कानून टूटने का, हमको भी ग़म रहेगा
पर जितना रहना था, उससे कुछ कम रहेगा।
जाँबाज न जागे होते
वहशी सब भागे होते
कानून भले बच जाता,
हम सभी अभागे होते
दाग नहीं वरदी पे, अब रक्तिम तिलक रहेगा।
कानून टूटने का, हमको भी ग़म रहेगा
पर जितना रहना था, ——- ———–
अब तक कानून जो टूटे
हर बार —–दरिंदे छूटे
इस बार हुआ कुछ ऐसा,
महापाप के मटके फूटे
खुद्दारी खाखी की, जन-जन का कंठ कहेगा।
कानून टूटने का हमको भी ग़म रहेगा।
पर जितना रहना था— ———
दुनिया में खाखी वरदी
कहलाती है बेदरदी
कब किसने इसे सराहा,
बदनामी ही अक्सर दी
(अब) कोई खाखी वाला, बदनामी नहीं सहेगा
कानून टूटने का, हमको भी ग़म रहेगा।
पर जितना रहना था—-
सोचो जिस घर की बेटी
बेमौत कब्र में लेटी
उसके हत्यारे भागें,
वरदी रहे कैसे बैठी ?
जिसने अन्याय किया, एनकाउंटर सहेगा।
कानून टूटने का, हमको भी ग़म रहेगा।
पर जितना रहना था—-
वहशी ग़र जिंदा होते
हम सब शर्मिंदा होते
कल फिर इक बेटी जलती,
हम घर में घुस-घुस रोते
वहसी को हिन्दुस्तां, मानव अब नहीं कहेगा।
कानून टूटने का, हमको भी ग़म रहेगा।
पर जितना रहना था—-
~डॉ.गजादान चारण ‘शक्तिसुत’