रोटी चीकणी जीम लैणी पण बात चीकणी नीं कैणी री आखड़ी पाल़णिया केई कवेसर आपांरै अठै हुया है। आपां जिण बात री आज ई कल्पना नीं कर सकां, उवा बात उण कवेसरां उण निरंकुश शासकां नै सुणाई जिणां रो नाम ई केई बार लोग जीभ माथै लेवता ई शंक जावता।
ऐड़ो ई एक किस्सो है महाराजा जसवंतसिंहजी जोधपुर (प्रथम) रो।
जद मुगल पातसाह शाहजहां रै बेटां में उत्तराधिकार रै अधिकार नै लेय घमसाण मचियो अर उजैण रै पाखती धरमात रै मैदान में दाराशिकोह अर ओरंगजेब री सेनावां आम्हीं-साम्हीं भिड़ी। उण बखत पातसाही सेना रा मांझी महाराजा जसवंतसिंहजी हा। ओरंगजेब महाराजा नै कैवायो कै क्यूं फालतू में थे म्हारै सूं अदावत बधावो पण महाराजा मानिया नीं अर धरमात रै मैदान में रण हुयो जठै राठौड़ घणा गारत हुया जिणांमें मोटो नाम रतनसिंहजी रो है। जद जोधपुर रै केई ठाकुरां नै लागो कै बाजी महाराजा रै हाथ सूं निकल़ रैयी है तो उणां महाराजा नै रणांगण छोड जोधपुर पधारण सारू प्रेरित किया। आ बात महाराजा रै हाडोहाड बैठगी। ‘राठौड़ री ख्यात’ में लिख्यो है–
“तरै महाराजा रा उमराव राठौड़ आसकरण, राठौड़ महेशदास महाराजा रै घोड़ै री बाग झाल मांडाणी महाराजा ने ले नीसरिया।”
सेना रो धणी मैदान छोडै! अर धण्यां विहूणी सेना में लड़ता कितरा ई जोधपुर वीर वीरगत वरी। आ बात केई कवियां नै खल़ी। महाराजा रै इण अजोगतै काम माथै केई कवियां व्यंग्य कस्यो जिणांमें नरहरिदास बारठ रो नाम प्रमुख है। उणां लिख्यो कै–
महा मांडियो जाग ऊजेण खागां मधै,
रुदन बिलखावती रही रोती।
हेल़वी अमर री हीय करती हरख,
जसा अपछर रही वाट जोती!!
उजेण में जुद्ध रूपि असिधारा रै बिचाल़ै महाजग (विवाह) रचियो। हे जसवंतसिंह! थारै मोटै भाई अमरसिंह रै हिल़ायोड़ी अपछरावां जुद्धभोम में थारै वीरगत वरियां थारो वरण करण सारू उमंगती उठै आई पण थारै जुद्धभोम त्यागण सूं बिचारी वाट जोवती इज रैयगी।
किया काचा उबर सूरहर कुल़ोधर,
डरत गत न पीधो फूलदारू।
वडां री भोल़वी हूर आवी वरण,
मेलती गई नीसास मारू।।
हे सूरसिंह रा पोता ! अर गजसिंह रा पूत तूं तो इतरो काचो पड़ग्यो कै जुद्धभोम में अपछरावां रै हाथां आसव प्यालो होठां लगावण रो कोड त्याग दियो। बापड़ी अपछरावां ई अमरसिंह रै भोल़ावै तनै वरण आई पण थारै जुद्धभोम में नीं रैवण सूं नीसासां न्हाखती पाछी बुई गई।
पाटवी हेल़वी बेगमे पेलकै,
ते समै ऐलकै कीधा टाल़ा।
पाखती रतन नै दलो परणीजतै,
वाट जोती रही गजन वाल़ा।।
पैलकै तो पाटवी अमरसिंह अपछरावां नै वरण रै हेवा कर दीनी जिणसूं ललचाई उवै हमकै ई आई पण आगै पाखती दलपतसिंह अर रतनसिंह रो ब्याव तो हुय रह्यो हो पण तूं जुद्धभोम सूं आंखटाल़ो कर बहीर हुयग्यो जिणसूं उवै थारी वाट जोवती ई रैयी।
जे तो विमाह री वाट जोती जगत,
रूक वल़ त्रासियो गयो राजा।
मराड़ी जान घर आवियो मांडवै,
तेल चढी रही अछर ताजा।।
पूरो जगत जाणतो कै तूं अवस वीरता बतासी अर्थात तरवार री तिरस मिटासी पण तूं तरवार री तिरस मिटायां बिनां ई गयोपरो। तूं जान नै मराय’र घरै आयग्यो। बापड़ी जोबनछकी अपछरा तेल चढी ई रैयगी।
नरहरिदासजी जान मराय’र अर्थात सेना रो गारत कराय घरै आवण सारू जिणगत ओल़भो दियो उणीगत किणी दूजै चारण कवि आऊवा ठाकुर महेसदासजी सूरजमलोत जिकै उम्रदराज हा तो इणीगत आसकरणजी नींबावत ई उम्र रै सातवैं दसक में हा नै ओल़भो देतां कह्यो कै-
महाराजा भल आविया, सुबस बसावो देस।
जंबुक ऐ क्यूं जीविया, आसो अमर महेस।।
महाराजा तो रणांगण छोड आयग्या तो कोई बात नीं अजै आंरी उम्र देश में नै सुबस बसावण री है। पण ऐ स्यायल़ियां सेना मराय’र कांई खातर जीवता आया है ? आंरै कांई मन में रैयी?
उण कवि री निर्भीकता नै नमन जिण महाराजा अर महाराजा रै प्रधान महेशदासजी नै इतरी खरी अर खारी सुणाय आपरी अडरता अर संवेदनशीलता दरसाई।
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी