चींटियों के चमचमाते पर निकल आए सुनो।
महफ़िलों में मेंढ़कों ने गीत फिर गाए सुनो।
अहो रूपम् अहो ध्वनि का, दौर परतख देखिए,
पंचस्वर को साधने कटु-काग सज आए सुनो।
आवरण ओढ़े हुए है आज का हर आदमी,
क्या पता कलि-कृष्ण में, कब कंश दिख जाए सुनो।
वानरों के हाथ में अब आ गए हैं उस्तरे,
कौन जाने कब तलक, यह गात बच पाए सुनो।
खौफ के साए से चाहे जन-दिलों को जीतना,
है हकीकत ये सियासतदान सठियाए सुनो।
आज जो आसीन है इन मसनदों पे अकड़कर,
हैं सभी भावी सफ़र का टिकिट कटवाए सुनो।
मौर से क्या बोलने की मौज छीनोगे भला,
चुप नहीं रह पाएगा वो मर भले जाए सुनो।
हुक्काम के दर हाज़री का हुनर सीखो साथियो!
जी-हुजूरी अफ़सरी को, रास बहु आए सुनो।
मान ले ‘गजराज’ करले दुर्जनों से दोसती,
काश इससे सज्जनों की आंख खुल पाए सुनो।
~डॉ. गजादान चारण ‘शक्तिसुत’