प्रथम पुण्यतिथि पर सश्रद्ध नमन।
राजस्थानी साहित्य, संस्कृति और चारण – राजपूत पारंपरिक संबंधों के मजबूत स्तंभ परम श्रद्धेय राजर्षि उम्मेदसिंह जी ‘ऊम’ धोल़ी ने आज ही के दिन इहलोक से महाप्रयाण किया था।
उनकी स्मृति मानसपटल पर सदैव अंकित रहेगी क्योंकि
आपके स्वर्गारोहण से उस एक युग का अवसान हो गया जिस युग में ‘चारण और क्षत्रिय’ के चोल़ी-दामण के संबंध न केवल माने जाते थे अपितु निर्वहन भी किए जाते थे।
आप जैसे मनीषी से कभी मेरा मिलना नहीं हुआ लेकिन आदरणीय कानसिंहजी चूंडावत की सदाशयता के कारण उनसे दो- तीन बार फोन पर बात हुई।फोन मैंने नहीं लगाया बल्कि उनके आदेशों की पालना में कानसिंहजी ने ही लगाया और कहा कि ‘धोल़ी ठाकर साहब आपसे बात करना चाहते हैं।”
जैसे ही मैं उन्हें प्रणाम करूं, उससे पहले ही एक 92वर्षीय उदारमना बोल पड़ा “हुकम हूं ऊमो! भाभाश्री म्हारा प्रणाम!”
जो लोग क्षत्रिय – चारण संबंधों को नहीं जानते या उनको लेकर कुछ भ्रमित हैं उन्हें ठाकर साहब के इस संबोधन की गहराई को समझना चाहिए।यानी जो क्षत्रिय अपनी कुल परंपरा को जीतें हैं,जिनके रक्त में क्षत्रियत्व के कणूके मौजूद हैं वे हर चारण को अपने पिता के बड़े भाई के सदृश मानते हैं और इसी परंपरा के निर्वहन में जब ठाकर साहब ने मुझे यों संबोधित किया तो मैं किंकर्तव्यविमूढ़ हो गया कि एक पितामह की वय के उच्च घराने के एक मनीषी को मैं क्या प्रत्युत्तर दूं?
क्योंकि प्रणाम का अभिवादन मैं करने वाला था लेकिन उससे पहले ही उन उदारमना तथा परंपरा पोषक ने अपने अधिकार को सुरक्षित रखा और मौका मुझे नहीं दिया।
उस समय मुझे दृढ विश्वास हुआ कि
भरिया सो छल़कै नहीं, छल़कै सो आधाह।
मरदां पारख जाणिये, बोल्या सो लाधाह।।
यही नहीं जनकवि ऊमरदानजी लाल़स ने सटीक ही लिखा था कि-
रग रगां रगत छायो रहै, देह विषै ज्यूं डारणां।
छत्रियां साथ नातो छतो, चोल़ी दामण चारणां।।
इसी बात को मध्यनजर रखते हुए मैं
परम श्रद्धेय ठाकुर साहब उम्मेदसिंहजी ‘ऊम’ धौल़ी का एक पत्र आपसे साझा कर रहा हूं।इस कागज को आपसे शेयर करने का यह कतई अर्थ नहीं है कि ठाकुर साहब की मेरे ऊपर मेहरबानी थी कि वे मेरे से अथाह स्नेह रखते थे या मेरे जौहर संस्थान के अध्यक्ष व मेवाड़ के उदात्त क्षत्रिय से सीधे संबंध थे बल्कि मैं इस कारण शेयर कर रहा हूं कि तथाकथित आजके ‘मोटा मिनख’ भी इस कागज को पढें और यह जाने कि सचमुच के ‘मोटा मिनख’ किस तरह के और किस प्रवृत्ति के होते हैं?उनकी शब्दावली ,भाव और विनम्रता किस तरह की होती है ?वे अपने से छोटे और उसी से भी छोटे को किन शब्दों में संबोधित करते हैं? वे फलों से फलित आम वृक्ष री तरह कितनी नम्रता रखतें हैं?एक 92 वर्ष का आदमी, अपनी परंपरा और बड़प्पन को कदीमी कायम रखने हेतु कितना सचेत है? ,इसकी एक बांनगी से आपको रूबरू करवा रहा हूं।मेरा ठाकर साहब को सादर प्रणाम साथ ही विनम्र श्रदांजलि–
मेड़तिया वंश अवतंश धरा धोल़ी हूं को,
मान्यो मेदपाट औरूं जान्यो ग्यो जहान में।
क्षत्रियत्व को पूजारी केशरिया पाघ धारी,
जौहर पे बलिहारी हुवो राजथान में।
पुरखों की वाट बह्यो हाट खोल हेतन की,
खरी खरी कही औरूं रह्यो हरि ध्यान में।
नेहिन हूं को नेह छोडी ऐसो उम्मेद आज,
जस हूं को राखि चल्यो बेठके विमान में।।
ऊजल़ वंश की धजा सदा फहराई नभ,
नाम काम ऊजल़ सदैव जग करिगो।
सामधर्म हूं को ताज गर्व हूं से सीस धार,
पदमिनी की प्रभा प्रसार विश्व करिगो।
सुयश संचय कीध कुल हूं को मोद दीध,
गुमर अमर नर जात हूं में भरिगो।
कलम हूं से रंग घोल़ी धोल़ी को राख धोल़ी,
दिशान सरग हूं कि ऊम पैंड भरिगो।।
कुछ दोहे मैंने उस समय लिखे थे वो भी आज पुनः साझा कर रहा हूंं-
आदरजोग धौल़ी ठाकुर साहब राठौड़ उम्मेदसिंहजी ‘ऊम’ रा दूहा-गिरधरदान रतनू दासोड़ी
दूहा
मेड़तियो मांटी मरद, शंभू सुतन सुजाण।
धिन राजै मेवाड़ धर, मरूधर हँदो माण।।1
मेड़तिया मेवाड़ कज, बढिया नर चढ वीर।
उण पुरखां रै ऊमसी, निमल़ चढावै नीर।।2
आद घराणै ऐणरी, रही आजलग रीत।
उणनै अडग उम्मेदसी, पाल़ै उरधर प्रीत।।3
मेड़तियां मेवाड़ रो, निपट उजाल़़्यो नाम।
सधर वडेरां सीखियो, ऊमो काम अमाम।।4
वडो वंश ज्यूं नाम वड, वडा काज वरियाम।
वडपण बातां ऊमरी, सरबालै सरनाम।।5
ऊजल़ कुल़वट ऊमरी, ऊजल़ रूक अनूप।
ऊजल़ धौल़ी आजदिन, राजै रजवट रूप।।6
सिटल़ बगत में सिटल़ग्या, मन नाही मजबूत।
इल़ धिन धौल़ी ऊमड़ो, रहै अजै रजपूत।।7
रग रग में रजवट रसै, सतवट सबद सतोल।
ओ तो जाणै ऊमड़ो, मही सनातन मोल।।8
विदगां नै रजपूत बिच, पड़ै न पीढी पेख।
बतल़ावै बडभ्रात कह, नर धिन ऊमो नेक।।9
साहित अनै समाज री, जाझी रखणो जाण।
ओ तो ठाकर ऊमड़ो, विमल़ उचारै बाण।।10
प्रीत नकोई परहरै, निपट तजै नीं नीत।
रीत रखै ग्यै राज में, जो ऊमो जसजीत।।11
आखर आखर ऊमरै, साकर वाल़ो साव।
भल ठाकर सूं भेटबा, चारण हर मन चाव।।12
स्नेह मेह मँडियो सरस, लोर उरड़ झड़ लूम।
धौल़ी वरसै पात धर, आखर आखर ऊम।।13
ठाकर धौल़ी ठाठ सूं, आखर लिखिया ऊम।
पढियां मन सैणां प्रसन, सँकिया सबदां सूम।।14
मेड़तियां मेवाड़ री, भल की पावन भोम।
ओ ऊमो उण ओद रै, कल़श चढावै कोम।।15
मेड़तिया मेवाड़ हित, बढिया रण में वीर।
ओ ऊमो उण ओद रो, गढपत मरद गँभीर।।16
~गिरधरदान रतनू दासोड़