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सहरां री चकाचौंध सूं,
साव अजाण्यो,
धोरां मगरां
डगरां डगरां
राख छाणनै पाणी छाण्यो।
हेली रै हलकारै
जिथिये,
निरभै रैवण
बोल सांभल़्यो,
तंदूरै रा तार ताणिया,
गाय वाणियां
रात गुजारी,
माटां माथै डाका दे नै,
पाबू रा परवाड़ा गाया,
आखर-आखर तोल-तोल नै
मिनखपणो अरथायो भाई!
दीनहीन री वाहर जाहर,
जिकां आपरो जोबन गाल़्यो,
पण पाल़्यो ऊंची पण ताणी
रगत पसीनो देयर ज्यां तो
राख लियो आंख्यां रो पाणी
मरण तेवड़्यो
परण छोडनै
बिनां लाभ रै
जीबाछल़़ री पत रै सारू
गारत हुयग्या,
जिण मिनखां रो
सुजस बांचियो बातां
ढल़तोड़ी मांझल़ पण रातां,
कीनी कितरी काल़ी
जाल़ी इण दुनिया रै साम्हीं
गांतां-गातां नींद विसारी,
गाल़ दीवी जिंदगाणी सारी
नहीं सोचियो
भोल़ा भाई
बुद्धि नै वपराई नाहीं
किणरै आगै आंख्यां मींचै?
किणरै आगल़ भोला-भंगर?
संस्कृति रो वड़लो सींचै?
किणरै आगल़ ताणै तूं तो
तार वीण रा?
कवण सुणै आ मरम-धरम री,
बातां सारी लगै भरम री
ठौड़ काल़जै धरिया भाठा,
अबै मानलै म्हारा मेल़ू,
मिनख बुआ ग्या
रैयग्या भाठा
ज्यांरै आगल़ राग उगेरै
कुण रीझै नै कवण पसीजै
काल़जियै री
कूक सुण कुण?
किणरा भीजै कोर आंख रा,
कुण दे धीजो धीठ सभा में,
किणरै रूंवा साच वापरै,
इण मारग रो है अभरोसो
राग भलांई
मीठै गलवै
अणभै गा तूं,
कूड़ा माथा हिला-हिला नै,
छल़िया देसी तनै हंकारो
पण पाबू रा अभल़ेखा भांगण
कुड़ कपट रा पंगला छांगण,
जागणियो जोरावर भाई,
पहर लंगोटी
कोइक गांधी
इण आंधी रै गैंतूल़ा साम्हीं
थाम आंगल़ी थारी लाला
मानवता री राग गावसी,
अरक ऊगसी साच आकरो
जिणरै तपबल साच मानजै
धूरतियां रा कोरा-मोरां,
बल़ जासी ऐ भींट भींटोरा
मानवता रो नूर
निखरसी
जदै बिखरसी
राग गगन में
थारी-म्हारी
सिरोल़ै सतरंगियै तारां
सांझ सवेरै
नाडी वेरे
नीर पल़ीडै
एकलमेकल
हांती-पांती,
सदा संगाथी,
होय बैठसां
एक पांत में
एकी जाजम
गांम गवाड़ां
थान मुकामां,
उण दिन सुणसां
खुल्लै कानां
ऊंडै अंतस,
पाबू रा परवाड़ा,
पींपै, रामै
हरबू, गोगै जोगै री गल्लां
भल्लां भल्लां करनै
गांधी री मूरत रै आगै
मानवता री वाणी
गावांला एको बाणी,
भोर सुहावणै
झलहल़ जोतां
धूरतियां रै जोतां-जोतां।

~गिरधरदान रतनू “दासोड़ी”

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