
डोकरी – गज़ल
नरपत आसिया “वैतालिक”
बैठी घर रे बार डोकरी!
किणनें रही निहार डोकरी!
हेत हथाई अपणायत री,
टाबर रे रसधार डोकरी!
बाल़कियां री हरपल़ बेली,
बण बाघण खुंखार डोकरी!
धीणां, डांगर, प्हैला आंगण,
राख नीरती न्यार डोकरी!
हतौ डोकरो हाजर उण पल़,
सजिया घण सिंगार डोकरी!
करै पारकी बस पंचायत,
खरी भर्योडै खार डोकरी!
डरा प्हैल बहुवां धमकायी,
इण बोथी तलवार डोकरी!
आज भलै सत्ता पलटांणी,
रही कदै सरकार डोकरी!
ठाकर द्वारै बैठ सदाई,
करती जै जै कार डोकरी!
उदर राखिया जिणनें वांनैं,
आज लगै है भार डोकरी!
जम सूं पण जा जो भिड जाती,
अपणों सू गी हार डोकरी!
बैठी घर रै बार उडीकै,
यादों रा असवार डोकरी!
‘नरपत’ री पत राखण वाल़ी,
सगत वड़ी संसार डोकरी!
गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”
थाकी बैठी आज डोकरी।
राखी घर री लाज डोकरी।।
वडकां बांधी, भुजबल पोखी।
काण कायदै पाज डोकरी।।
कदै नवेली दुलहण आंगण।
होती ही सिरताज डोकरी।।
कदै रूप भंमराता भंमरा।
पिव रो होती नाज डोकरी।।
सावण सुरंगी तीज लागती
भादरवै री गाज डोकरी।।
खाणो, पीणो, गाणो, रंजण।
इकडंकियो घर राज डोकरी।।
राजा राणी कितरी काणी।
हरजस वाणी साज डोकरी।।
साजै-मांदै आंणै-टांणै।
सबरै हाजर भाज डोकरी।।
समै देख फसवाड़ो फोर्यो।
खुद घर झेलै दाझ डोकरी।।
खुन पसीनो पायर पोस्या।
वां कीनी बेताज डोकरी।।
बहुवां देख सिकोतर आई।
बेटा बणिया बाज डोकरी।।
हाथ माथै नैं दे पिसतावै।
कर अपणो अक्काज डोकरी।।
सब रा ओगण देख विसारै।
डॉ गजादान चारण “शक्तिसुत”
हाथां पकड़्यो भाल डोकरी
मोडा खाग्या माल डोकरी
हेत जताकर जमीं हड़प ली,
फंसी कुजरबी चाल डोकरी।
घर रा कागद गेणै मेल्या,
घरकां ओदी घाल डोकरी।
लाव निकळगी पग हेटै सूं,
पछै पड़ी पड़ताल डोकरी।
हिरण्यां हाथी कीर हारता,
सालै हिय बै साल डोकरी।
हाण हट्यां पछ लाण बण्योड़ी
बैठी माथो झाल डोकरी।
नुगरा जीम्या बिण नूंतै ई,
गया बजाता गाल डोकरी।
बेटो मौन, बहू रा गाड़ा,
झिलै जीता दिन झाल डोकरी।
कलजुग रै कुड़कै फंस कढगी,
खड़्ये ना’र री खाल डोकरी।
निकळ्या नाजोगा घरवाळा,
पण तूँ रही दयाल डोकरी।
प्रीत दया परतीत पखै तूँ
मुलकां बणी मिसाल डोकरी।