चित्तौड़ !
इण धरती रो सिरमोड़ !
ईं नीं बाजै है!
इणरै कण -कण में है
स्वाभिमान री सोरम
सूरमापणै री साख
जिकी नै राखी है मरदां
माथां रै बदल़ै!
रगत सूं सींचित
उण रेत रै रावड़ -रावड़ में
सुणीजै है अजै ई मरट रै सारू
मरण सूं हेत रा सुर!
मरणो ! तो अठै रै मरदां रो खेल है
जिणनै ऐ रमता ई रैया है
मात रो गौरव मंडण नैं
इसड़ी ई तो रमी ही रामत!
पदमणी रमझमती
झांझर रै झणकारां
खांडां री गूंजती खणकारां में
स्वाभिमान रै सारू
करण नै मुल़कती
अगन रै साथै अठखेलियां
सांईणी सहेलियां रै चित सुचंगै सागै।
उतरी ही गुमर सूं
सगल़्यां रै आगे
गल अमर राखण नै
सूरज री उगाल़ी सागे
देवण नै अरघ सतवट सूं
कुल़वट री आण
पुरखां रो माण
शान सायब री
अंतस में समायां
धम-धम पगला धरती
डमरती रजवट री रीत
जीत ! जसनामो रचण नै
सतेज ! जोयो सूरज रै साम्हो
अर बोली
हे भल़हल़ता भाण!
आभै रा वासी!
उपासी सतवट रा
बणजै साखी
म्हारी रजपूती रो!
मन री मजबूती रो!
साहस अर सपूती रो!
दीजै समचो जगत नै!
कै
एक रजपूतण
कीकर दीधो है अरघ !
आपरै पावन रगत सूं।
इतरी कैय
बा रचण नै चरित्र चित्तौड़ रो,
उतरगी सूरज री साख में
धधकती झाल़ां में झूलण(नहाना)
विसरगी आपो अणहद आणद में
लपटां रा लहरां में
लहरां लेवती!
बा झूली जौहर री जगमगती झाल़ां में
अर बे झल़हल़ती झाल़ां
करण लागी बंतल़
भल़हल़ते भासंकर सूं
कै हे अरक!
साची बताजै
कै
थारै उजास सूं
कांई तन्नै कमती लागे है?
कठै ई पदमण रो प्रकाश!
नीं!,सूरज बोलियो
म्हारै समवड़ ई है
इण नार रै सत रो सतेज
जिणमें पतिव्रत रो प्रकाश सवायो है!
जितै तक जीवैला
इण धर माथै
सत-पथ बैवण वाल़ी
सुघड़ नारियां
उतै तक ओ प्रकाश!
नीं बुझेला!
नीं बुझेला!!
~गिरधर दान रतनू “दासोड़ी”