बिड़द रख बीसहथी वरदाई, सेवग दुख हर लीजे सुरराई।
खल को खंडन कर खलखंडनि, मेछां उधम मचाई।
संतन के मन गहरो सांसो, पुनि-पुनि-पुनि पछताई।।1।।
खल संग निर्मल होय सफल कब, अंत मिलत अफलाई।
दुष्ट दलन कर हे दाढाळी, एक आसरो आई।।2।।
निम्-निम नाड़ राखतां नीची, लुळ-लुळ धोक लगाई।
तिम-तिम अहम बढ़्यो है ताको, कहि न जाय कुटळाई।।3।।
साख रु सीर बिसार समूचा, लूचां घात लगाई।
हे प्रतिपालक दम्भ प्रजाळक, साख बचा सुरराई।।4।।
गज जिम सुत गजराज आज भव, ग्राह रह्या गुरराई।
करनी को फल दे दुष्टन को, करनी बन कन्हाई।।5।।
तज अहसान बखानत अवगुण, सुन-सुन मन सदमाई।
तुम बिन कौन दंड दे ताको, (थांको) सिंह हांको सुरराई।।6।।
का तो सज्जन हीन मही कर, खलक रखो खलताई।
का फिर दुष्ट बिडार दयानिधि, बब्बर चढ़कर बाई।।7।।
अंतस पीड़ हरो अन्नदाता, करो महर करनाई।
सुत गजराज आपरै सरणै, संकट हर सुरराई।।8।।
बिड़द रख बीसहथी वरदाई, सेवग दुःख हर लीजे सुरराई।।
~डॉ गजादान चारण शक्तिसुत।