Mon. Nov 25th, 2024

आजादी री ओट अठै।
पल़र्या देखो झोट अठै।
अभिव्यक्ति री ओट ओल़ावै,
पसर रही नित खोट अठै।।

भाषा रो पोखाल़ो कीनो।
संस्कृति नै पाणी दीनो।
भरी सभा में भलां देखलो,
शिशुपाल़ रो मारग लीनो।।

घट घट में खोब्योड़ी घातां।
भल़ै देख उर न्यारी भांतां।
पाड़ोसी रा पूत लडावण,
विटल़ करै नित विल़ली बातां।।

खोटा देव मुखौटाधारी,
करै बजारां थारी म्हारी,
बोल्या जद-जद देख भलांई,
खुली चांच निकल़ी चिणगारी।।

धरम धड़ै नै धारै नै धूरत।
भारत री मेली कर मूरत।
मगरमच्छ रा आंसू भाई,
निरख डराणी सांप्रत सूरत।।

शुकनी भांत चलावै गोटी।
पोथी ऊंध पढावै घोटी।
लासां ऊपर दिन धोल़ै रा,
सेकर्या खल़ अपणी रोटी।।

संविधान री सौगंध खावै।
उणरी धजियां देख उडावै।
राष्ट्र प्रतीकां चीर हरण कर,
दुरजनिया निरभै हरसावै।।

म्हारै समझ अजूं ना आई!
हुड़दंगिया किणरै पख भाई?
मोल मजूरी करै पीठ लद,
घातां सूं मरर्या है लाई!!

देश हितां रै लगा अल़ीतो।
करर्या थाती नीच बल़ीतो।
डरूं-फरूं जन बीच बजारां,
हांफल़ियोड़ी गल़ी गल़ी तो।

बौद्धिकता रो धार्यो बानो।
दीसै अकल गुढै नीं आनो।
खपै देश री बणी एकता,
बिखरावण नै तानो-बानो।।

लोकतंत्र री देय दुहाई।
मंचां माथै लोग लुगाई।
आवै देख अचंभो ओ ही,
नहीं मानवा सौगंध खाई।।

देशहितां पर रमर्या बाजी।
नाग-नेवलो राजी-राजी।
टोटी देख ताफड़ा तोड़ै,
उखड़्या अठै जमावण पाजी।।

~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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