चंदू।
दखां दूथियां मेटिया दोख दंदू।
अँगां मावड़ी लोवड़ी तैंज ओढी।
पुगै मार लीधो धणी नीच पोढी।।२३
पती पात तैंही रतन्नेस पायो।
छतो कोमरो भोम पे जस्स छायो।
थल़ी थान दासोड़ीय थाट थारा।
मुदै मेट माठा कर्म मात म्हारा।।२४
जयो बीठवां वंश वीरां जनम्मी।
अहो आपरां राखिया मा अनम्मी।
सतंधार सींहाण बीकाण साची।
बठै प्रगटी वारता देश बाची।।२५
वर्यो नाथ हर्पाल़ भींयाड़ वीरां।
सची रत्तनुवां कीरती दी सधीरां।
बणी रै’त री भीर गंभीर बातां।
हणै पूगनै जोगणी चोर हाथां।।२६
सगत्ती तुंही मात शीलां सचाल़ी।
कुलं तारणी गांम कोडां कृपाल़ी।
दुखां गाल़णी रूप देमां दिखायो।
खमा भाखरै रांण नै तैं खपायो।।२७
धिनो धाट में रूप जोमां धिरांणी।
जिकी चाढियो जात रै नीर जाणी।
हरीयां ज भींयाड़ में है हठाल़ी।
गहै शूल़ पाणां रिमां गर्व गाल़ी।।२८
महम्माय छीलै हंजू रूप मानां।
करै सेवियां साबल़ी साद कानां।
दिपै जात रत्तनू उज्जवाल़ देवी।
सजै पीठ सादूल़ री दास सेवी।।२९
उमेदांज दासोड़ीय थांन आखां।
रढाल़ी तणी आस विसास राखां।
कियो कोप पातै परां तैं कराल़ी।
करी मूढ रै वंश री साव काल़ी।।३०
अमा रेंपली होलरी आप आछां।
लियो रोहड़ां गेह ओतार लाछां।
प्रिथी ओतरी जेतली व्रन पग्गा।
नमो लाछ हीरां तुंही देवनग्गा।।३१
बसै मात मोराझरां आप वानूं।
कियां साद सुणै सदा शीघ्र कानूं।
सचाल़ी नमो आप ओपो सबाई।
चढै टेरियां आद ज्यूं व्रन चाई।।३२
इको एक सूं आगल़ी थैज आई।
गुणी ज्यूं सुणी कीर्ति जेम गाई।
कवी रो गुनो अंबका माफ कीजै।
नमो लोवड़ी ओढणी भीर लीजै।।३३
धजाल़ी रूखाल़ै त़ुंही धर्म धारा।
थहै ऐक अन्नेक ऐ रूप थारा।
इष्ट धार संसार तोनै अराधै।
लंब हाथ नको थारा भेद लाधै।।३४
पुकारै कवी गीधियो जोड़ पाणां।
जको जांमणी टाल़ ना और जांणां।
मुदै मावड़ी एक आधार म्हारी।
थिरां राखजै छांवड़ी हाथ थारी।।३५
।।कवत्त।।
एक तुंही अवल़ंब, नाथ निरधार नमामी।
इल़ा कल़ा अणपार, पार कुण जग में पामी।
संत तणी ले सार, सांम संसार सचाल़ी।
तरणी डूबत तार, धार भव भीर धजाल़ी।
अवतार अनेकूं अवन हित, लाल धजाल़ी तैं लिया।
वार ही वार गिरधर वँदै, कार अदभुत तैं किया।।
भल़हल़तो नभ भांण, लोहड़ी ताण लुकायो।
मही छत्रियां मांण, जा़ण पतसाह झुकायो।
हठी कुछत्र्यां हांण, पाण भुजलंब पुगायो।
दिया तावल़ा डांण, भगत भय आंण भगायो।
महरांण सोख दुख मेटणी, इल़ असुरांण उथापिया।
सुभियांण गीध कितरा सकज, किनियांण सफल़ तैं किया।
~~कवि गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”