एतबार रखिए अवस, इस बिन सब अंधार।
रिसते रिश्तों के लिए, अटल यही आधार।।
एतबार पे ही टिके, घर-परिवार-संसार।
एतबार से ही बहे, रिश्तों की रसधार।।
प्रीति परस्पर है वहीं, उर-पुर जंह पतियार।
प्रीत अगर परतीति बिन, केवल मिथ्याचार।।
मन की तनक न मानिए, मन नाहक मरवाय।
मन के शक की मार से, एतबार मर जाय।।
एतबार उठते अवस, कर मन एह विचार।
शक ने किसको कब दिया, भावों का भंडार।।
आरोपों से आबरू, खंड-खंड खो जाय।
आशंकाओं में उलझ, रिस-रिस कर रिस जाय।।
भ्रम ज्यों ही भीतर घुसे, जाता रहे जुनून।
उसका एक उसूल है, एतबार का खून।।
एतबार-सर-कगर पर, प्रीत-विटप पलुहन्त।
रस-मुक्ता रसना चखे, मन-हंसा मलफ़ंत।।
बार बार बेकार में, अभरोसे की आग।
जानबूझ जलता जगत, जाग सके तो जाग।।
गर पंछी को है नहीं, पंखों पर पतियार।
बिना उड़े बेकार में, हो जाएगी हार।।
~डॉ. गजादान चारण’शक्तिसुत’