गढ सिंवाणा नै समर्पित-
इल़ भिड़ करबा ऊजल़ी,
चढिया रण चहुंवांण।
बिण सातल रो बैठणो,
सदा रंग समियांण।।1
खिलजी रो मद खंडियो,
सज मँडियो समियांण।
कट पड़ियो हुयनै कुटक,
चढ कटकां चहुंवाण।।2
सातल साहस सधरपण,
अडर दल़्या अरियांण।
कर जसनांमो कोम रो,
बैठ्यो अछर विमांण।।3
धर मंडी मंडियो धरम,
कर मंडी किरपांण,
जस झंडी फरहर जगत,
सातल गढ समियांण।।4
सातल जिम ही सोमसी,
भुई हुवो कुल़भांण।
जाहर रण में जूंझनै,
चाढ्यो जल़ चहुंवाण।।5
एकर फेरूं ऊजल़ो,
कियो कमध कलियांण।
मद अकबर रो मेटियो,
सज बंकै समियांण।।6
धूंसण अकबर धूतपण,
सेन मेली समियांण।
तदै झली तरवारियां,
कमध निडर कलियांण।।7
ऊदल अकबर मेलियो,
जिको पखै निज जांण।
कीधो सर उणनै कल्लै,
सुजड़ां बल़ समियांण।।8
सूर करी समियांण नै,
पाधर भिड़ै पवीत।
अडर कल्लै रा है अखी,
गहर सुजस रा गीत।।9
अमर कल्लो रहसी अवन,
गया जवन हुय घांण।
जिम ही रहसी जगत में,
सो चावो समियांण।।10
बातड़ियां धर वीरता,
जद जद सुणां जरूर।
आंणै कव तो ऊपरै,
गढ समियांण गरूर।।11
~गिरधरदान रतनू दासोड़ी