मारवाड़ रो इतियास पढां तो एक बात साम्हीं आवै कै मारवाड़ रा चांपावत सरदार सामधर्मी सबसूं ज्यादा रह्या तो विद्रोही पणो ई घणो राखियो यानी रीझ अर खीझ में समवड़। मारवाड़ में चांपावतां नै चख चांपा रै विरद सूं जाणीजै। जिणांनै कवियां आंख्यां री संज्ञा दी है तो बात साव साफ है कै उणां आंख्यां देखी माथै ई पतियारो कियो-
आंख्यां देखी परसराम, कबू न झूठी होय। अर जठै हूती दीठी उठै राज रा सामधर्मी रह्या अर जठै अणहूती दीठी उठै निशंक राज रै खिलाफ तरवारां ताणण में संकोच नीं कियो।
मारवाड़ माथै आई आफत रै निवारण सारू चांपावत आगीवाण रैया। कवि सतीदानजी बारठ लोल़ावास कह्यो है–
करै प्रथी बाखाण राव धिन धिन कहै,
खल़ी ले पांण दस-दोय खांपां।
राज आगै अगै दल़ छल़ राखियो,
चली फोजां बिचै राव चांपां।।
इण पेटे आपां चांपावतां रै ठिकाणां आऊवा, पोकरण आद रो इतियास देखां तो बात साव साफ है कै अठै रा ठाकर राज रा उतैतक ई हिमायती रह्या जितैतक उणां री कुल़ परंपरा, स्वाभिमान अर जमीर नै किणी नीं ललकारियो।
स्वाभिमान अक्षुण्ण राखण री सीख अर आपरै बडेरां सूं मिली। प्रजा हित में मारवाड़ राज रो त्याग करणिया गोपालदासजी चांपावत सूं लेय’र सवाईसिंहजी, खुशालसिंहजी तक री ऊजल़ परंपरा इण बात री साखीधर है कै चांपावतां
तब लग सांस शरीर में, जबलग ऊंची तांण।
में विश्वास राखियो अर जन आशा नै पूरण सारू घर बाल़’र तीरथ करणिया सिद्ध हुया।
इण पेटे आपां पोकरण रै चांपावतां री जाणकारी लेवां तो देवीसिंहजी, सबल़सिंहजी अर सवाईसिंहजी तीन प्रभावशाली नाम मिलै जिकां मारवाड़ रै इण कैताणो नै सिद्ध कियो कै रिडमलां थापिया जिकै राजा।
मतलब इणां आपरी वार में मारवाड़ शासन में पूरी दखल राखी। पोकरण ठाकुर देवीसिंहजी री मदत सूं बखतसिंहजी नै राज मिल्यो। जद बखतसिंहजी रो सुरगवास हुयो जणै उणां रा बेटा विजयसिंहजी राजा बणिया। विजयसिंहजी, देवीसिंहजी सूं ईढ राखण लागा। वै इण ताक में हा कै कद मोको मिलै अर कद देवीसिंहजी सूं घात करी जावै। देवीसिंहजी ई सचेत रैता पण एक दिन जोग बणियो कै विजयसिंहजी रा गुरु आत्माराम री मोत हुयगी। जणै विजयसिंहजी सोग रो नाटक कियो। जद देवीसिंहजी, रास ठाकुर केसरीसिंहजी, इणां रा कुमार दौलतसिंहजी अर आसोप ठाकुर छत्रसिंहजी रै सागै महाराजा सूं मिलण आया। महाराजा इण च्यारां नै धोखै सूं मरा दिया। इण कृत्य री निंदा करतां किणी चारण कवेसर कह्यो-
केहर देवो छत्रसी, दल्लो राजकुमार।
मरतै मोडै मारिया, चोटी वाल़ा च्यार।।
महाराजा रै कृत्य री निंदा दादूपंथी कवि ब्रह्मदासजी बीठू ई आपरै एक गीत में करी है-
जुद्ध री धार सोहिये पूतारसो भड़ां जठै,
भूप रो पोतरो घणो चितारसो भूप।।
ओ गीत सुण’र महाराजा तिलमिलायग्या अर कह्यो कै-
बा ! साधू हुयग्या तो ई चारणपणो नीं गयो।
देवीसिंहजी रै टीकै सबल़सिंहजी बैठा। सबल़सिंहजी ई नखतधारी मिनख हा। उणां विजयसिंहजी नै कदै ई माफ नीं किया पण कुजोग सूं 24वर्षां री उम्र में इज सुरगवास हुयग्यो।
सबल़सिंह रै टीकै सवाईसिंहजी बैठा।
सवाईसिंहजी सबल़सिंघोत
डांगरी रै भाटियां रा भाणेज।
नाहरसिंहजी भाटी री बेटी सूरजकंवर री कूख सूं जलमिया सवाईसिंहजी आंकधारी मिनख हुया। किणी कवेसर कह्यो है–
पुत्र सबल़ेस रो सबल़ भड़ मारको
हाड में डांगरी करै हेला।
टीकै बैठां पछै जद सवाईसिंहजी महाराजा सूं मिलण गया। उण बखत विजयसिंहजी टाबर ठाकुर नै लडावतां कह्यो कै-
“थारा हाथ तो छोटा घणा है!”
आ सुण’र उण बाल़ै ठाकुर कह्यो कै-
“हुकम! इण हाथां री जिकै रै लागैला उणनै ठाह पड़सी!”
एकर तो दरबार चमक्या पण पछै पाछो पूछ्यो कै-
“जिकी कटारी रै पाण थारा बाप-दादा कैता रह्या है कै-
‘इण छोटीक पड़दल़ी (कटारी) में जोधपुर रो राज समावै। म्हे चावां जिणनै थापां अर चावां जिणनै उथापां!’ उवा कटारी हमे थारै गुढै है या नीं?”
आ बात सुणतां ई सवाईसिंह जिकी बात कैयी। उणांनै आखरां में पोवतां किणी चारण कवि एक गीत लिख्यो। जिको अविकल रूप सूं इण भात है–
कह्यो विजै महाराज सुण सवाई दे करण,
मैं कही बात छै याद मांही।
पड़दल़ी मांहे गढ केई मावे परा,
नरिंद वा कटारी छै क नाही।।
सवाईसिंह सूं विजयसिंह पूछ्यो कै हे सवाई!कान देय’र बात सुण म्हनै एक बात याद है कै थारे बडेरां एक कटारी ही जिणमें केई गढ मावता। हमे उवा कटारी थारै गुढै है का नीं?
पूछियो नाथ जद साच कहियो परो,
कटारी जिकण सूं प्रथी कांपी।
सौंप वा कटारी देवसा सबल़ नै,
सबल़ वा कटारी म्हनै सांपी।।
जद जोधाणनान पूछ्यो तो सवाईसिंह साच कैयदी कै जिण कटारी रै तेज सूं पृथ्वी कांपती उवा कटारी वंश परंपरा में देवीसिंह, सबल़सिंह नै अर संबल़सिंस म्हनै सूंपी।
मूझ री कमर में रहै वा सदामंद,
निमख मेलू नहीं घणो नेहा।
पड़दल़ी मांय गढ केई मावै परा,
जोधपुर अनै जालोर जेहा।।
सवाईसिंह कह्यो कै उवा जद सूं कटारी सदैव म्हारी कमर में बंध्योड़ी रैवै। म्हनै उण कटारी सूं इतरो लगाव है कै म्हैं लेशमात्र वेसलो नीं दूं क्यूंकै उण कटारी में जोधपुर अर जालोर तो समावै ई समावै भल़ै ऐड़ा बीजा ई गढ समावण री ऊरमा है।
साच कहियां थकां स्यांम रीसावस्यो,
कहे वा बात साची कहायो।
पड़दल़ी मांय जे न हुतो जोधपुर,
आपरै कहो किण रीत आयो?
आगै सवाईसिंह कह्यो कै हुकम! जे म्हैं साची-साची केयदूंलो तो आप भल़ै रीसावोला। क्यूंकै आ साच बात सगल़ा जाणै कै जे इण कटारी में जोधपुर नीं हुवतो तो पछै आप कनै किण रीत सूं आवतो।
कटारी जगत में प्रगट चांपो कहै,
नाथ वा पड़थल़ी नहीं नांनी।
सवाई बात री भरोती दीध सह,
महीपत विजै सो साच मानी।।
कटारी रै बाबत चांपावत यानी सवाईसिंह कैवै कै इण कटार री कीरत तो चावी है। धणियां आ कटारी छोटी नीं है। इतरी सुणियां उठै बैठे बीजां ई सवाईसिंह री बात री साख भरी तो विजयसिंहजी ई इण बात नै साच मानी।
विजयसिंहजी सूं जिण किणी ठाकुर स्वाभिमान सूं बात करी। विजयसिंहजी उणनै प्रताड़ित करण में कोई कसर नीं राखी। स्वाभिमान रै कारण ई विजयसिंहजी आऊवा ठाकुर जैतसिंहजी नै धोखै सूं मराय’र लाश पिछवाड़ै न्हाखयदी अर दाह संस्कार करवावण सूं सगल़ां नै मना करायदी। उण बखत सवाईसिंहजी 15-16वर्षां रा इज हा, उणां दाह संस्कार कियो। महाराजा, सवाईसिंहजी रै रोस अर जोस रै आगै चुपी छालली। हालांकि दादूपंथी ब्रह्मदासजी बीठू इण कुकृत्य री निंदा में एक गीत कह्यो-
कियां हमल्लां दिल्ली रै नाथ सतारा सूं खूर हकै,
कराल़ां बाजतां जागी बापूकारा केत।
राखणो छो जतन्नां सूं मारणो न हूतो राजा,
जेणवारा फोजां माथै हाकणो छो जैत।।
विजयसिंहजी रै पछै भीमसिंहजी राजा बण्या। उणां रो व्यक्तित्व कोई प्रभावशाली नीं हो। क्रूरता, घमंड, बदसलूकी आद अवगुण उणां में कूट-कूट’र भर्योड़ा हा। उणां केई ठाकुरां नै नाराज किया तो अपमानित ई किया। आ ई नीं उणां अकारण चारणां माथै ई च्यार लाख रो जुर्मानो लगायो। उण बखत सवाईसिंहजी राज में मुदमुख हा। उणां रा बडेरा चारणां सदैव हिमायती रैया सो उवै जाणता कै चारण मदत री आस में सवाईसिंह कनै अवस आसी। इण कारण उणां मना करायदी कै कोई चारण जुर्मानो भरण सूं पैला म्हारै सूं नीं मिलेला। पण लभजी पातावत (बाजोली चारणवास) हूंस कर’र झारीदार रै छदम रूप में हाजर होय अकारण जुर्मानो माफ करावण री अरज रो एक गीत कह्यो। बढ्योड़ा भल़ै बढै री गत सवाईसिंहजी जुर्मानो आपरै खजानै सूं भर’र चारणां नै फाड़गत दी। गीत रो दो द्वाला–
सुणजै इक अरज रिड़मलां सूरज,
सकवी आखै क्रीत सबै।
मुरधर मुलक बचायो मारू,
आगाहटां बचाय अबै।।
सबल़ावत जाणग बुद्ध सागर,
वीदग वरण तणो दुख बाढ।
चांपावत जीवाया चारण,
चांपां विरदां धज चाढ।।
सवाईसिंहजी रै इण ओसाप रै प्रति कृतज्ञता दरसावतां मेहरेरी रै किणी चारण जोधाण धण्यां रै चारणां रै प्रति नाराजगी अर चापावतां री हिमायती रै भाव रै एक गीत में लिखै–
तीसरी बार भीमेण नृप ताकवां,
रीस री कैद फरमाण राल़ी।
उदक चित चाहेवा सांसण दीय अड़सठां,
पखां पर सवाई प्रीत पाल़ी।।
सवाईसिंहजी भलांई जोधपुर में एक बखत में सर्वेसर्वा रह्या हुसी पण उणांरै अंतस में जोधाण धण्यां रै प्रति नफरत रा भाव कम नीं हुया। आपरै बाप-दादै रै साथै हुयै अन्याय नै रीसटी ठाकुर भूल नीं सक्यो। इणांरै मनमें भांजघड़ हुवती रैयी। जोग सूं भीमसिंहजी रो सुरगवास हुयां मानसिंहजी पाट बैठा पण सवाईसिंहजी, मानसिंहजी नै ई सोरो सास नीं लैवण दियो। उणां तोतक रच’र आ बात तय करायदी कै भीमसिंहजी री राणी देरावरजी पेट सूं है अर जे उणांरै कुंवर हुयो तो पाट उवो ई बैठसी। सेवट सवाईसिंहजी आ बात फैलाई ई नीं पक्की ई करायदी कै भीमसिंहजी रै बेटो हुयग्यो जिणरो नाम धोंकल़सिंह है। सवाईसिंहजी, जयपुर, बीकानेर, रै साथै ई केई ठीकाणां नै आपरै प्रभाव में लेय मानसिंहजी री रोटी हराम कर दीनी। एक बखत तो ऐड़ो आयो कै जयपुर अर बीकानेर सवाईसिंहजी री डोर हालण लागा। जणै किणी कवि कह्यो-
चापा थारी चाल, नर अवरां आवै नहीं।
बहै बीकाणो लार, जयपुर बहै जलेब में।।
जगतो कीनो बांदरो, सुरतो कानां लंग।
मारवाड़ रा भोमिया, रंग सवाई रंग।।
पण शिवदानजी बारठ नै सवाईसिंहजी रो सामविद्रोह भायो नीं जद उणां ओल़भो देतां लिख्यो–
करी मेड़ता छात अत बुरी कुंपावतां।
पतिवरतां छोडि चहुंवाण पल़टावतां।
मारवाड़ चढी अणी मिल़ि जावतां।
चूकिया बलू री चाल चापावतां।।
सवाईसिंहजी आपरी कूटनीति, साहस, स्वाभिमान रै पाण मारवाड़ राज में तड्डी मचाय दी। मानसिंहजी इतरा आंती आयग्या कै उणां लागण लागो कै जे सवाईसिंह रो जाबतो नीं कियो तो जोधपुर हाथ सूं निकल़ सकै। मानसिंहजी, सवाईसिंहजी साथै घात करणी तेवड़ी अर मीरखां सूं गुप्त समझौतो कियो। मीरखां, महाराजा सूं कूड़-मूड़ लड़ाई रो सांग कर’र आ खबर फैलावण रा जतन किया। अठै इज सवाईसिंहजी री चूक हुयगी। उणां मीरखां कनै आदमी मेल कैवायो कै-
“म्हांरी मदत करो। म्हे थांनै थारी शरत मुजब खरचो भर दां ला।”
मीरखां तो इतरी इज चावतो हो। उण आगै री वारता सारू सवाईसिंहजी नै नागोर तारकीन री दरगाह में बुलाय बातचीत करण रो नाटक हुयो।
मीरखां अर सवाईसिंहजी रै बिचाल़ै धरमधीज हुयो। मीरखां सवाईसिंहजी नै भरोसो दिरावण सारू कुराण माथै हाथ देय सोगन खाई। जणै सवाईसिंहजी नै पतियारो आयो।
पछै मीरखां किणी बात रो ओल़ावो लेय मूंडवो गयो परो अर उठै गोठ रो निमतो देय ठाकुरां नै इ बुलाया। सवाईसिंहजी उठै गया परा। उठै मीरखां सवाईसिंहजी सागै धोखो कियो अर शामियाने री डोर्यां कटाय तोपां घुराई जिणसूं सवाईसिंहजी, ग्यानसिंहजी पाली, केसरीसिंहजी बगड़ी अर बगसीरामजी चंडावल़ काम आया। मीरखां च्यारां रा माथा बोरी में घाल’र जोधपुर पूगता किया। जठै मानसिंहजी आदेश दियो कै आं माथां री दड़ियां बणाय’र रमियो जावै पण आऊवा ठाकुर बखतसिंहजी ज्यूं-त्यूं करनै दाग दिरायो। मानसिंहजी मिनख पारखू हा सो उवै घाव तो बैरी रो ई सरावणो चाहीजै री बात में विश्वास राखता। इणी कारण उणां सवाईसिंहजी रै स्वाभिमान अर सूरमापणै नै चितारतां लिख्यो–
मरत सवाई मूंडवै, सह मरग्या इक साथ।
नर एकण बिन नीसरी, नरां घणां री नाथ।।
मुरधर हुयगी मोडकी, धर पड़तां धैधींग।
नर लेगो नवकोट रा, सींग सवाईसींग।।
सवाईसिंहजी नै इयां धोखै सूं मरावण री तत्कालीन समाज घणी निंदा करी। कवियां लिख्यो कै जे मीरखां दांई सवाईसिंहजी नै तोत करण री आदत हुवती तो मींयां री कांई गत हुवती?–
मींयै दीनी मीरखां, कमंधां बीच कुराण।
रया भरोसै राम रै, (नींतर), पड़ती खबर पठाण।।
उण बखत मारवाड़ रै ठाकुरां में सवाईसिंहजी रै समवड़ प्रभावशाली ठाकुर बीजो नीं हो। इणांरै प्रभाव नै रेखांकित करतै किणी कवि सटीक ई लिख्यो है-
जिकण सवाई आणियां, मिसल सवाई होय।
सुत आयां सबल़ेस रा, गंजन सक्कै कोय।।
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी