गीत वेलियो
किण सू हुई नह हुवै ना किणसूं,
हिवविध राम तिहारी होड!
कीधा काम अनोखा कितरा,
छिति पर गरब उरां सूं छोड!!1
बाल़पणै दाणव दल़ वन में,
रखिया कुशल़ सकल़ रिखिराज।
कातर नरां अभै भल कीधा,
सधरै धनुस करां में साज।।2
भंजियो धनख भूतेसर वाल़ो,
उर धर गुरवर तण आदेश।
जोता महिपत रह्या जनक घर,
वरधर सीत वरी जिण वेश।।3
पूरण वचन तात रो प्रिथमी,
तजियो मरद पलक में ताज।
वणिय खलक जोतां वनवासी,
सुख रा सरब छोडिया साज।।4
फल़ बल़ पाण वनां में फिरियो,
भुज बल निज जन करवा भीर।
खल़ दल़ किता रूठ नैं खंडिया,
रांगड़ रँग रै तो रघुवीर।।5
बंधियो भलो प्रेम रै बंधणा,
भीलण सबरी वाल़ै भाव।
जो तें जात पूछी ना जाहर,
चवड़ै ऐंठ खाइ कर चाव।।6
पति रै क्रोध अहिल्या पेखो,
पहुमी दिल बा हुइ पाखांण।
गाढो नेह दियो घणनामी,
मन उमँगी पा तोसूं मांण।।7
समरथ कियो सुग्रीवो सांई,
वन वन फिरतो वानर वीर।
बाली कोट ढायो विभचारी,
तणनै दियो काल़जै तीर।।8
संभल़ी जदै जटायु श्रवणां,
चवड़ै सीत तणी चितकार।
भिड़ियो जाय रावण सूं भामी,
बामी खगपत अरि बोकार।
पड़ियो घायल जो रण पाधर,
पंखी सीत तणी ले पीड़।
जिणनै हाथ उठायर जगमें,
भलपण लियो अँकां में भीड़।।9
हणमंत दास सदा तुझ हेरां ,
भगवन रहै काल़जै भास।
सेवग तणी आस सह पूरण,
बैठो करनै तूं उथ वास!!10
आयो सरण विभीखण इम तो,
पड़ियो कूक तिहाल़ै पाव।
लीधां पैल दीधी तै लंका,
रंक नै कियो पलक में राव।।12
महियल़ सरब थपी मरजादा,
कीधी पाल़ण नाथ कठोर,
सहविध जोवां शास्त्र सारा,
आँख्यां मीढ न आवै और।।13
भल भल रै रघुकुल़ रा भूषण,
समरथ दसरथ तणा सुजाव।
मारग जिण ही बुवो मोटमन,
दियो नहीं हीणो इक दाव।।14
कवियण गीध गिणावै काई?
कितरा कवि कैहग्या कत्थ।
कितरा कवि अगे फिर कथसी,
विमल़ं राम तिहारी बत्त।15
~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”