सूरज जद स्याह अंधेरी सूं,
रंग-रळियां करणो चावै है।
चांदै नैं स्यामल-रजनी रै,
आँचळ में आँणद आवै है।
इसड़ी अणहोणी वेळा में,
होणी रा गेला कद दीखै।
कहद्यो अै तारा टाबरिया,
कुणनैं देखै अर के सीखै?
बरगद री बातां बतळातां,
विकराळ काळजै झाळ उठै।
काची कळियां पर काळोड़ी,
निजरां देखां जद काळ उठै।
पौधा किम पनपै पिरथी पर,
बरगद बुरडोजर आवै है।
अै धरम-मरम रा सौदागर,
परकत रो राज चलावै है।
कांटा लाग्योड़ी लाणी ले,
आ भेड जीवै ही जियां-तियां।
टिचकारी सुणतां टुरी सदा,
रुकगी बुचकारी सुणी जियां।
पण आज गाडरां पिछतावै,
बसक्यां फाटंती खोल राज।
जिणरै हाथां ही रखवाळी,
प्रतपाळी ल्याळी बण्या आज।।
आ नदी सदीनी बहती ही,
सगळां नैं नेह लुटाती ही।
मरजाद सिखाती जन-मन नैं,
सागर सूं मिलबा जाती ही।
उणरै भी लूंका लार लग्या,
आ देख द्रगां में है पाणी।
गंदै नाळां सूं घिर बैठी,
वा आज सिंधु री पटराणी।।
वो साखपती समदर देखो,
बस खाख तणै उनमान आज।
नदियां रै कांठै नागां रो,
पतहीण नाच अर गान आज।
सरवर अर नाडा सूख गया,
कुरळावै कालर काळी है।
नामी नाळां रा नेगचार,
नाळ्यां री कथा निराळी है।।
ओ फगत रोवणो कद काफी,
माफी मांगण सूं के होसी?
खुद रै भीतर री खुद्दारी,
जाग्यां ही बाजी सर होसी।
थूं पूछ भाण सूं ताण आँख,
तूं पूछ चाँद सूं चार बात।
ग्वाळी-ल्याळी नैं जंगळ में,
दिखलायां सरसी दोय हाथ।।
छेवट इतरो सो सुण साथी,
बाती बिन तेल बळै कोनी।
दूजां रै कांधां बंदूकां,
राख्यां जुद्ध-धरम पळै कोनी।
खुद नैं ही आगै आणो है,
छेवट ओ धरम निभाणो है।
भारत-भूमी रो आपां नैं,
सोयो सोभाग जगाणो है।
जितरी ही जिणरी खिमता है,
उण मुजब आज सूं काम करो।
रुळपट रासां नैं रेत रळा,
तोतक रो काम तमाम करो।
भलपण री साख भरां आपां,
बदपण नैं अळगो बाळांला।
आओ मोट्यारां मिल आपां,
भारत नैं आज संभाळांला।
~डॉ गजादान चारण “शक्तिसुत”