साहित्य अकादेमी, नई दिल्ली रै अनुवाद पुरस्कार 2019 सूं आदरीजण वाळी काव्यकृति ‘चारु वसंता’ मूळ रूप सूं कन्नड़ भासा रो देसी काव्य है, जिणरा रचयिता नाडोज ह.प. नागराज्या है। इण काव्य रो राजस्थानी भावानुवाद करण वाळा ख्यातनाम साहितकार है-डाॅ. देव कोठारी, जका आपरी इतियासू दीठ, सतत शोधवृत्ति अर स्वाध्याय प्रियता रै कारण माड़ भासा राजस्थानी रा सिरै साहितकारां में आपरी ठावी ठौड़ राखै। डाॅ. कोठारी प्राचीन राजस्थानी साहित्य, खास कर जैन साहित्य रा उल्लेखणजोग विद्वान है। हर काम नैं पूरी ठिमरता अर दिढता सूं अंजाम देवण री स्वाभाविक आदत रा धणी डाॅ. कोठारी ‘चारु वसंता’ काव्य रो उल्थौ ई घणै धीरज सूं कियो है। जद पैली बार म्हैं इण काव्य नैं दिसम्बर, 2017 में पढ्यो, उण बगत वांनैं छह ओळियां लिख’र म्हारी भावना व्यक्त करी-
धन्य कोठारी देवजी, करत सधीरा काम।
चारु-वसंता नाम सूं, उल्थो कियो अमाम।
उल्थो कियो अमाम, सुभग संदेस सुणायो।
जूण-जथारथ जाण, बहुरि नर-धरम बतायो।
कहै ‘गजो’ कविराय, प्रगट भव-ग्यान पिटारो।
पढियां पड़ै पिछाण, जुगतगत मिनख जमारो।।
~~शक्तिसुत
पारंपरिक मूल्यां अर मिनखपणै री रमणीय रीतां रा प्रबळ पखधर होवण रै कारण उल्थाकार नैं चारु वसंता री कथा रुचिकर लागी है। असल में चारु-वसंता री कथा मिनख जात रै जथारथ री कथा है। इण कथा में हलांकै कल्पना तत्व री बोहळायत है, उणरै बावजूद वो कल्पना तत्व मिनखा-जूण रै साव नेड़ो अर जाण्यो-पिताण्यो सो लागै, इण कारण बोझिल अर अखरण वाळो नीं बणै। जीवण-जगत सूं गहन जुड़ाव रै कारण ई इण देसी काव्य रो कथानक पाठक रै चित्त नैं बांधण री खिमता राखै। कन्नड़ रै इण देसी काव्य रा न्यारी-न्यारी नौ भारतीय भासावां में उल्था हुया है। हर उल्थाकार रै आकरसण रा दो कारण खास रूप सूं रैया है- पैलो चारु वसंता री कथा रो मिनखजूण सूं गैरो अर रोचक जुड़ाव तथा दूजौ कवि हम्पना री काव्य प्रतिभा। इण ग्रंथ रो हिंदी भासा में उल्थौ करण वाळा विद्वान एच.पी. रामचंद्रनराव आपरै अनुवाद ग्रंथ री भूमिका में लिखै कै ‘‘म्हैं कवि हम्पना री काव्यस्रिस्टी नैं देखनै दंग रैयग्यो।’’ राजस्थानी उल्थाकर डाॅ. देव कोठारी लिखै कै वांनै तो इण काव्य री कथा वांरी मायड़भासा राजस्थान रै जूनै आख्यान काव्यां सूं जुड़ती सी लखाई, इण कारण वै राजस्थानी भासा रा काव्यरसिकां सारू इण रोचक काव्य रो भावानुवाद करणो तेवड़्यो। खैर!
इण काव्यपोथी रो सिरैनाम ‘चारु वसंता’ चारु अर वसंता दो नामां सूं मिल’र बण्यो है, जका इण काव्य रा मूळ नायक-नायिका है। हलांकै लोक री दीठ अर समर्पण री पराकाष्ठा रै पेटै इण समूचै काव्य री महनीय नायिका है- चारुदत्त री प्रथम पत्नी-मित्रावति पण नामकरण री दीठ सूं कथा नायक ‘चारु दत्त’ अर कथा नायिका ‘वसंततिलका’ मानीजै। चारुदत्त अेक मानीजतै वणिक घराणै रो इकलौतो लाडलो बेटो है, जको आपरी स्याणप, लुळताई, फूठरापै अर कलाप्रेम रै पाण आखी चंपा नगरी री आंख्यां रो तारो है। छक जवानी री रंगभीनी ऊमर में ई चारुदत्त पोथियां पढण अर ग्यान-उपदेस में ई उळझेड़ो रैयो। वो जीवण रै जथारथ सूं साव अणजाण ही हो। आपरै साथी-सायनां सूं ई वो कदै आपरी ऊमर परवाण मजाक-मसखरी कोनी करतो। समैं देख घरवाळां उणरो ब्याव अेक बराबरी रै घराणै री कन्या मित्रावति सूं कर दियो, जकी फूठरी, समझवान अर बांणियै री बेटी रा सगळा ओपता गुणां सूं मंडित ही। चारुदत्त री मां देविला अर पिता भानुदत्त घणा राजी। च्यारांकानी ब्याव री शानोशौकत चरचा रो विषै बणी पण आ खुशी फगत छह महीनां में चिंता रो कारण बणण लागी। चारुदत्त अर मित्रावति रै दाम्पत्य जीवण री कळी खिलण सूं पैली मुरझावण सारू मजबूर हुई। चारूदत्त ब्याव करण रै बाद भी रात-दिन किताबां में ई माथो मारतो रैवै, ग्यान री बातां पढ़ै, सुणावै पण धणी-लुगाई रै धरम रो तो उणनैं ना ग्यान अर ना कोई भान। नव परणेतण धण रै नयै-नकोर ढोलियै पर बिछेड़ी चादर में छह महीनां ताणी अेक ई सळ कोनी पड़्यो, आ बात दासी-बांदियां रै ई खुसर-फुसर रो कारण बणी। बात रो खुलासो तद हुयो जद मित्रावति री मां आपरी लाडली अर उणरी सास देविला सूं मिलण सारू उणरै घरै आई। मां नैं देखतां ई बेटी रो दुख-दरियाव उझळ पड़्यो अर सगळी कहाणी सामै आई। चारुदत्त री मां देविला आपरी समधण सुमित्रा अर बहू मित्रावति नैं धीजो बंधावती थोड़ा दिनां रो समै मांग्यो अर सौक्यूं ठीक करण रो वादो कियो।
देविला रो भाई हो रुद्रदत्त, जको अणहद कामी, कुलखणो पण चतर इसो कै चालती गाडी रा चक्का काढ़ ल्यै अर चावै तो पाछा ई लगा देवै। देविला आपरै बेटै पर आज ताणी रुद्रदत्त री छिंया तक कोनी पड़ण दी पण अंवळो आवै जद काट’र ई काढणो पड़ै। उण रुद्रदत्त नैं बुलायो अर आपरी पीड़ा बताई। मोहरां सूं भरी थकी नौळी देख रुददत्त फटाफट हामळ भरतो आपरै भाणजै रै पोथीखानै गयो अर आपरो इसो चक्कर चलायो कै आज ताणी किताबां रो कीड़ो बणेड़ो चारुदत्त आपरै मामै री बातां में आय आपरी दुनियां सूं बारै निकळै। घोड़ां पर सवार होय कदै कठै तो कदै कठै जाय राग-रंग देखै। होळै-होळै संगीत-सुधा पान करण ढूकै तो नाच-गान में रस लेवण लागै। अेक दिन मौको देख रुद्रदत्त उणनैं चांदगळी री सैर करावण ले ज्यावै। च्यारां कानीं रूप री परियां आवण-जावण वाळां नैं आपरै गात री घमक अर चेहरां री चमक सूं लुभावै-उळझावै अर आपरो धंधो चलावै। घणी बातां री अेक बात, रुद्रदत्त रै भुरकी में आय चारुदत्त उण चांदगळी में रूप री डळी वसंततिलका नाम री गणिका रै काम-कुड़कै में फंस जावै अर इसो फंसै कै घर-बार नैं भूल जावै। वसंततिलका री मां घणी जुलमी अर व्यावसायिक दीठ वाळी वेस्या, वां चारुदत्त री मां पर दबाव बणाय रोजीनां माल-असबाब सूंतणो सरू करै अर इयां करतां-करतां अेक दिन नगर सेठ भानुदत्त करोड़पति सूं कंगालपति बण जावै।
चारुदत्त अर वसंततिलका आपरी दुनियां में मस्त। वसंततिलका ई आपरै जीवण में सिवाय चारुदत्त रै किणी पर-पुरुष रो परस ई नीं कियो अर ना ई करणो चावै पण उणरी मां तो आपरै धंधै पर ध्यान देवै। चारु रै घर में धन खूटै तो वसंततिलका री मां रो मन खूट जावै। वां वसंततिलका नैं समझावै कै इण चारु नैं घर सूं बारै काढ़। अबै ओ आपणै काम रो नीं पण वसंततिलका इण बात सारू राजी नीं हुवै। अेक रात गैरी नींद में सूतै चारुदत्त नैं मुसटंडा उठावै अर उणरै घर रै बारै ल्या पटकै। दिनूंगै आंख्यां मसळतो उठै तो सगळी कहाणी समझ आवै पण अब ताणी घणी देर हो चुकी। वो आपरी पुराणी हवेली में जावण सारू दरवाजै पर आवै, बापड़ा नौकर-चाकर हरखीजै पण मांयनैं बड़ण सूं रोकता विनम्र अरज करै कै आ हवेली बिकगी, अबै इणरा मालक दूजा है। नौकर-चाकर चारुदत्त नैं पकड़ उणरै घरवाळां कनैं पुगावै, जका बापड़ा अेक टूटी-फूटी टापरी में जीवण रा दिन पूरा करता हुवै।
सेठ भानुदत्त तो बेटै री करतूतां अर लोगां रै कड़वै बोलां सूं आखतो होय घर-बार छोड़’र कठै ई जातो रैयो। मां अर उणरी घरनार चारुदत्त नैं देख घणी राजी हुवै। दारू में भभकीजतै चारु नैं उणरी घरनार मित्रावति न्हावाय-धोवाय’र नया कपड़ा पैरावै। सगळी भूलां नैं माफ करतां नयै सिरै सूं जीवण जुगत रा उपाय सुझावै। आपरै जीवण में पैली बार मित्रावति अर चारु रै बीच धणी-लुगाई रो संबंध थापित हुवै। इणनैं आपरै घर-परिवार डूबण रो जितरो पछतावो हुवै उणसूं बत्ती खुशी इण बात री हुवै कै आज उणरो लुगाईपणो सारथक हुयो। चारुदत्त आपरी करणी पर घणो लज्जित हुवै। आत्मग्लानि सूं ग्रसित होय मरणो चावै पण मित्रावति उणनैं धीजो बंधावती जीवटता रो पाठ पढ़ावै। वो आपरी वणिक बुद्धि सूं पाछो बिणज-बोपार सरू करै अर धन-लिछमी री पाछी किरपा हुवै। ‘दिन पलट्यां, पलटै दसा’ री कैवत परवाण जियां ई चारुदत्त सुळटै गेलै चालणो सरू करै उणरा दिन बावड़ जावै।
बठीनै चांदगळी में वसंततिलका आपरी मां नैं मजबूर कर देवै कै वा जावैला तो चारुदत्त रै साथै, नीं तो अन्नजळ ग्रहण नीं करैला। मजबूर होय उणरी मां चारुदत्त री मां देविला कनैं प्रस्ताव भिजवावै। इण बीच चारुदत्त ई आपरी घरनार अर मां नैं वसंततिलका रै विषै में पूरी बात बता देवै कै वसंततिलका उणरै सिवाय किणी दूजै रो नाम ई नीं लेवै। वणिक जात ऊंडी बुद्धि सारू जगत विख्यात है। देविला अर मित्रावति समै री मांग मुजब निर्णय लेवती वसंततिलका अर चारुदत्त रै ब्याव री बात पक्की करै अर धूमधाम सूं दोनां रो ब्याव कर घरै आवै। वसंततिलका रै पेट में चारु रो अंश पळतो हुवै। लोक चक-चक करै पण ‘धाबळै वाळी कारी’ री चरचा च्यार दिनां ताणी चालै पछै गाडी पाछी सागण चीलां चालण लागै। मित्रावति ई गरभवती हुज्यावै। चारुदत्त आपरै बिणज सारू विदेस जावै। घरै वसंततिलका अर मित्रावति घणै हेत सूं बैनां-बैनां दाईं रैवै। बातां-बातां में वसंततिलका नैं ठाह पड़ै कै इण घर रो सगळो माल-असबाब उणरी मां हड़प लियो। वा आपरी मां नैं धिक्कारै अर होळै-होळै हेली-बंगला सगळा पाछा ले लेवै। रुस्योड़ो राम पाछो राजी हुज्यावै। चारुदत्त बरसां ताणी बारै बिणज करतो करोड़ां रिपिया कमावै। वसंततिलका अर मित्रावति दोनां रै संतान जलम लेवै। अेक रै बेटो अर अेक रै बेटी। पाछो घरै आय चारुदत्त घणै हरख सूं जीवण रो आणंद लेवै अर बारम्बार आपरी घरनारां अर परिवारजनां री बुद्धि अर बडप्पण रा वारणा लेवै। कथा रो सार ओ है समझदारी अर जीवटता सूं बिगड़ेडी हालत नैं पाछी सुधारीजी। ब्होत लांबी कथा है। बिणज-बोपार री अबखायां, घाटा-नफा आद रा ई मोकळा दरसाव इण मांय है। विपरीत सूं विपरीत परिस्थितियां अर वांसूं उबरण रा न्यारा-न्यारा गेलां रा ई वाल्हा दाखला इण देसी काव्य री जीवण दायनी सगती है।
कुल पांच खंडा-कथा कांड, सुंदर कांड, उन्मुख कांड, उद्योग कांड अर द्यावा धरती कांड में फैलेड़ी आ कथा मिनखजूण री झीणी अर व्हाली विरोळ वाळी कथा है। वाकई कवि नागजात्या री काव्यदीठ अर काव्यप्रतिभा वारणां लेवण जोग है।
इण भांत रै दाठीक अर सबळी जीवणदीठ वाळै उटीपै काव्य सूं मायड़भासा राजस्थानी रै पाठकां नैं परिचित करावण अर मायड़भासा रै भंडार नैं समृद्ध करण सारू म्हैं आदरजोग देव कोठारी जी नैं घणां रंग देऊं। डाॅ. देव कोठारी इण काव्य रै भावानुवाद में मायड़भासा री मठोठ नैं बणाया राखतां आपरी ऊंडी अनुभव दीठ रो प्रघळो परिचै दियो है। इण उल्थै री भासा आपरी भाव-संप्रेषणीयता, सहज गत्यात्मकता अर प्रसंगानुकूलता सारू श्लाघनीय है। उल्थाकार हर ठौड़ इण बात रो खास ध्यान राखतो निगै आवै कै कठै ई भासागत पांडित्य रै कारण भावबोध में अवरोध नीं आवै, इण कारण आपरी भासा घणी सहज अर सरल बण पड़ी है। इण उल्थै नैं पढ़’र आ बात निर्विवाद रूप सूं स्पष्ट हुज्यावै कै डाॅ. देव कोठारी रो अध्ययन घणो गैरो है। जिण भांत रो प्रसंग उणी भांत री सबद-संपदा आपरी प्रतिभा नैं उजागर करै। पोथी में जठै-जठै जीवणमूल्य, नीति-अनीति, करणीय-अकरणीय, धरम-अधरम, सावळ-कावळ, असली-नकली अर भलै-भूंडै रै बिचाळै भेदक रेखावां खेंचण री जरूरत पड़ी है, बठै-बठै उल्थाकार री भासा और ज्यादा प्रबळता पकड़ती दीखै। बिना किणी भूमिका रै अेक दाखलो देखो-
अर थारो थांरो
ओ कैणो वाजिब नीं कै थारो भी म्हारो हुवै
पंथ लोभी लोगां रो अैड़ो कर्त ई कुतर्क है
इण काव्य में राज, समाज, आम अर खास मिनख, घर-परिवार, बिणज-बोपार, रिश्ता-नाता, आण-जाण, अंवळाई-संवळाई, करड़ा-कंवळा दिनां रो फेर आद विषयां माथै जिण भांत रो गहन चिंतन अर निरपेखी भाव सूं विचार करीज्यो है, वो बार-बार सराहीजण जोग है। म्हारो मानणो है कै ओ इण भांत रो काव्य है, जिणरी प्रासंगिकता कदैई कम नीं हो सकैला। जद ताणी मांनखो रैवैला, इण काव्य री प्रासंगिकता बणी रैवैला। हां! कुछ बातां कथा-रोचकता सारू कल्पनागत हुया करै, वां नैं पाठक आपरी दीठ सूं नितार करतां निरमळ भाव-जळ सूं आपरी तिरस बुझावै, इण बात री दरकार है।
आज च्यारां कानीं धरम अर पंथ रै नाम माथै बूकियां रै बटका भरणियां अर लोगां नैं भरमित करणियां झंडाबरदारां री पोल खोलण सारू ई इण काव्य में घणी मारकै री बात आई है, उल्थाकार देव कोठारी री भासा में ओ दाखलो देखण जोग है-
अैड़ा पचड़ां में पड्यो देस असांत व्हियो
ऊंच अर नीच री सोच भरमायो है
अैड़ी ओछी धारणां सूं दुखी हुई जनता
मोकळा ई फोड़ा भुगत्या, घर-बार फूंकीज्या वांरा
कुण लेवै लेखो-जोखो आम आदमी रै दुखां रो?
आज आयै दिन अखबारां में छोटी-छोटी असफलतावां सूं घबराय आत्मघात करण वाळां री खबरां बोहळायत में मिलै। कथानायक चारुदत्त भी आपरी भूलां नैं याद कर पिछतावै सूं भरेड़ो मरण-मारग अपणावण सारू उंतावळो हुवै पण उणरी समझवान घरनार मित्रावति उणनैं धीजो बंधावै अर जीवण-जुगत सिखावै। आज रै समाज में मिनख-लुगायां नैं ओ काव्यखंड जरूर पढणो चाईजै। उल्थाकार री भासा रो प्रवाह अर प्रभाव दोनूं देखो-
पिछतावै में पड़्यो वो बुलावतो हो मरण नैं
जोड़ायत मित्रावति बरज्यो, बंधायो उणनैं थ्यावस
‘सुणो, मरणियां सामी तो खुला पड़्या है सौ द्वार
कायरता अर पलायण आत्महत्या है हीण
जीवणो, जीयनै जीतणो है नीं होवणो है दीण
थांनै सद्मारग है आणो, थे हो घणां धीर।
छेवट आदरजोग देव कोठारी जी नैं इण पोथी सारू मोकळी मोकळी बधाई देवतां मायड़भासा राजस्थानी रा हेताळुआं सूं अरज करूं कै टेम निकाळ’र इण देसी काव्य रो रसास्वादन करो। इण पोथी री कथा अर पात्रां रा चरित्र इण भांत रा है कै आ पोथी पाठ्यक्रम लगाई जावै तो आपणी भावी में संस्कार, समरपण, धीरज, समन्वय अर सहकार रा भाव पनपावण अर विगसावण में मोटो स्सारो मिलैला। म्हैं आस करूं कै इण भांत रा ग्रंथां रा उल्था राजस्थानी री साहित्य-संपदा में उल्लेखणजोग बधेपो करैला। अस्तु।
~~डॉ. गजादान चारण “शक्तिसुत”
‘साकेत’ केशव काॅलोनी
स्टेशन रोड़, डीडवाना
जिला-नागौर (राज.) 341303
ईमेल- shaktisut@gmail.com
संपर्क: 9414587319
पुस्तक परिचय –
चारु वसंता (कन्नड़ काव्य) मूळ कवि :- नाडोज ह.प.नागराज्या
राजस्थानी उल्थाकार :- डाॅ. देव कोठारी
प्रकाशक :- हिमांशु पब्लिकेशन्स, उदयपुर
प्रकाशन वर्ष :- 2017