इतिहास के पन्नों में से कई नाम ऐसे भी है, जो हाशिए से भी बाहर निकल जाते हैं। कुछ के नाम सरकारी दस्तावेजों, रिकार्डो, बिल्डिंगों भवनों के साथ – साथ गूगल पर भी मिल जाएंगे। मगर बहुत कोफ्त होती है कि हमारे ऊपर दमन करने वाले, हजारों लाखों बेगुनाह भारतवासियों को मौत के घाट उतारने वाले अंग्रेजों के नाम से कई इमारतें, सरकारी भवन खड़े हुई है, जबकि उन्हीं अत्याचारी अफसरों से लोहा लेने वाले रणबांकुरे जिन्होंने निस्वार्थ भाव से अपना जीवन, परिवार, प्राण, इस भूमि, इस धरा की आजादी के लिए आहूत कर दिया। उनका नाम लेवा पिछले सात दशकों में कोई नहीं। मैं बात कर रहा हूं राजस्थान के अमर स्वतंत्रता सेनानी वीरवर जोरावरसिंह बारहठ की, जिन्होंने अपनी पूरी जवानी फरारी में काटी, गांव – गांव, जंगल – जंगल भूखे प्यासे भटके अपनों से बिछुड़े, अपनी जागीरदारी को अपनी संपत्ति को खो दिया, अपने जीवन की परवाह नहीं की, अपने सुख सुविधा पारिवारिक जीवन सब कुछ भूल कर अंग्रेजों से लोहा लिया। 23 दिसंबर 1912 की सुबह गौरांग शासक लॉर्ड हार्डिंग की शाही जुलूस पर बम फेंक कर शांत पड़े हुए अंग्रेजी हुकूमत के संघर्ष को चिंगारी दी। यह बम धमाका मात्र वॉयसरॉय लॉर्ड हार्डिंग पर नहीं वरन पूरी ब्रिटिश हुकूमत के लिए चुनोती था, जिसकी गूंज पूरे देश में ही नहीं वरन ब्रिटेन तक गूंजी थी। जिस लॉर्ड हार्डिंग पर बम गिरा उसी की पत्नी के नाम पर आज एक नहीं दो दो विशाल भवन इमारत दिल्ली में खड़े है लेडी हार्डिंग हॉस्पिटल, लेडी हार्डिंग मेडिकल कॉलेज यह दोनों नाम दिल्ली में बच्चे बच्चे की जुबान पर है। नहीं है तो कोई भी वीर जोरावर का नामलेवा।
यद्यपि पिछले वर्ष विधानसभा में तस्वीरें लगी मगर आज भी दिल्ली के आम जनमानस में इस महान क्रांतिकारी को कोई नहीं पहचानता। होना तो यह चाहिए था कि देश की आजादी के पश्चात समाज या देश के नेताओं द्वारा राजधानी में इन रणबांकुरे के नाम से स्मारक बनता, इन की मूर्ति स्थापित होती मगर उस वक्त के नामचीन सत्ताधारियों ने कभी इसकी कोशिश नहीं की। ऐसे कई वीर नींव की ईट बनकर दब गए। आज आवश्यकता है ऐसे प्रयासों की जो इनके नाम से अमर स्मारक बने ताकि उनके संघर्ष से प्रेरणा लेकर नई पीढ़ी में राष्ट्रभक्ति जागे। उनकी गाथाओं को सुनकर नई पीढ़ी के बालकों में त्याग बलिदान की भावना जागे वरना गुलामी के प्रतीकों के स्मारकों से क्या सीख मिलती है ?
01. महान स्वतंत्रता सेनानी बारहठ परिवार से ही हमारी विशिष्ठ पहचान है, इनके त्याग बलिदान संघर्ष को दिल्ली में जन जन तक पहुंचाने का केसरी हुंकार संगठन ने बीड़ा उठाया है। निश्चित रूप से हमें इस कार्य में सभी का सहयोग व सफलता मिलेगी।
दिलीपसिंह चारणवासी
02. पिछले वर्ष दिल्ली विधानसभा में बारहठ वीरों की तस्वीरें स्थापित की गई है। हमारा प्रयास रहेगा कि दिल्ली में चांदनी चौक पर वीरवर जोरावरसिंह बारहठ का स्मारक बन सके।
प्रवीण कविया आम आदमी पार्टी दिल्ली
03. देश की राजधानी दिल्ली में चांदनी चौक पंजाब नेशनल बैंक की जिस बिल्डिंग से ठाकुर जोरावरसिंहजी ने बम फेंक कर क्रांति का बिगुल फूंका उस जगह शिलालेख लगाने का प्रस्ताव सरकार को दिया गया था। स्थानीय विधायक अलका लांबा से भी मांग की गई।
कैलाशसिंह जाडावत सचिव अमर शहीद कुंवर प्रताप सिंह बारहठ संस्थान , शाहपुरा
04. पसुंद (राजसमंद) में विद्यालय का नामकरण वीरवर जोरावरसिंह बारहठ के नाम से करने का प्रस्ताव दिया हुआ है, जहां इनका ननिहाल था।
पर्वतसिंह आसिया पुर्व सरपंच व मार्बल व्यवसायी ग्राम पंचायत पसुंद
05. कुंवर प्रतापसिंह बारहठ की जन्मस्थली उदयपुर में इनका स्मारक बनाने का प्रयास किया जाएगा।
हरेंद्र सौदा अमर शहीद प्रतापसिंह बारहठ रॉयल्स संस्थान
06. देशभर की मिडिया तक क्रांतिकारी बारहठ बंधुओं के असीम त्याग बलिदान को स्मरण कराने के लिए मुहिम शुरू करने का प्रयास किया जाएगा।
–जयदेवसिंह झीबा प्रबंधक चारणत्त्व पत्रिका